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छत्तीसगढ़ के प्राथमिक, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावा जिला अस्पताल में झोलाछाप डॉक्टर पदस्थ हैं। यानी छत्तीसगढ़ के कई हॉस्पिटलों में सरकार झोलाछाप डॉक्टर से इलाज करवा रही है। दरअसल ऐसे एक दो लोगों की नियुक्ति राज्य बनने के बाद से ही हो रही थी। लेकिन कोरोनाकाल में इनकी बाढ़ सी आ गई।
महामारी के दौरान सरकार ने डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए नियमों में ढील दी।जिसका फायदा उठा बड़ी संख्या में झोलाछाप डॉक्टरों ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जरिए डॉक्टर बन नौकरी पा ली। सरकार ने ऐसे 50 से अधिक डॉक्टर को खोज निकाला है। हालांकि इन्हें बाहर करने में सरकार के पसीने छूट गए हैं।क्योंकि यह छोटे-छोटे नियमों का हवाला दे कोर्ट जाकर स्टे ले आ रहे हैं।
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रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट नहीं देने से हुआ शक
दरअसल राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन छत्तीसगढ़ में बैठे अधिकारियों ने नियुक्ति को लेकर एक नियम बनाए जिसमें जॉइनिंग के 1 महीने तक दस्तावेज जमा करने की छूट दी। इसी छूट का फायदा उठा कई लोगों ने डॉक्टर बन ज्वाइन कर लिया। लेकिन 5 साल बीतने के बाद भी इन्होंने न तो रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा किया न ही अन्य दस्तावेज.. इतना ही नहीं यह शासन के कई नोटिस का जवाब तक नहीं दे रहे हैं।
जिसके बाद अधिकारियों को इनके झोलाछाप होने पर शक हुआ। लेकिन बार बार टालमटोल करने पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने सीएमएचओ को पत्र लिखकर इन्हें नौकरी से बर्खास्त करने का निर्देश दिया है।
आदेश मिलते ही कोर्ट से ले आए स्टे
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निर्देश पर सीएमएचओ द्वारा मिले अल्टीमेटम के आधार पर ऐसे कई डॉक्टर्स ने कोर्ट का रुख कर लिया। किसी ने अपने प्रमाण पत्र को निजी बताकर देने से इनकार किया है। किसी ने इसके लिए और अधिक समय देने की कोर्ट से गुहार लगाई है। कोर्ट से समय मिलने के बाद यह फिर आराम की नौकरी कर रहे हैं।
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सहायक और फार्मासिस्ट से पूछ पूछ करते हैं इलाज
हमने जब अपने स्तर से प्राथमिक, सामुदायिक और स्वास्थ्य जिला चिकित्सालय में पदस्थ इन डॉक्टरों की पड़ताल की तो पता चला इन्हें दवाइयां का कोई ज्ञान ही नहीं। कोरोना काल में तो उन्होंने सरकार के द्वारा जारी निर्देशों के तहत संक्रमितों का दवाई। लेकिन कोरोना काल जाने के बाद सामान्य ओपीडी के दौरान मरीज के इलाज के दौरान इन्हें परेशानी होने लगी। कई बार तो यह नर्स, फार्मासिस्ट और स्वास्थ्य सहायकों से पूछकर दवाइयां लिखते हैं।
सर्टिफिकेट नहीं होना झोलाछाप की निशानी
हमने इस संबंध में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के उपसंचालक डॉ अजय शंकर कन्नौजे से चर्चा की। उन्होंने बताया कि लगभग 50 ऐसे डॉक्टर की लिस्ट बनाई है, जिन्होंने बार-बार चेतावनी के बावजूद मिशन को अपनी डिग्री या सर्टिफिकेट जमा नही किया है। बिना सर्टिफिकेट पता ही नही चल रहा कि इन्होंने MBBS की पढ़ाई की है या नहीं..
ऐसे लोगों को नौकरी से बाहर करने की निर्देश जारी किया गया है।
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क्या है झोलाछाप डॉक्टर
भारत सरकार की तरफ से देशभर में केवल पांच पैथियाँ ही मान्य हैं। जिसमें एलोपैथ, होम्योपैथ आयुर्वेद, यूनानी और योगा नैचुरोपैथी हैं। केंद्र सरकार ने उनके लिए काउंसिल भी बना रखा है। पढ़ाई करने वाले छात्रों को यहां रजिस्ट्रेशन कराना है। इसके बाद ही इन्हें इस पद्धति में इलाज करने की मान्यता मिलती है। नियम अनुसार इन पांच पैथियों से सम्बंधित काउंसिल में बिना रजिस्ट्रेशन या इनसे अलग पैथियों के तहत इलाज करने वाले झोलाछाप की श्रेणी में आते हैं।
विधायकों सांसदों के फोन से मिली नौकरी
कोरोना के दौरान राज्य में डॉक्टरों की कमी हो गई थी। जिसके बाद एनएचएम ने संविदा के तहत डॉक्टर की नियुक्ति की। इस दौरान नियमों में छूट दी गई थी। जिससे ऐसे MBBS पास आउट छात्र से भी सेवा ली जा सके, जिनके पास अभी डिग्री या रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट ना हो। हालांकि इन्हें मेडिकल काउंसिल का ऑफिस खुलते ही दस्तावेज जमा करने थे। इसी छूट का फायदा उठा कई झोलाछाप स्थानीय सांसद और विधायकों से फोन करवा नौकरी पा ली। कोरोना बात भी इनकी संविदा अवधि बढ़ती रही और यह आज तक पद पर जमे हुए हैं।
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