बलरामपुर-रामानुजगंज में वनों की अंधाधुंध कटाई, प्रशासन की चुप्पी

छत्तीसगढ़ के बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में उत्तर प्रदेश और बंगाल से आए लकड़ी तस्करों द्वारा जंगलों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है। तस्कर युकेलिप्टस, सुबबूल और बबूल के पेड़ों को काटने की अनुमति लेकर बहुमूल्य इमारती लकड़ी वाले पेड़ों को काटकर ले जा रहे हैं।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से आए लकड़ी तस्करों द्वारा जंगलों की अंधाधुंध कटाई का गंभीर मामला सामने आया है। स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि तस्कर युकेलिप्टस, सुबबूल और बबूल जैसे पेड़ों को काटने की अनुमति के नाम पर बहुमूल्य इमारती लकड़ी वाले पेड़ों को काटकर ले जा रहे हैं। जंगल मैदानों में तब्दील हो रहे हैं, और इस पर्यावरणीय नुकसान पर वन विभाग और प्रशासन की चुप्पी सवाल खड़े कर रही है।

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एक हस्ताक्षर से जंगल कटाई का परमिट

आरोप है कि जहां एक पेड़ काटने के लिए सामान्य नागरिक को वन विभाग से अनुमति लेने में लंबी प्रक्रिया और कागजी कार्रवाई का सामना करना पड़ता है, वहीं तस्करों को सरपंच के एक हस्ताक्षर पर ही जंगल काटने की अनुमति मिल जा रही है। तस्कर इस अनुमति का दुरुपयोग करते हुए सागौन, साल और अन्य कीमती इमारती लकड़ी के पेड़ों की कटाई कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब वन विभाग की मिलीभगत के बिना संभव नहीं है।

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वन विभाग का दोहरा रवैया

वन विभाग का रवैया भी चर्चा का विषय बना हुआ है। एक ओर जहां अंबिकापुर-रामानुजगंज सड़क निर्माण जैसे जनहित के कार्यों के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने में विभाग कई नियम-कानूनों का हवाला देता है, वहीं दूसरी ओर जंगलों की अवैध कटाई पर आंखें मूंद लेता है। बिजली के तार बिछाने जैसे विकास कार्यों में भी विभाग अड़चनें पैदा करता है, लेकिन तस्करों की गतिविधियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। 

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पर्यावरण कार्यकर्ताओं की चुप्पी

हसदेव अरण्य की कटाई के दौरान पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठन और नेता अब इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं? सरगुजा संभाग में जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है, लेकिन न तो कोई बड़ा आंदोलन दिख रहा है और न ही यह मुद्दा सुर्खियों में है। पहले पर्यावरण के नाम पर ईफको, मोजरबेयर और संचैति जैसी कंपनियों को उद्योग स्थापित करने से रोकने के लिए हड़ताल और प्रदर्शन करने वाले नेताओं की चुप्पी भी सवाल उठा रही है।

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प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्टाचार का संकेत 

यह मामला न केवल पर्यावरणीय नुकसान का है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही और संभावित भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा करता है। स्थानीय लोगों की मांग है कि वन विभाग और प्रशासन इस मामले की गंभीरता को समझे और तत्काल कार्रवाई करे। साथ ही, पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठनों और मीडिया से इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाने की अपील की जा रही है।  अब सवाल यह है कि क्या सरगुजा संभाग के जंगल बच पाएंगे, या यह क्षेत्र पूरी तरह पेड़मुक्त हो जाएगा? इस मामले में प्रशासन और वन विभाग की भूमिका पर सबकी नजरें टिकी हैं।

 

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