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छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सीएम के रुप में एक साल पूरा कर लिया है। 13 दिसंबर 2023 को उन्होंने नई सरकार के मुखिया के तौर पर शपथ ली थी। वक्त का कमाल देखिए कि 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट कट गया जबकि वे मोदी की पहली पारी में केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे। लेकिन चार साल में ही समय का पहिया ऐसा घूमा कि वे सीधे सीएम की कुर्सी पर बैठ गए। उन्होंने ग्राम पंचायत के पंच से मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है। अब विष्णुदेव साय को सीएम के रुप में एक साल पूरा हो गया है। आइए आपको बताते हैं कि वे कौन से कारण है जिससे विष्णुदेव पीछे की पंक्ति से पहली पंक्ति में आ गए।
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पंच से सीएम तक का सफर
मुख्यमंत्री के रुप में विष्णुदेव साय को एक साल पूरा हो गया है। उन्होंने पंच से लेकर सीएम तक तक लंबा सियासी सफर तय किया है। राजनीति की फिसलन भरी राह पर इतना लंबा रास्ता तय करना आसान नहीं होता। वो भी उस आदिवासी चेहरे के लिए जो छत्तीसगढ़ के सुदूर अंचल के छोटे से गांव से ताल्लुक रखता हो।
अलग छत्तीसगढ़ बनने के बाद पहली चौथी बार बीजेपी के हाथ में सत्ता की बागडोर आई है,जिसमें ये पहला मौका है जब आदिवासी राज्य को बीजेपी की तरफ से आदिवासी मुख्यमंत्री की ताजपोशी की गई है। ऐसा नहीं है कि विष्णु को यह पहला मौका है जब वे राजनीति में किसी मुकाम पर पहुंचे हैं। वे तीन बार विधायक,चार बार सांसद, एक बार केंद्रीय मंत्री और दो बार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।
पहले हम आपको दिखाते हैं विष्णुदेव साय का पूरा सियासी सफर।
_ 1989 में ग्राम पंचायत बगिया के पंच बने और अगले साल निर्विरोध सरपंच बन गए।
_ 1990 में जशपुर जिले की तपकरा सीट से विधायक चुने गए।
_ 1993 में दोबारा विधायक बने
_ 1998 में पत्थरगांव सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन हार गए।
_ 1999 में रायगढ़ सीट से सांसद बने
_ 2004 में रायगढ़ से दूसरी बार सांसद
_ 2009 में रायगढ़ से तीसरी बार सांसद
_ 2014 में रायगढ़ से तीसरी बार सांसद
_ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल में उनको केंद्रीय खान एवं इस्पात राज्य मंत्री बनाया गया।
_ 2019 में वे उन सांसदों में शामिल थे जिनका टिकट काटा गया था।
_ वे 2006 से 2010 तक पहली बार और फिर जनवरी-अगस्त 2014 तक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रहे।
_ 2023 में कुनकुरी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए।
_ 13 दिसंबर 2023 को प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ली।
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इसलिए मोदी की पसंद बने विष्णु
बीजेपी ने जब पांच साल बाद प्रदेश में अच्छी जीत हासिल की तब सामने ये सवाल आया कि आखिर सीएम किसको बनाया जाए। उस समय सीएम के दावेदार के रुप में कई चेहरे थे। पूर्व सीएम रमन सिंह, प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव, सीनियर लीडर बृजमोहन अग्रवाल और दावेदारी कर रहीं महिला चेहरा रेणुका सिंह। लेकिन बीजेपी में अब बदलाव आ गया है,यह नई बीजेपी मोदी और शाह की बीजेपी मानी जाने लगी है। नरेंद्र मोदी चौंकाने वाले फैसले में माहिर माने जाते हैं।
उनके नए चेहरे के प्रयोग का फॉर्मूला सबकी धड़कनें बढ़ाए हुए था। हालांकि बीजेपी की राजनीति में कभी हाशिए या अंतिम पंक्ति में नहीं रहे लेकिन वे उस वक्त दावेदारों में शुमार नहीं थे। हुआ भी वही जो लोगों को अचंभे में डालने वाला था। विधायक दल का नेता विष्णुदेव साय को चुना गया। रमन सिंह ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और अरुण साव और बृजमोहन अग्रवाल ने उनके नाम का समर्थन किया। इस तरह विष्णुदेव साय प्रदेश में बीजेपी की पहली पंक्ति में आ गए। यहां पर सवाल ये उठता है कि आखिर मोदी को विष्णु ही क्यों पसंद आए। इसके कई कारण माने जा सकते हैं।
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_ विष्णु को सीएम बनाकर मोदी छत्तीसगढ़ जैसे आदिवासी राज्य में आदिवासी सीएम बनाकर जनजाति वर्ग को उनका हितेषी होने का संदेश देना चाहते थे।
