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Photograph: (the sootr)
नक्सलियों ने सोमवार को शांति वार्ता की संभावनाओं को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। उनके द्वारा जारी प्रेस नोट में साफ-साफ यह कहा गया है कि वे न तो हथियार छोड़ेंगे और न ही शांति वार्ता का हिस्सा बनेंगे। नक्सलियों की यह प्रतिक्रिया तब आई जब 17 सितंबर को एक प्रेस नोट और ऑडियो वायरल हुआ था, जिसमें शांति वार्ता के प्रस्ताव का उल्लेख किया गया था।
प्रेस नोट और वायरल ऑडियो का मामला
17 सितंबर को एक प्रेस नोट के साथ एक ऑडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें नक्सली नेता अभय ने शांति वार्ता के लिए सरकार से बातचीत करने का आग्रह किया था। हालांकि, केंद्रीय समिति और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने इस प्रेस नोट और ऑडियो से अपना कोई संबंध होने से इनकार किया। उन्होंने इसे पार्टी का आधिकारिक निर्णय न मानते हुए इसे नक्सली नेता अभय व पोलित ब्यूरो सदस्य सोनू का व्यक्तिगत विचार बताया।
इस वायरल प्रेस नोट और ऑडियो फाइल में दावा किया गया था कि सरकार से संवाद की प्रक्रिया एक महीने तक बढ़ाई जाए और इसमें कैद नक्सली नेताओं को भी शामिल किया जाए। लेकिन नक्सलियों की केंद्रीय समिति ने इस बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया है और कहा है कि यह उनका व्यक्तिगत विचार है, जिसका संगठन से कोई संबंध नहीं है।
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यह था शांतिवार्ता का प्रस्ताव
वायरल हुए प्रेस नोट में दावा किया गया था कि नक्सल संगठन ने शांति वार्ता की दिशा में एक कदम बढ़ाया है और सरकार से वार्ता करने के लिए तैयार है। इस प्रेस नोट में यह भी कहा गया था कि नक्सल संगठन अब अस्थायी रूप से अपने हथियारों को छोड़ने के बारे में सोच रहा है और यह कदम शहीद महासचिव बसव राजू की पहल का हिस्सा है। लेकिन नक्सलियों की केंद्रीय समिति और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी ने इस प्रेस नोट और इसकी बातों से पूरी तरह असहमत होने की बात कही।
नक्सलियों की केंद्रीय समिति का बयान
नक्सलियों की केंद्रीय समिति ने इस मामले में एक प्रेस नोट जारी किया, जिसमें कहा गया कि नक्सली नेता अभय द्वारा जारी किए गए प्रेस नोट और ऑडियो फाइल का कोई संबंध पार्टी से नहीं है। यह पूरी तरह से नक्सली नेता अभय का व्यक्तिगत निर्णय था और इसका पार्टी के किसी भी उच्च नेतृत्व से कोई लेना-देना नहीं था। नक्सलियों ने कहा कि कामरेड सोनू को पोलित ब्यूरों सदस्य अभय के नाम से प्रेसनोट जारी करने का अधिकार भी नहीं है।
केंद्रीय समिति ने साफ किया कि अगर नक्सली संगठन शांति वार्ता में शामिल होते हैं और हथियार छोड़ने का निर्णय लेते हैं, तो यह क्रांतिकारी पार्टी के सिद्धांतों के खिलाफ होगा और इसे संशोधनवादी दिशा की ओर मोड़ सकता है।
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शांति वार्ता का विरोध क्यों?
नक्सलियों ने शांति वार्ता का विरोध करते हुए यह कहा कि यह संगठन में विभाजन पैदा कर सकता है। पार्टी के भीतर यह विचार सामने आया है कि शांति वार्ता की कोशिशों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे संगठन के भीतर असहमति और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, नक्सलियों का यह भी मानना है कि शांति वार्ता में शामिल होने से उनके आंदोलन और संघर्ष का उद्देश्य कमजोर हो सकता है।
नक्सली संगठन का स्टैंड
नक्सली संगठन का यह स्टैंड यह दर्शाता है कि वे शांति और संवाद के बजाय अपने क्रांतिकारी संघर्ष को जारी रखने के पक्ष में हैं। उनका मानना है कि शांति वार्ता में शामिल होने से उनके आंदोलन की प्रामाणिकता पर सवाल उठ सकते हैं। वे इसे एक रणनीतिक कदम मानते हैं, जिससे उनके विचारधारा में बदलाव आ सकता है और यह संगठन के भीतर विभाजन का कारण बन सकता है।
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भविष्य में क्या हो सकता है?
यह स्थिति नक्सलियों और छत्तीसगढ़ सरकार के बीच के गतिरोध को और बढ़ा सकती है। अगर नक्सली शांति वार्ता से पूरी तरह इंकार करते हैं, तो इसका मतलब है कि हिंसा और संघर्ष का सिलसिला जारी रह सकता है। सरकार को अब यह निर्णय लेना होगा कि वह इस स्थिति का समाधान कैसे करेगी।
नक्सलियों की केंद्रीय समिति की प्रतिक्रिया
नक्सली केंद्रीय समिति ने यह स्पष्ट किया कि शांति वार्ता के प्रस्ताव को उनके संगठन के भीतर लागू करने से विभाजन हो सकता है। उनके अनुसार, हथियारबंद संघर्ष को छोड़ना उनका क्रांतिकारी रास्ता नहीं हो सकता और इससे उनका संगठन पूरी तरह से संशोधनवादी पार्टी में बदल जाएगा। इस तरह नक्सलियों ने शांति वार्ता की संभावनाओं को फिर से नकार दिया है।