इन दिनों छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में क्या चल रहा है इसकी जानकारी सरकार को भी नहीं है। उनका पूरा प्रशासनिक तंत्र किसी और के हाथों में खेल रहा है। अफसरों की विपक्ष के नेताओं से डील हो रही है तो विपक्ष के नेताओं का पुलिस प्रशासन के पूरे तंत्र में खासा दखल है। पिछले सरकार में हुए घोटालों में फंसे लोगों को बचाने के लिए करोड़ों की डील हो रही है। सब कुछ पर्दे के पीछे चल रहा है। यानी पर्दे में रहने दो, पर्दा न हटाओ, पर्दा जो हट गया तो भेद खुल जाएगा। राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी।
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वाटिका में बड़ी डील
कांग्रेस के एक बड़े नेता और एक आला आईपीएस अफसर के बीच हुई डीलिंग इन दिनों राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है। खबर है कि यह डीलिंग सेजबहार की एक वाटिका में हुई। यह जगह पूर्व मंत्री के सिपहसालार का फॉर्महाउस है। बताया जा रहा है कि यह डीलिंग भी पूर्व मंत्री ने अपने करीबी अफसर के जरिए ही कराई। इस मीटिंग में कुछ और अफसर और नेता भी मौजूद थे। सूत्रों के अनुसार कहानी यहां से शुरु होती है कि चर्चा में रहने वाले अफसर ने नेताजी को परेशान करना शुरु किया तो नेताजी ने अफसर को निशाने पर ले लिया।
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बात इतनी बढ़ गई कि नेताजी के प्रभाव और सरकारी तंत्र में दखल से अफसर मुश्किल में आ गए। यहां पर पूर्व मंत्री की एंट्री होती है। बताया जाता है कि सरकारी तंत्र को इनके करीबी अधिकारी ही चलाते हैं। इन्होंने नेताजी और अफसर की मीटिंग फिक्स करा दी। मीटिंग में तय हो गया कि नेताजी अब अफसर को राजनीतिक रुप से नुकसान नहीं पहुंचाएंगे और अफसर भी नेताजी को किसी संकट में नहीं डालेंगे। यानी तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय। नेताजी कांग्रेस के बड़े प्रभावशाली नेताओं में शुमार हैं तो अफसर कुछ महीनों से चर्चा में बने हुए हैं।
जेल से बचाने 150 करोड़ की डिमांड
अब हम आपको बताते हैं डील के बाद एक और डील की डिमांड की कानाफूसी। यहां पर दो अफसरों की डिमांड और सप्लाई का फॉर्मूला लागू होता है। एक आबकारी अधिकारी मुश्किल में हैं। अब मुश्किल में तो होंगे ही क्योंकि पिछली सरकार में इन्होंने खूब माल कमाया है। किसी घोटाले में भी इनका नाम शामिल है।
अब इनका वजन हलका करने के लिए एक बड़े आईपीएस अफसर सामने आ गए हैं। ये दिमाग का बोझ हलका करने के लिए जेब का बोझ हलका करना चाह रहे हैं। इन्होंने पूरे 150 करोड़ की डिमांड की है। डिमांड भी पूरे टशन और भौकाल में की है। अब आबकारी अधिकारी की जान सूख गई है। अभी तक 150 करोड़ नहीं पहुंचाए गए हैं इसलिए सब कुछ ऑन गोइंग है।
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जीपी सिंह की इंट्री ने बिगाड़ा खेल
अब आपको बताते हैं छत्तीसगढ़ के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों का पारा बढ़ा रही एक और खबर। राज्य में डीजीपी का पद त्रिकोण में फंस गया है। संघ की पसंद एक ईमानदार अफसर हैं जो वरिष्ठता के क्रम में आगे हैं। सरकार की पसंद दूसरे अधिकारी की है जो चालाक और तिकड़मबाज माने जाते हैं। यहां तक तो ठीक है लेकिन यहां पर कहानी दूसरी है। आईपीएस का गठजोड़ किसी तीसरे को डीजीपी चाहता है। यह गठजोड़ किसी खास के इशारे पर काम करता है।
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इस गठजोड़ के हिसाब से ही अफसर तय होते हैं और पूरे पुलिस तंत्र की कमान भी इनके ही हाथों में है। नए डीजीपी के लिए इन्होंने एक अधिकारी को तैयार किया था लेकिन वहां पेंच आ गया है। अब यहां पर जीपी सिंह की इंट्री हो गई है। उनको क्लीन चिट मिल गई है। अब यह गठजोड़ ऐसे अधिकारी को डीजीपी बनाना चाहता है जो भले ही पूरी तरह से उनके गुट का न हो लेकिन उनके फॉर्मूले में फिट हो जाए। देखिए किसकी चलती है और आगे आगे होता है क्या।