Holi Festival 2025 : आपने ऐसी होली और कहीं नहीं देखि होगी। यहां होली का त्योहार दशहरा की तरह मनाया जाता है। होलिका दहन को दशहरा पर्व की तरह मनाने की परंपरा 600 साल से चली आ रही है। बस्तर में बसा हुआ छोटा सा गांव माड़पाल के लोग होली त्योहार को अलग ही तरीके से मनाते हैं। होलिका दहन की रियासती परंपरा माड़पाल गांव में आज भी कायम है।
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राजे-रजवाड़ों का रिवाज निभा रहे गांव के लोग
यहां सर्वप्रथम होलिका दहन होता है उसके बाद यहां से लाई चिंगारी से जगदलपुर राजमहल परिसर के सामने मावली माता मंदिर में युगल होलिका यानि दो होली के कुंड बनाकर उनका दहन किया जाता है। होलिका में तेन्दू, पलाश, साल, खैर, धवड़ा, हल्दू और बेर सहित सात प्रकार की सूखी टहनियों का दहन होता है। माड़पाल के सरपंच महादेव बाकड़े और पुजारी लखन ने बताया कि इन लकडिय़ों के दहन करने से उत्पन्न धुआं कई नुकसानदायक कीट को खत्म कर देता है, होलिका की राख कीट नाशक की तरह उपयोगी होती है।
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रथ संचालन में शामिल होते हैं राजपरिवार सदस्य
राज परिवार के द्वारा होलिका दहन से पहले मावली माता की पूजा अर्चना कर माता के छत्र को रथारूढ़ किया जाता है। इसके पीछे किंवदन्ती है कि बस्तर रियासत के राजा पुरुषोत्तम देव जब पदयात्रा करते हुए जगन्नाथ पुरी गए थे। उन्हें रथपति की उपाधि दी गई थी। पुरी से राजा पुरुषोत्तम देव लाव-लश्कर के साथ जब वापस बस्तर लौट रहे थे।
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उसी दौरान होली की रात को माड़पाल में ग्रामीणों ने उन्हें रोक कर होलिका दहन करने का आग्रह किया गया। पुरुषोत्तम देव ने सहर्ष स्वीकार किया। ग्रामीणों ने राजा को बैलगाड़ी में बैठ कर होलिका दहन स्थल तक ले गए। तब से हर साल होली के मौके पर बस्तर राजपरिवार सदस्य माड़पाल पहुंचते हैं और होलिका दहन में शामिल होते हैं। बस्तर दशहरा पर्व में तैयार किए जाने वाले रथ की तरह माड़पाल में ऐतिहासिक राजशाही होली के लिए रथ निर्माण शुभ मुहूर्त में किया जाएगा।
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