छत्तीसगढ़ में दवा खरीदी में एक के बाद एक भ्रष्टाचार सामने आ रहा है। प्रदेश में दवा खरीदी का जिम्मा मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन का है। दवा खरीदी में भ्रष्टाचार की एक जांच पहले से ही चल रही थी और अब एक नया मामला सामने आ गया है। कार्पोरेशन ने खून पतला करने के लिए जो इंजेक्शन खरीदे वो घटिया निकले।
इस बात का पता तब चला जब ऑपरेशन टेबल पर मरीज को इंजेक्शन लगाया और खून पतला नहीं हुआ। ये घटिया इंजेक्शन कार्पोरेशन ने 121 फीसदी ज्यादा कीमत पर खरीदे। सवाल ये है कि मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाले कार्पोरेशन के उन अधिकारियों के खिलाफ आखिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही जो खुलेआम मौत का सौदा कर रहे हैं।
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जेब भरने के लिए मौत का सौदा
छत्तीसगढ़ मेडिकल कार्पोरेशन के अधिकारी अपनी जेब भरने के लिए मौत का सौदा करने से भी पीछे नहीं हट रहे। प्रदेश में मेडिकल कर्पोरेशन की दवा खरीदी में फर्जीवाड़े के एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। ताजा मामला हेपेरिन इंजेक्शन की खरीदी का है। यह इंजेक्शन खून को पतला करने के लिए लगाया जाता है।
गुजरात की डिवाइन कंपनी से ये घटिया इंजेक्शन खरीदा गया है। इसकी सप्लाई भी अस्पतालों में कर दी गई है। कार्पोरेशन ने दोगुनी यानी 121 फीसदी ज्यादा कीमत पर ये इंजेक्शन खरीदा है। डिवाइन कंपनी ने गुजारत में ये इंजेक्शन 19 रुपए 30 पैसे में बेचा वहीं इंजेक्शन छत्तीसगढ़ में मेडिकल कार्पोरेशन ने 42 रुपए 80 पैसे में खरीदा। यहां पर 48 हजार 821 वॉयल खरीदे गए। यानी एक वॉयल 23 रुपए ज्यादा कीमत पर खरीदा गया। तो कार्पोरेशन ने साढ़े 11 लाख रुपए ज्यादा भुगतान किए। इसमें जीएसटी शामिल नहीं है।
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ऐसे पता चला ये घटिया इंजेक्शन है
अंबेडकर अस्पताल में मरीज के वॉल्ब रिप्लेसमेंट के लिए ऑपरेशन किया जा रहा था। इसमें खून पतला करना होता है। जब मरीज को हेपेरिन इंजेक्शन लगाया गया तो उसका खून पतला नहीं हुआ। डोज डबर करके भी इंजेक्शन लगाया गया लेकिन इससे भी खून पतला नहीं हुआ। इसके बाद सर्जन ने मेडिकल से इंजेक्शन बुलाया और खून पतला किया। इसके बाद मरीज की सर्जरी की गई। यानी जाते जाते मरीज की जान बच गई। यह इंजेक्शन गुजार की डिवाइन कंपनी से खरीदा गया है। इंजेक्शन का बैच नंबर डीपी 2143 है। यह पांच मिलीलीटर का वॉयल है।
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स्टॉक की तलाश शुरु
इस मामले के सामने आने के बाद इस इंजेक्शन के स्टॉक की तलाश शुरु हो गई है। अंबेडकर अस्पताल से सारे इंजेक्शन कार्पोरेशन के वेयर हाउस भेजे जा रहे हैं। यहां पर सवाल ये भी उठता है कि आखिर किस लैब से इस इंजेक्शन की जांच कराई गई। दवा खरीदने से पहले उसकी जांच लैब से कराई जाती है।
यदि जांच कराई गई तो फिर घटिया इंजेक्शन की सप्लाई कैसे हुई। और यदि जांच नहीं कराई गई तो फिर बिना जांच के दवा क्यों खरीदी गई। इस भ्रष्टाचार में कई सारे सवाल हैं। सरकार को इसकी जांच कराकर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि मरीजों की मौत् के सौदागरों का चेहरा बेनकाब हो सके और जान से खिलवाड़ का ये खेल बंद हो।
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