_छह महीने बाद लोकसभा चुनाव में फायदे के नजरिए से भी इस फैसले को देखा गया।
_ विष्णु का सरल और निर्विवाद होना भी उनकी खूबी मानी गई।
_ उनकी रमन सिंह से निकटता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के नाते सबके बीच में सहज उपलब्धता को भी उनकी मेरिट के रुप में देखा गया।
_ विष्णु नया चेहरा थे लेकिन उनको केंद्रीय मंत्री के रुप में प्रशासनिक अनुभव,प्रदेश अध्यक्ष के रुप में संगठनात्मक अनुभव और चार बार सांसद के रुप में कार्यकर्ताओं और जनता से जुड़ाव का अनुभव भी था।
_ इन सभी आधार को देखते हुए मोदी ने उनके नाम पर मुहर लगाई।
क्या प्लस - क्या माइनस
किसी का भी एक साल कार्यकाल उसके मूल्यांकन के लिए बहुत ज्यादा नहीं तो बहुत कम भी नहीं माना जाता। हालांकि पहला साल चुनौतियां भरा होता है। लेकिन सरकार की दिशा और मुखिया की कार्यशैली से उसकी प्रशासनिक क्षमता की झलक जरुर मिल जाती है। सबसे पहले वे काम देखते हैँ जहां पर मुखिया के रुप में उनको अच्छे नंबर दिए जा सकते हैं।
विधानसभा चुनाव फ्रीबीज देने की घोषणाओं का अतिरेक था। बीजेपी ने उन फ्रीबीज को मोदी की गारंटी का नाम दे दिया था। लिहाजा सीएम के सामने मोदी की गारंटी पूरी करने आवश्यकता भी थी और अनिवार्यता भी। सामने लोकसभा चुनाव थे और मोदी का चेहरा था तो इन गारंटी से सीएम अपना मुंह फेर भी नहीं सकते थे। लिहाजा मोदी की गारंटी धड़ाधड़ पूरी हुईं। लोकसभा चुनाव के पहले उन सभी गारंटी को पूरा कर दिया गया जो सीधे तौर पर जनता को प्रभावित करती थीं।
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_ 70 लाख महतारी बनाकर उनको एक हजार रुपए महीने दिया
_ किसानों को बोनस का पैसा दिया
_ किसानों को धान में अंतर की राशि दी गई।
_ तेंदूपत्ता संग्राहकों के लिए तेंदूपत्ता की खरीदी का मूल्य बढ़ाया गया।
_ धान की 3100 रुपए प्रति क्विंटल के रुप में खरीदी।
_ कर्मचारियों को केंद्र के समान महंगाई भत्ता।
_ नक्सली मोर्चे पर सफलता
_ लोकसभा चुनाव में 11 में 10 सीटों पर जीत।
_ रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट के उपचुनाव में जीत।
यानी सरकार पहले साल में मोदी की गारंटी ही पूरी कर पाई। इसमें कुछ नवाचार नजर नहीं आया। महापौर और नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने का फैसला जरुर नया माना जा सकता है। हालांकि ये अलग बात है कि लोकसभा चुनाव के कारण सरकार को काम करने के लिए एक साल में छह महीने का ही वक्त मिला। और आइए अब आपको बताते हैं कि किन मोर्चे पर सरकार का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा और वे चुनौतियां लगातार सीएम के सामने मुंह बाए खड़ी हैं।
_ कर्ज में डूबी सरकार ने कर्ज लेकर ही महिलाओं,किसानों और तेंदूपत्ता संग्राहकों को खुश किया।
_ सरकार पर लगातार कर्ज का बोझ बढ़ रहा है।
_ क्राइम अनकंट्रोल रहा। सीएम के इस एक साल के कार्यकाल में एक दर्जन ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनीं।
_ गृहमंत्री के गृह जिले में ही बड़ी आपराधिक वारदातें।
_ प्रशासनिक कसावट की कमी यानी बेलगाम नौकरशाही।
_अफसरों पर दबाव नहीं, अफसर चला रहे सरकार का आरोप
_ फ्रीबीज की घोषणाओं के पूरा करने में विकास कार्यों पर असर
_ धन की कमी से रोजगार की कई योजनाओं पर ताला
_ युवाओं के लिए व्यापम या पीएससी के जरिए नहीं हो पा रहीं परीक्षाएं
_ धान की खरीदी के प्रबंधन में कई प्रकार की अव्यवस्थाएं।
_ न निगम मंडलों में नियुक्ति हुई और न एक साल में मंत्रिमंडल विस्तार हो पाया। मंत्रियों के दो पद खाली।
_ कैबिनेट में आपस में टकराव
_ भ्रष्टाचार के कारण आधे मंत्री बदल चुके हैं अपना स्टॉफ
_ कमोबेश रोजाना पकड़ में आ रहे रिश्वतखोर अधिकारी_कर्मचारी
_ भूपेश सरकार की योजनाओं की जांच की घोषणा लेकिन जांच समितियां तक नहीं बनीं।
_ एक साल में रेडी टू ईट जैसी आदिवासी बच्चों और महिलाओं के पोषण से जुड़ी घोषणा तक पूरी नहीं।
_ कांग्रेस पर आक्रामक नहीं।
निकाय और पंचायत चुनाव में लिटमस टेस्ट
कांग्रेस लगातार सरकार पर हमलावर है,यह भी सीएम के लिए बड़ी चुनौती है। आने वाले समय में नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव हैं। यह चुनाव सरकार और खासतौर पर सीएम के लिए बहुत अहम हैं। यह चुनाव सरकार लिटमस टेस्ट भी माने जा रहे हैं। यानी इन चुनावों का रिजल्ट दिखाएगा कि सीएम एक साल में पास हुए या फेल।