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छत्तीसगढ़ में खाद्य सामग्री, फल-सब्जियों में बैक्टीरिया और वायरस की जांच के लिए बनी पहली माइक्रोबायोलॉजी फूड टेस्टिंग लैब शुरू होने से पहले ही मुश्किलों में घिर गई है। 25 फरवरी 2024 को इस लैब का उद्घाटन हुआ था, लेकिन 506 दिन बीत जाने के बाद भी यह चालू नहीं हो सकी। नतीजा, दूषित खाद्य पदार्थों में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों की जांच के लिए सैंपल अब भी इंदौर और दिल्ली जैसे शहरों में भेजने पड़ रहे हैं।
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क्या है समस्या?
लैब शुरू करने में कई अड़चनें सामने आईं। शुरुआत में तीन-चार महीने उपकरण खरीद और मैनपावर जुटाने में लग गए। इसके बाद बरसात में लैब की छत टपकने लगी। छत की मरम्मत के बाद जब मशीनें शुरू की गईं, तो ट्रांसफार्मर जल गया। बिजली विभाग ने बताया कि मशीनों का लोड मौजूदा ट्रांसफार्मर नहीं झेल पा रहा। इसके लिए 3 लाख रुपये की लागत वाला नया ट्रांसफार्मर चाहिए, जिसके लिए एक महीने पहले छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉरपोरेशन (सीजीएमएससी) को पत्र लिखा गया, लेकिन अभी तक ट्रांसफार्मर नहीं खरीदा गया।
लैब की खासियत, फिर भी ताला
यह लैब देश की हाईटेक लैबोरेटरीज में से एक है। छह कमरों में फैली इस लैब में बड़े रेफ्रिजरेटर और आधुनिक मशीनें लगी हैं, जो सात दिन तक चलने वाली जटिल जांच कर सकती हैं। लेकिन अभी लैब में ताला लटका है और बाहरी लोगों का प्रवेश निषिद्ध है। लैब के लिए नियुक्त छह कर्मचारियों को भी अन्य कामों में लगा दिया गया है।
नकली पनीर का मामला उजागर, जांच अधूरी
हाल ही में बड़े पैमाने पर नकली पनीर पकड़ा गया, लेकिन उसमें मौजूद बैक्टीरिया या वायरस की जांच नहीं हो सकी। रायपुर में केवल सामान्य जांच ही हो पाई। लैब से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि यदि लैब में जांच शुरू हो जाए तो प्रतिदिन 20 से 30 नमूनों की जांच की जा सकती थी। अभी हाल यह है कि एक या दो नमूने ही इंदौर या दिल्ली भेजकर जाएं करवाए जा रहे हैं।
किस तरह का है मशीनों को नुकसान का खतरा?
लैब का रखरखाव सेवन स्टैप कंसलटोर्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को सौंपा गया है, जिसके पास तीन साल तक मेंटेनेंस की जिम्मेदारी है। डेढ़ साल बीत चुके हैं, लेकिन मशीनें एक बार भी नहीं चलीं। कंपनी के दो कर्मचारी मशीनों की सफाई करते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मशीनों को लंबे समय तक नहीं चलाने से उनके सेंसर और कंप्रेशर खराब होने की आशंका है। इंजीनियरिंग नियमों के अनुसार, किसी भी बड़ी मशीन को आमतौर पर प्रत्येक 10 या 15 दिन में चलाना आवश्यक है, अन्यथा उनमें खराबी आना स्वाभाविक है।
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क्या कहते हैं अधिकारी?
खाद्य नियंत्रक दीपक अग्रवाल ने बताया कि लैब की मशीनों के लिए ट्रांसफार्मर की क्षमता कम है। नए ट्रांसफार्मर के लिए सीजीएमएससी को पत्र लिखा गया है और मैनपावर के लिए भर्ती प्रक्रिया चल रही है। प्रदेश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई यह अत्याधुनिक लैब सुस्ती और लापरवाही का शिकार हो रही है। सवाल यह है कि आखिर कब तक प्रदेशवासियों को दूषित खाद्य पदार्थों की जांच के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ेगा?
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