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छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले का पूवर्ती गांव कभी नक्सली कमांडर हिड़मा का गढ़ माना जाता था। यह गांव आज एक नई उम्मीद और बदलाव की कहानी लिख रहा है। यह वही गांव है, जहां कभी नक्सलवाद का खौफ छाया रहता था, जहां बंदूक की गूंज और डर का साया आम था। लेकिन हाल ही में इस गांव में एक ऐसी घटना घटी, जो न केवल सामाजिक सामंजस्य की मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि शांति और विकास की राह पर बस्तर अब तेजी से बढ़ रहा है। यह कहानी है एक शादी की, जहां सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल) की 150वीं बटालियन के जवानों ने दुल्हन के भाई बनकर न केवल खुशियां बांटीं, बल्कि गांववासियों के साथ एक नया रिश्ता भी कायम किया।
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शादी का उत्सव, एक नई शुरुआत
सुकमा जिले के पूवर्ती गांव में एक बेटी की शादी का आयोजन हुआ। यह गांव नक्सली कमांडर हिड़मा का पैतृक गांव है, जिसे लंबे समय तक नक्सलवाद का केंद्र माना जाता रहा। लेकिन इस बार गांव में शहनाई की गूंज थी, और खुशियों का माहौल था। शादी की रस्में पूरी होने के बाद, जब दुल्हन की विदाई का समय आया, तो ग्रामीणों ने एक अनोखा कदम उठाया। वे दुल्हन को लेकर पास के सीआरपीएफ कैंप पहुंचे, जहां 150वीं बटालियन के जवान ड्यूटी पर तैनात थे।
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ग्रामीणों ने जवानों बनाया उत्सव का हिस्सा
यह दृश्य अपने आप में ऐतिहासिक था। ग्रामीणों ने न केवल जवानों को अपने उत्सव का हिस्सा बनाया, बल्कि उन्हें परिवार की तरह सम्मान दिया। सीआरपीएफ के जवानों ने भी इस भावना का सम्मान करते हुए दुल्हन के भाई की भूमिका निभाई। उन्होंने परंपरागत रूप से दुल्हन को नेग (उपहार) दिया और ग्रामीणों के साथ नाच-गाकर शादी की खुशियां साझा कीं। यह पल न केवल एक परिवार के लिए यादगार बना, बल्कि पूवर्ती गांव और सुरक्षा बलों के बीच विश्वास और भाईचारे का प्रतीक बन गया।
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नक्सलवाद के घटते प्रभाव का प्रतीक
पूवर्ती गांव का यह आयोजन सिर्फ एक शादी तक सीमित नहीं है; यह बस्तर में नक्सलवाद के घटते प्रभाव और शांति की बहाली का जीवंत प्रमाण है। नक्सली कमांडर हिड़मा, जिसका नाम सुरक्षा बलों की फाइलों में सबसे खूंखार माओवादियों में शुमार है, का गांव लंबे समय तक हिंसा और डर का पर्याय रहा। लेकिन हाल के वर्षों में केंद्र और छत्तीसगढ़ सरकार की समन्वित रणनीतियों, सुरक्षा बलों के साहस और विकास कार्यों ने इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाए हैं।
सीआरपीएफ ने की गुरुकुल की स्थापना
सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस ने नक्सल विरोधी अभियानों को तेज करते हुए कई सफलताएं हासिल की हैं। हाल ही में, पूवर्ती गांव में ही सीआरपीएफ ने गुरुकुल की स्थापना की, जहां 80 से अधिक बच्चे शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इसके अलावा, गांव में स्कूलों का निर्माण और बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के प्रयास चल रहे हैं। ये कदम न केवल शिक्षा और विकास को बढ़ावा दे रहे हैं, बल्कि ग्रामीणों के मन में सुरक्षा बलों के प्रति विश्वास भी पैदा कर रहे हैं।
गांववासियों में बढ़ता विश्वास और उत्साह
इस शादी के आयोजन में सीआरपीएफ जवानों की भागीदारी ने गांववासियों में एक नया उत्साह भरा है। पहले जहां सुरक्षा बलों की मौजूदगी ग्रामीणों में डर पैदा करती थी, वहीं अब लोग उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानकर अपने निजी आयोजनों में आमंत्रित कर रहे हैं। यह बदलाव केवल एक सामाजिक घटना नहीं, बल्कि सामुदायिक एकता और विश्वास की जीत है। ग्रामीणों का जवानों के साथ नाचना, खुशियां साझा करना और उन्हें अपनी बेटी की विदाई का हिस्सा बनाना इस बात का सबूत है कि पूवर्ती गांव अब हिंसा के साये से बाहर निकल रहा है। यह तस्वीर, जैसा कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, न केवल भावनात्मक रूप से खास है, बल्कि यह बस्तर के बदलते चेहरे को भी दर्शाती है।
विकास और शांति की राह पर बस्तर
केंद्र और राज्य सरकारों ने बस्तर में नक्सलवाद को खत्म करने के लिए कई कदम उठाए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास के साथ-साथ नक्सल विरोधी अभियानों ने इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाए हैं। पूवर्ती जैसे गांव, जो कभी नक्सलियों का गढ़ थे, अब विकास की मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। सीआरपीएफ के कैंप, स्कूल, और गुरुकुल जैसे प्रयास ग्रामीणों को बेहतर भविष्य की उम्मीद दे रहे हैं।
गांव पूवर्ती में अब शादी जैसे उत्सव
हाल ही में, सुकमा में सुरक्षा बलों ने कई नक्सलियों को गिरफ्तार किया और हिंसक गतिविधियों को रोकने में सफलता हासिल की। इसके साथ ही, सरकार की आत्मसमर्पण नीतियों ने कई नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है। इन प्रयासों का नतीजा है कि पूवर्ती जैसे गांवों में अब शादी जैसे उत्सव खुले दिल से मनाए जा रहे हैं, और सुरक्षा बल ग्रामीणों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं।
एक नई उम्मीद की तस्वीर
पूवर्ती गांव की यह शादी और सीआरपीएफ जवानों की भागीदारी बस्तर के लिए एक नई शुरुआत का प्रतीक है। यह तस्वीर न केवल नक्सलवाद के घटते प्रभाव को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि शांति, विश्वास, और विकास के बल पर समाज कैसे एकजुट हो सकता है। सीआरपीएफ के जवान, जो कभी केवल सुरक्षा के लिए जाने जाते थे, आज ग्रामीणों के भाई बनकर उनकी खुशियों में शामिल हो रहे हैं। यह बदलाव न केवल पूवर्ती गांव, बल्कि पूरे बस्तर के लिए एक नई उम्मीद और उत्साह की कहानी लिख रहा है। यह घटना न सिर्फ एक शादी का उत्सव है, बल्कि यह उस विश्वास और भाईचारे की जीत है, जो बस्तर को हिंसा के अंधेरे से निकालकर उजाले की ओर ले जा रहा है।
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