करदाता ने गलती मान की तो नहीं लगेगा जुर्माना

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड से जुड़े एक मामले की सुनवाई के बाद कहा कि अगर करदाता गलती मान लेता है तो जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।  यह धारा उनलोगों पर लागू होती है, जो आय छिपाने या गलत जानकारी देते हैं। 

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Krishna Kumar Sikander
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If the taxpayer admits his mistake there will be no penalty the sootr
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड से जुड़े एक मामले की सुनवाई के बाद कहा कि अगर कोई करदाता अपनी गलती मान लेता है। साथ ही उसकी मंशा  दुर्भावनापूर्ण नहीं है तो उसके खिलाफ आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 271 (1) (सी) के तहत जुर्माना नहीं लगाया जा सकता।  यह धारा उनलोगों पर लागू होती है, जो आय छिपाने या गलत जानकारी देते हैं। 

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कंपनी ने स्वयं जानकारी दी थी गलती की जानकारी

छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड एक सार्वजनिक कंपनी है। आयकर विभाग कंपनी के कर विवरण की जांच धारा 143(2) के अंर्तगत कर रहा था। इस दौरान कंपनी ने स्वयं जानकारी दी कि उसने बहीखाता लाभ में गणना के दौरान ₹35,74,90,033 रुपये की जगह पर ₹26,89,97,367 रुपये की जानकारी दर्ज की थी। यह अंतर डेटा फीडिंग की गलती की वजह से हो गया था। इसके बावजूद कर निर्धारण अधिकारी (एओ) ने इसे आय का गलत विवरण मानकर आयकर अधिनियम की धारा 271 (1) (सी) के तहत कंपनी पर जुर्माना लगा दिया। साथ ही कंपनी पर आरोप लगाया कि जानबूझकर कर से बचने का प्रयास किया गया है। 

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कंपनी ने सीआइटी के समक्ष अपील की

कंपनी ने कर निर्धारण अधिकारी के इस आदेश को चुनौती दी। इसे लेकर कंपनी ने सीआइटी के समक्ष अपील की। इस मामले की सुनवाई के बाद अपीलीय अधिकारी ने मानवीय भूल मानते हुए कर निर्धारण अधिकारी द्वारा लगाए गए जुर्माना को खारिज कर दिया। इसके बाद अपीलीय अधिकारी के आदेश को राजस्व विभाग ने चुनौती दे दी। राजस्व विभाग ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ITAT के समक्ष अपील की। इस मामले की सुनवाई के बाद अपीलीय न्यायाधिकरण ने अपीलीय अधिकारी के आदेश को रद्द कर जुर्माना भुगतान करने का आदेश दे दिया। 

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हाई कोर्ट ने नहीं माना आयकर का दावा 

अब बिजली कंपनी ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण ITAT के आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर की। इस मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि जब करदाता खुद ही अपनी गलती मान लेता है और उसमें धोखाधड़ी या छिपाने की मंशा नहीं पाई जाए तो उस पर दंडात्मक कार्रवाई कतई ठीक नहीं है. हाई कोर्ट की इस टिप्पणी के साथ ITAT के आदेश को खारिज कर दिया।

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