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छत्तीसगढ़ में सरकार ने 3100 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर खरीदा। वर्ष 2024-25 में खरीदे गए धान को समय पर उठाया नहीं गया। नतीजा यह हुआ कि धान बारिश में भींग कर सड़ गया। अकेले कांकेर के धान खरीदी केंद्रों में करीब 75,000 क्विंटल धान खुले में पड़ा भीग रहा है। अब धान पर भ्रष्टाचार का अंकुरण दिखाई देने लगा है। धान होकर खराब हो रहा है। चार महीने पहले धान खरीदी पूरी होने के बावजूद इसे गोदामों तक नहीं पहुंचाया गया, जिससे अब यह बर्बादी के कगार पर है।
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नियमों की अनदेखी, धान का उठाव नहीं
सरकारी नियमों के अनुसार, 28 फरवरी तक धान खरीदी केंद्रों से गोदामों में धान पहुंच जाना चाहिए था। लेकिन लापरवाही के चलते धान अब भी खरीदी केंद्रों में पड़ा है। भानुप्रतापपुर के केवटी धान खरीदी केंद्र में तो हालात इतने खराब हैं कि स्थानीय लोग अंकुरित धान को 'थरहा' के रूप में उखाड़कर अपने खेतों में रोपने के लिए ले जा रहे हैं। यह स्थिति सरकारी व्यवस्था की नाकामी का स्पष्ट उदाहरण है।
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केंद्र प्रभारी डरे, जेल का खतरा
केवटी धान खरीदी केंद्र के प्रभारी योगेश सोनवानी का कहना है कि उन्होंने इस समस्या से अधिकारियों और मिलर्स को बार-बार अवगत कराया, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। केंद्र में अभी भी 11,000 बोरे धान पड़े हैं। सोनवानी ने बताया कि पिछले सत्रों में गड़बड़ी के आरोप में कर्मचारियों को जेल भेजा गया था, जिसके कारण अब उन्हें भी डर सता रहा है।
सांसद ने दी चेतावनी, होगी कार्रवाई
भाजपा सांसद भोज राज नाग ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि हजारों क्विंटल धान की बर्बादी की शिकायत मिली है। उन्होंने अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई के निर्देश दिए हैं और चेतावनी दी कि अगर समस्या का समाधान नहीं हुआ तो मुख्यमंत्री के समक्ष शिकायत दर्ज कर दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।
पिछले सत्रों में भी गड़बड़ी
केवटी धान खरीदी केंद्र में पिछले चार सत्रों में गबन के आरोप में कंप्यूटर ऑपरेटर को जेल भेजा जा चुका है। लेकिन असल समस्या सरकारी व्यवस्था की लापरवाही है, जो समय पर धान का उठाव सुनिश्चित नहीं कर पाती। नतीजतन, छोटे कर्मचारियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। यह मामला न केवल सरकारी लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि किसानों की मेहनत और सरकारी संसाधनों की बर्बादी को भी सामने लाता है। समय रहते कार्रवाई न हुई तो यह नुकसान और बढ़ सकता है।
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