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Photograph: (the sootr)
RAIPUR.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर अब साइबर अपराधियों की पसंदीदा जगह बन गई है। यहां साइबर अपराध, ऑनलाइन सट्टा, ठगी जैसे अपराध आए दिन सामने आ रहे हैं। रायपुर पुलिस ने ऐसे ही एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए दस हजार से अधिक म्यूल बैंक खातों को पकड़ा है।
इन खातों से पचास करोड़ रुपए से अधिक की राशि का लेनदेन सामने आया है। पुलिस ने इन सभी खातों को होल्ड करवा दिया है। अब पुलिस इस रैकेट की जड़ तक जाने का प्रयास कर रही है। यह पूरी घटना साइबर क्राइम के बढ़ते खतरे को दर्शाती है।
म्यूल बैंक खाता धारक: साइबर ठगों के 'किराए' के एजेंट
रायपुर में म्यूल बैंक खाताधारकों की संख्या सबसे ज्यादा पाई गई है। ये वो लोग हैं जो पैसे के लालच में आकर अपने बैंक खातों का इस्तेमाल अवैध कामों के लिए करने की इजाजत दे देते हैं। ऐसे खातों का इस्तेमाल साइबर ठगों और ऑनलाइन सट्टेबाजी के गिरोहों द्वारा किया जाता है। इन खातों में साइबर ठग ब्लैक मनी और ठगी की रकम को आसानी से छुपा सकें।
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कैसे काम करता है ये रैकेट?
महादेव सट्टा ऐप जैसे सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म और साइबर ठगी के गिरोहों को म्यूल बैंक खातों की जरूरत होती है। ये लोग म्यूल खाताधारकों को उनके खातों का इस्तेमाल करने हर महीने ₹5,000 से ₹10,000 तक का किराया देते हैं। इसके अलावा, जो लोग साइबर ठगी करते हैं, वे भी इन खाताधारकों को हर लेनदेन पर कमीशन देते हैं।
क्यों आकर्षित होते हैं लोग?
इस 'किराए' और 'कमीशन' के लालच में कई युवा अपने निजी बैंक खाते ठगों और सटोरियों को दे देते हैं। म्यूल बैंक खातों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल साइबर ठगी जैसे डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन सट्टेबाजी में होता है।
पूरे सिस्टम में ये खाताधारक एक तरह से 'किराए के सिपाही' बन जाते हैं। इनका काम अवैध पैसों को सही ठिकाने पर लगाना होता है।
₹50 करोड़ रूपए होल्ड: पीड़ितों की अटकी रकम
रायपुर पुलिस ने 2024 के शुरुआत से अब तक 10,000 से ज्यादा म्यूल बैंक खातों की पहचान की है। इन खातों में साइबर ठगी से जुड़े मामलों में ₹50 करोड़ से ज्यादा की राशि होल्ड करवाई गई है। यह राशि उन लोगों की है, जिनसे साइबर ठगों ने धोखे से पैसे लिए थे। हालांकि, अब तक यह राशि पीड़ितों को वापस नहीं मिल पाई है। इसके पीछे कई कानूनी अड़चनें और समय की जरूरत है।
यह एक बहुत बड़ा कदम है, पुलिस साइबर ठगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर रही है। अब भी पैसे वापस लौटाने की प्रक्रिया लंबी हो सकती है।
क्या है 'डिजिटल अरेस्ट' ठगी?
डिजिटल अरेस्ट एक प्रकार की साइबर ठगी है, जिसमें ठग खुद को पुलिस या सरकारी अधिकारी बताकर पीड़ित को फोन करते हैं। वे पीड़ित को यह कहकर डराते हैं कि उनका नाम किसी गंभीर अपराध में आया है और उन्हें ऑनलाइन 'गिरफ्तार' किया जा रहा है। इसके बाद, जुर्माने या जमानत के नाम पर ठग पीड़ित से पैसे म्यूल बैंक खातों में ट्रांसफर करवा लेते हैं।
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कार्रवाई और गिरफ्तारी में अंतर
पुलिस द्वारा म्यूल बैंक खातों के खुलासे की संख्या काफी अधिक है। इसके अनुपात में आरोपियों की गिरफ्तारी की संख्या कम है।
गिरफ्तारियां: पुलिस अब तक 300 से अधिक लोकल म्यूल खाताधारकों को गिरफ्तार कर चुकी है।
जांच जारी: अन्य खाताधारकों की भूमिका की जांच अभी भी जारी है। साइबर रेंज थाना की विशेष टीम इन मामलों पर लगातार काम कर रही है।
प्रमाण आधारित कार्रवाई: पुलिस ने स्पष्ट किया है कि जांच के दौरान जिन खाताधारकों के खिलाफ सबूत मिलते हैं, उन्हें ही गिरफ्तार किया जाता है। कई मामलों की जांच अभी भी शुरुआती चरण में है।
बैंककर्मियों की मिलीभगत की आशंका
रायपुर में साइबर ठगों और ऑनलाइन सटोरियों के एजेंटों ने कई लोगों की मर्जी के बिना उनके नाम पर बैंक खाते खुलवा दिए हैं। इन खातों का इस्तेमाल धोखाधड़ी के लिए किया जा रहा था। खमतराई और गुढ़ियारी जैसे इलाकों में इस संबंध में कई एफआईआर दर्ज की गई हैं। साइबर पुलिस को शक है कि इस मामले में कुछ बैंककर्मियों की मिलीभगत भी हो सकती है।
धोखाधड़ी का तरीका
आरोपियों ने खाताधारकों के आधार कार्ड, पैन कार्ड, राशन कार्ड और मोबाइल नंबर जैसे पहचान दस्तावेज़ धोखे से हासिल किए। फिर इन दस्तावेज का इस्तेमाल बैंक खाता खुलवाने में किया। ये खाता खुलवाने का तरीका पूरी तरह से गैरकानूनी था, लेकिन अब बैंककर्मियों की मिलीभगत भी इस मामले में सामने आ रही है।
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