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छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखंड के ग्राम जामगांव में एक धर्मांतरित ग्रामीण की मौत के बाद उसके शव को दफनाने को लेकर उपजा विवाद उग्र रूप ले चुका है। ग्रामीणों का आरोप है कि ईसाई समुदाय ने गांव की जमीन पर बिना अनुमति और जानकारी के शव को दफनाया, जिससे आक्रोशित भीड़ ने स्थानीय चर्च में घुसकर तोड़फोड़ की और सड़कों पर चक्काजाम कर दिया।
दो दिनों से गांव में तनाव का माहौल बना हुआ है, और स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है। ग्रामीण शव को बाहर निकालकर पारंपरिक रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार की मांग कर रहे हैं, जबकि जिला प्रशासन और पुलिस मामले को शांत करने की कोशिश में जुटे हैं। यह घटना छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण या मतांतरण के संवेदनशील मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला रही है।
क्या है पूरा मामला?
जामगांव में मृतक सोमलाल राठौर हाल ही में ईसाई धर्म में परिवर्तित हुआ था। लंबी बीमारी के बाद 26 जुलाई 2025 को उसकी मौत हो गई। परिजनों ने बिना ग्राम सभा या स्थानीय लोगों को सूचित किए गांव की जमीन पर शव को दफनाने का फैसला किया। 27 जुलाई को जब इसकी जानकारी ग्रामीणों को लगी तो उन्होंने इसका कड़ा विरोध शुरू कर दिया।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में शव दफनाने की परंपरा नहीं है और यह कार्य उनकी सांस्कृतिक भावनाओं के खिलाफ है।28 जुलाई 2025 को आक्रोशित ग्रामीणों ने जामगांव और आसपास के गांवों से एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया। भीड़ ने स्थानीय चर्च में घुसकर तोड़फोड़ की और नरहरपुर-पखांजूर मार्ग पर चक्काजाम कर दिया।
ग्रामीणों की मांग है कि दफनाया गया शव बाहर निकाला जाए और इसे ईसाई समुदाय के लिए निर्धारित कब्रिस्तान में दफनाया जाए। स्थिति को बेकाबू होने से रोकने के लिए पुलिस और प्रशासन ने चप्पे-चप्पे पर बल तैनात किया है।
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ग्रामीणों का गुस्सा, हमारी परंपराएं तोड़ी गईं
मृतक के भाई, रामलाल राठौर, ने बताया, “हमारे गांव में दाह संस्कार की परंपरा है। बिना ग्राम सभा या ग्रामीणों को बताए शव को दफनाना गलत है। हमारी मांग है कि शव को बाहर निकाला जाए ताकि हम पारंपरिक रीति-रिवाजों से अंतिम संस्कार कर सकें।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मतांतरण के बाद से गांव में तनाव की स्थिति बनी हुई है।
गोटियावाही के सरपंच राजेंद्र मरकाम ने कहा, “शव को दफनाने से लोगों की धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाएं आहत हुई हैं। प्रशासन को जल्द से जल्द इसका समाधान निकालना चाहिए।” जामगांव की सरपंच भगवती उईके ने भी स्थिति को तनावपूर्ण बताते हुए कहा, “प्रशासन को समय रहते उचित निर्णय लेना होगा, वरना हालात और बिगड़ सकते हैं।”
चर्च में तोड़फोड़ और चक्काजाम
28 जुलाई को सुबह से ही जामगांव और आसपास के गांवों के सैकड़ों ग्रामीण सड़कों पर उतर आए। आक्रोशित भीड़ ने स्थानीय चर्च में घुसकर कुर्सियां, खिड़कियां, और अन्य सामान तोड़ दिए। इसके बाद, नरहरपुर-पखांजूर मार्ग पर चक्काजाम कर दिया गया, जिससे यातायात पूरी तरह ठप हो गया। प्रदर्शनकारियों ने प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की और शव को तत्काल बाहर निकालने की मांग दोहराई।
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में ईसाई समुदाय के लिए कोई कब्रिस्तान निर्धारित नहीं है, और बिना अनुमति के जमीन पर शव दफनाना गैर-कानूनी है। कुछ लोगों ने यह भी आरोप लगाया कि मतांतरण के लिए प्रलोभन देने वाले संगठन गांव में सक्रिय हैं, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा है।
