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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में एक अनोखा मामला सामने आया है, जहां एक 20 वर्षीय युवती ने अपने कथित पिता से भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दायर की। युवती का दावा था कि वह बीकॉम की छात्रा है और उसकी पढ़ाई, भोजन, कपड़े व स्टेशनरी आदि की जरूरतों के लिए आय का कोई जरिया नहीं है। मां की माली हालत भी खराब है, इसलिए पिता को भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
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हाई कोर्ट ने युवती की अपील पर सुनवाई करते हुए उसके पिता को अंतरिम रूप से भरण-पोषण देने का आदेश दिया है, हालांकि पिता ने दावा किया कि युवती उसकी जैविक संतान नहीं है। न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक डीएनए या अन्य ठोस प्रमाण सामने नहीं आते, तब तक भरण-पोषण की अंतरिम व्यवस्था जारी रहेगी।
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यह है पूरा मामला
बिलासपुर की रहने वाली 20 वर्षीय छात्रा ने अपने पिता पर 22 साल बाद गुजारा भत्ता नहीं देने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। युवती की मां का विवाह 18 अप्रैल 1999 को हुआ था और छात्रा का जन्म 16 नवंबर 2002 को हुआ। विवाह के तीन साल बाद पति ने पत्नी को घर से निकाल दिया था, तब से वह मायके में रह रही थी। युवती का आरोप है कि वह अपनी पढ़ाई, भोजन, कपड़े और स्टेशनरी की जरूरतें पूरी नहीं कर पा रही, इसलिए उसे आर्थिक सहायता की आवश्यकता है।
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पति ने किसी और का बच्चा होने का लगाया आरोप
युवती के कथित पिता ने कोर्ट में जवाब दाखिल करते हुए कहा कि वह उसकी जैविक (बायोलॉजिकल) संतान नहीं है। उसका दावा है कि उसकी पत्नी ने विवाह के बाद किसी अन्य व्यक्ति से अवैध संबंध बनाए और उसी से यह संतान हुई। इसलिए वह युवती के भरण-पोषण का जिम्मेदार नहीं है। साथ ही, उसने फैमिली कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग भी की।
कोर्ट में क्या हुआ
मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति रजनी दुबे और सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने की। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों और दस्तावेजों का अवलोकन किया। पाया गया कि युवती की मां और कथित पिता की शादी 18 अप्रैल 1999 को हुई थी और युवती का जन्म 16 नवंबर 2002 को हुआ। इससे पहले पत्नी 22 मार्च 2002 को पति का घर छोड़ चुकी थी। यानी जन्म, पति के घर छोड़ने के 9 महीने के भीतर हुआ।
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पहले अंतरिम राहत फैसला
बाद में कोर्ट ने कहा कि जैविक संतान है या नहीं, यह मुद्दा आगे विचारणीय है, लेकिन जब तक अंतिम फैसला नहीं आ जाता, तब तक युवती को प्रथम दृष्टया जरूरत और आय की स्थिति के आधार पर भरण-पोषण का हक बनता है। अतः हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि हर माह ₹2000 अंतरिम भरण-पोषण के रूप में युवती को दिए जाएं। साथ ही, फैमिली कोर्ट के उस आदेश को फरवरी 2025 तक के लिए निलंबित कर दिया गया, जिसमें हर माह ₹2000 देने का निर्देश दिया गया था। मामले में फैमिली कोर्ट ने पिता की अपील खारिज कर दी थी, जिसे हाई कोर्ट ने फिलहाल आंशिक रूप से स्वीकार कर अंतरिम राहत दी है।
फैमिली कोर्ट का आदेश
यथावत फरवरी 2025 में फैमिली कोर्ट ने युवती की अर्जी को स्वीकार करते हुए भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, जिसे हाई कोर्ट ने फिलहाल बरकरार रखा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि छह माह में मामले का अंतिम निपटारा नहीं होता है, तो अपीलकर्ता पिता पुनः इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए आवेदन कर सकता है। हाई कोर्ट ने कहा- जब तक ठोस प्रमाण सामने नहीं आते, तब तक पिता को भरण-पोषण की जिम्मेदारी लेनी होगी।
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