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बिलासपुर। संपत्ति विवाद के मामले में सुनवाई को दौरान छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। दरअसल संपत्ति को लेकर छिड़े विवाद के मामले में एक पक्ष ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के आधार पर पुलिस ने FIR दर्ज कर ली।
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हाईकोर्ट ने रद्द की FIR
FIR के आधार पर ही पुलिस ने ट्रायल कोर्ट में आरोप पत्र भी पेश कर दिया। पीड़ित पक्ष ने पुलिस की इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने पुलिस की इस कार्रवाई को लेकर सख्त टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की खंडपीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है।
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'याचिकाकर्ता को मानसिक प्रताड़ित किया गया'
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच में मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि संपत्ति विवाद में पुलिस ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR दर्ज कर मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का काम किया । कोर्ट ने सिविल विवाद में एफआईआर दर्ज किए जाने को लेकर सवाल उठाया और एफआईआर को रद्द कर दिया है।
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याचिकाकर्ता ने FIR को दी चुनौती
बिलासपुर के रहने वाले दयालबंद निवासी रामेश्वर जायसवाल और एक और शख्स ने अपने वकील के जरिए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस की ओर दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने अर्जी में बताया है कि संपत्ति विवाद में शिकायत के आधार पर सिरगिट्टी ने 8 मार्च 2024 को एफआईआर दर्ज की गई है। इसके बाद 22 जून 2024 को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी की कोर्ट में चार्जशीट भी दायर कर दी गई।
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चार्जशीट को रद्द करने की मांग
याचिकाकर्ता ने दर्ज FIR के साथ ही निचली अदालत में पेश चार्जशीट को रद्द करने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने अपनी अर्जी में कहा है कि 27 फरवरी 2024 की शाम एक महिला दो लोगों के साथ उनके घर पहुंची। इस दौरान उसने गाली-गलौज करते हुए जान से मारने की धमकी दी। बाद में उन्हीं का पक्ष लेते हुए एक व्यक्ति वहां आया और उन लोगों को धमकी दी।
याचिकाकर्जा ने दी ये दलील
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सिविल विवाद में FIR दर्ज कराने के पीछे फरियादियों का 4.56 लाख रुपए की अवैध मांग को पूरा करवाना था। याचिका के मुताबिक थाने में शिकायत करने के पीछे और संपत्ति के कागजात लौटाने के बदले 4.56 लाख रुपए की मांग कर रहा था। राज्य सरकार की ओर से पैरवी करते हुए महाधिवक्ता कार्यालय के विधि अधकारी ने एफआईआर को सही ठहराया।
'कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग'
सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने कहा कि आपराधिक कानून का इस्तेमाल यहां अनुचित तरीके से दबाव बनाने के लिए किया गया। डिवीजन बेंच ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सिविल विवाद को जबरन आपराधिक रंग देना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट को बेहद सतर्क रहना चाहिए। डिवीजन बेंच ने एफआईआर, आरोप पत्र और न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए कहा कि इस तरह के प्रयासों को शुरुआती अवस्था में ही रोकना जरुरी है।
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