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पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
तनाव की स्थिति को देखते हुए कांकेर जिला प्रशासन और पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की। नरहरपुर थाना पुलिस, अतिरिक्त पुलिस बल, और क्विक रिएक्शन टीमें (QRT) मौके पर तैनात की गई हैं। पुलिस ने चर्च और आसपास के क्षेत्रों में भारी बल तैनात कर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की।
कांकेर के पुलिस अधीक्षक (SP) इंदु शर्मा ने बताया, “हमने दोनों पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की है। प्रशासन के साथ मिलकर मामले का समाधान निकालने की कोशिश की जा रही है।”जिला प्रशासन ने ग्राम सभा और स्थानीय नेताओं के साथ बैठक शुरू की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है।
पखांजूर के SDM अंजोर सिंह पैकरा ने कहा, “हम ग्रामीणों की भावनाओं का सम्मान करते हैं और इस मामले में निष्पक्ष जांच की जा रही है। जल्द ही उचित निर्णय लिया जाएगा।”
पखांजूर में पहले भी हुआ था विवाद
यह पहला मौका नहीं है जब कांकेर जिले में शव दफनाने और मतांतरण को लेकर विवाद हुआ हो। अगस्त 2023 में पखांजूर के माझपल्ली गांव में एक धर्मांतरित ग्रामीण दिलीप पिस्दा की मौत के बाद शव दफनाने को लेकर बवाल मच गया था। तब ग्रामीणों ने शव को गांव में दफनाने का विरोध किया था, और जिला प्रशासन की मध्यस्थता के बाद शव को पखांजूर के वार्ड नंबर 1 में दफनाया गया था। उस समय भी पखांजूर में बंद का आह्वान किया गया था, और पुलिस को भारी बल तैनात करना पड़ा था।
धर्मांतरण का बढ़ता विवाद और सियासी घमासान
जामगांव की घटना ने एक बार फिर छत्तीसगढ़ में मतांतरण के मुद्दे को गरमा दिया है। गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2024-25 में धर्मांतरण से जुड़ी 50 शिकायतें दर्ज हुई हैं, जिनमें 23 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। यह संख्या पिछले साल की तुलना में ढाई गुना अधिक है, जो सामाजिक जागरूकता और प्रशासन की सख्ती को दर्शाती है। हालांकि, विपक्षी कांग्रेस ने इसे भाजपा सरकार की नाकामी करार दिया है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेंद्र साहू ने कहा, “भाजपा ने सत्ता में आने से पहले मतांतरण रोकने के लिए कड़ा कानून लाने का वादा किया था, लेकिन शिकायतों की बढ़ती संख्या उनकी विफलता को दर्शाती है।” दूसरी ओर, राजस्व मंत्री टंकराम वर्मा ने पलटवार करते हुए कहा, “कांग्रेस के भूपेश बघेल सरकार में मतांतरण की शिकायतें आती थीं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती थी। हमारी सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं, जिसके कारण लोग अब खुलकर शिकायत कर रहे हैं।”
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर वर्मा ने समाज के सभी वर्गों से मतांतरण के खिलाफ एकजुट होने की अपील की और कहा, “प्रलोभन और छल से होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए समन्वित प्रयास जरूरी हैं।”
सामाजिक और सांस्कृतिक संकट
जामगांव की घटना ने न केवल कानून-व्यवस्था की चुनौती खड़ी की है, बल्कि आदिवासी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं पर भी सवाल उठाए हैं। बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मतांतरण के मामले लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रलोभन और आर्थिक सहायता के जरिए आदिवासियों को धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया जा रहा है, जिससे सामुदायिक तनाव बढ़ रहा है।स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता रामेश्वर ठाकुर ने कहा, “मतांतरण के नाम पर गांव की एकता और परंपराओं को तोड़ा जा रहा है। प्रशासन को चाहिए कि वह न केवल इस मामले का समाधान निकाले, बल्कि प्रलोभन देने वाले संगठनों पर भी कड़ी कार्रवाई करे।”
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