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छत्तीसगढ़ में युक्तियुक्तकरण लागू होने के बाद भी लगातार शिक्षकों की लापरवाही और मनमानी के मामले सामने आ रहें हैं। इसी प्रकार की मनमानी का एक मामला जांजगीर-चांपा जिले से सामने आया है। पामगढ़ ब्लॉक के मेउ गांव स्थित पूर्व माध्यमिक शाला में गणित शिक्षिका की गैरहाजिरी को लेकर अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा।
बच्चों को बिना गणित शिक्षक के पढ़ते देख पालकों ने स्कूल गेट में ताला जड़ दिया और धरने पर बैठ गए। छात्र-छात्राएं भी गेट के बाहर बैठकर गणित शिक्षक की मांग कर रहे हैं। इस तरह की घटनाएं राज्य में युक्तियुक्तकरण के उद्देश्य में बाधा डालने वालीं हैं।
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क्या है पूरा मामला?
गांव के पालकों का आरोप है कि स्कूल में पदस्थ गणित शिक्षिका रमशिला कश्यप पिछले 9 सालों से स्कूल नहीं आ रही हैं। उनका नाम तो स्कूल में दर्ज है लेकिन वे कक्षा में पढ़ाने की बजाय कहीं और ड्यूटी कर रही हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई पर सीधा असर हो रहा है, विशेषकर गणित जैसे मूलभूत विषय में।
अभिभावकों ने कहा कि "जब शिक्षिका स्कूल आती ही नहीं, तो हम बच्चों को स्कूल क्यों भेजें?" इसी बात को लेकर उन्होंने स्कूल को ताला लगाकर बंद कर दिया और मांग की कि जब तक शिक्षिका स्कूल नहीं आएंगी, तब तक ताला नहीं खुलेगा।
बीईओ पहुंचे मौके पर, मिला प्रतिनियुक्ति का हवाला
घटना की जानकारी मिलते ही ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) एम.एल. कौशिक और अन्य प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और पालकों को समझाने का प्रयास किया।
बीईओ ने बताया कि शिक्षिका रमशिला कश्यप पिछले 8-9 साल से आदिम जाति विभाग के छात्रावास में अधीक्षिका के रूप में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं। शिक्षा विभाग ने अब निर्णय लिया है कि आदिम जाति विभाग को पत्र भेजकर उन्हें तत्काल स्कूल में रिलीव कराकर वापस भेजा जाएगा, जिससे वे फिर से विद्यालय में गणित पढ़ा सकें।
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युक्तियुक्तकरण की नीति पर सवाल
यह मामला छत्तीसगढ़ में शिक्षकों की युक्तियुक्तकरण (Rationalization) नीति पर भी सवाल खड़ा करता है। जिसका उद्देश्य यह था कि जहां बच्चों की संख्या अधिक है, वहां पर्याप्त शिक्षक मौजूद रहें और विषयवार संतुलन बना रहे।
लेकिन यहां एक शिक्षिका 9 वर्षों से स्कूल से बाहर है, और शिक्षा विभाग को अब तक इसकी सुध नहीं थी। विभागीय समन्वय की कमी, प्रशासनिक उदासीनता, और असमान शिक्षक तैनाती जैसी समस्याएं युक्तियुक्तकरण के मकसद को विफल बना रही हैं।
बच्चों की पढ़ाई पर क्या पड़ेगा असर?
गणित जैसे विषय में लंबे समय से शिक्षक की अनुपस्थिति से बच्चों की मौलिक समझ कमजोर हो रही है। कई छात्र-छात्राएं हाई स्कूल में पहुंचकर भी गणित में पिछड़ जाते हैं, जिसका असर उनके आगे की पढ़ाई और प्रतिस्पर्धा में भी देखने को मिलता है।
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क्या है अभिभावकों की मांग?
अभिभावकों ने साफ शब्दों में अधिकारियों को कहा "पहले गणित शिक्षिका को स्कूल बुलाओ, फिर ताला खुलेगा।"
वे अब प्रशासन से लिखित आश्वासन चाहते हैं कि स्कूल में नियमित शिक्षण शुरू होगा और भविष्य में ऐसी लापरवाही नहीं दोहराई जाएगी।
यह घटना शिक्षा व्यवस्था की कमजोर कड़ियों को उजागर करती है, जहां शिक्षा का अधिकार तो है, लेकिन संसाधनों और जवाबदेही की भारी कमी है। यदि युक्तियुक्तकरण को जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाना है, तो ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई, शिक्षकों की समय पर रिलीविंग, और स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया जरूरी हो जाती है।
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