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वित्त मंत्री जी, ऑनलाइन नामांतरण प्रक्रिया को सुगम और जनहितैषी बनाने के लिए शुरू की गई थी, लेकिन यह भ्रष्टाचार और मनमानी का जरिया बन चुकी है। अब नई ऋण पुस्तिका जारी करने के बहाने तहसीलदार और उनके कर्मचारी अवैध कमाई का रास्ता तलाश लिया।
इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि प्रदेश भर में करीब 50 हजार नामांतरण के मामले लंबित पड़े हैं। इससे न केवल आम जनता की आर्थिक और मानसिक परेशानी बढ़ रही है, बल्कि सरकारी तंत्र की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में त्वरित हस्तक्षेप कर जनता को राहत प्रदान करें और लंबित मामलों के निपटारे के लिए प्रभावी कदम उठाएं।
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तहसीलदारों की मनमानी के आगे दम तोड़ता दावा
छत्तीसगढ़ में जमीन की रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की ऑनलाइन प्रक्रिया को सुगम बनाने का सरकारी दावा तहसीलदारों की मनमानी के आगे दम तोड़ता नजर आ रहा है। प्रदेश भर में करीब 50 हजार नामांतरण के मामले लंबित पड़े हैं, और नई ऋण पुस्तिका जारी करने के बहाने तहसीलदार और उनके कर्मचारी अवैध वसूली का रास्ता तलाश रहे हैं। इससे परेशान आम जनता ने अब वित्त मंत्री से अपील की है कि इस प्रक्रिया को पारदर्शी और सुगम बनाया जाए, ताकि बिना अतिरिक्त शुल्क दिए लोगों को उनका मालिकाना हक मिल सके।
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ऑनलाइन नामांतरण में तहसीलदारों का खेल
जमीन की रजिस्ट्री के बाद मालिकाना हक को आधिकारिक रूप से दर्ज करने के लिए नामांतरण की प्रक्रिया अनिवार्य है। इसके लिए नई ऋण पुस्तिका जारी की जाती है, जिसमें नए मालिक का नाम दर्ज होता है। छत्तीसगढ़ में इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए ऑनलाइन सिस्टम लागू किया गया था, लेकिन तहसीलदारों ने इस व्यवस्था में छेद निकाल लिया है।
सूत्रों के मुताबिक, तहसीलदार और उनके कर्मचारी नई ऋण पुस्तिका के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी का हवाला देकर आवेदनों को लटकाए रखते हैं। कई मामलों में, बिना "अनौपचारिक शुल्क" दिए नामांतरण का काम आगे नहीं बढ़ता। प्रदेश में 50 हजार से अधिक नामांतरण के आवेदन महीनों से अटके पड़े हैं, जिसके कारण जमीन खरीदने वाले लोग अपने मालिकाना हक से वंचित हैं।
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लोगों की परेशानी और अवैध वसूली
नामांतरण की प्रक्रिया में देरी और मनमानी ने आम लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। कई लोग तहसील कार्यालयों के बार-बार चक्कर काटने को मजबूर हैं, लेकिन उनके आवेदन जानबूझकर लटकाए जा रहे हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि तहसीलदार और कर्मचारी "अतिरिक्त शुल्क" की मांग करते हैं, जो हजारों रुपये तक हो सकती है।
यदि कोई व्यक्ति यह शुल्क देने से इनकार करता है, तो उसका आवेदन अनिश्चितकाल के लिए लंबित कर दिया जाता है। इससे न केवल लोगों का समय और पैसा बर्बाद हो रहा है, बल्कि उनकी जमीन का मालिकाना हक भी अधर में लटक गया है।
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प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
इस मामले में जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की चुप्पी ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया है। प्रभावित लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब सरकार ने ऑनलाइन नामांतरण की प्रक्रिया को लागू किया है, तो इसके नियमों को स्पष्ट क्यों नहीं किया जा रहा?
तहसीलदारों की मनमानी और अवैध वसूली पर अंकुश लगाने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा? लोगों का कहना है कि इस लापरवाही का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है, जो पहले ही रजिस्ट्री की प्रक्रिया में भारी खर्च वहन कर चुकी है।
वित्त मंत्री से जनता की अपील
प्रदेश की जनता ने अब वित्त मंत्री से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने की अपील की है। लोगों का कहना है कि ऑनलाइन नामांतरण की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाए। नई ऋण पुस्तिका जारी करने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश लागू किए जाएं, ताकि तहसीलदारों को मनमानी का मौका न मिले।
इसके साथ ही, लंबित 50 हजार नामांतरण मामलों को निपटाने के लिए विशेष अभियान चलाने की मांग की जा रही है। प्रभावित लोगों ने यह भी अपील की है कि अवैध वसूली में लिप्त तहसीलदारों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में ऐसी अनियमितताएं रोकी जा सकें।
सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल
छत्तीसगढ़ में जमीन नामांतरण की ऑनलाइन प्रक्रिया, जो आम लोगों की सुविधा के लिए शुरू की गई थी, अब तहसीलदारों की मनमानी और अवैध वसूली का अड्डा बन चुकी है। नई ऋण पुस्तिका के बहाने लोगों से पैसे वसूलने का खेल न केवल सरकारी तंत्र की पारदर्शिता पर सवाल उठाता है, बल्कि हजारों लोगों के मालिकाना हक को भी खतरे में डाल रहा है। वित्त मंत्री से जनता की यह अपील है कि इस प्रक्रिया को सुगम और भ्रष्टाचार-मुक्त बनाया जाए, ताकि लोग बिना परेशानी के अपनी जमीन का हक हासिल कर सकें।
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