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प्रदेश में भारतीय चिकित्सा पद्धति को लोकप्रिय बनाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन काम कर रहा एक विभाग भ्रष्टाचार का गढ़ बन गया है। इस विभाग ने डाक्टरों सहित अन्य कर्मचारियों की भर्ती के नाम पर छह करोड़ से ज्यादा की वसूली कर ली। अब वसूली के इस माल के बटवारे पर अधिकारियों में आपस में जंग छिड़ गई है। मामला ऐसा है कि कुछ महीने पहले इस विभाग में डॉक्टर के 150 और PG डॉक्टर के 25 पदों को मिलाकर 400 पदों पर भर्ती की गई। विज्ञापन निकाला गया मेरिट लिस्ट बनी और 800 से अधिक लोगों का साक्षात्कार लेकर इन सभी पदों पर एक वर्ष के लिए नियुक्ति की गई। इस विभाग में डॉक्टर की पगार करीब 40 हजार और PG डॉक्टर की पगार करीब 60 हजार रुपए प्रतिमाह होती है। इस विभाग के अधिकारियों ने भर्ती के बदले डॉक्टरों से 5 लाख और PG डॉक्टरों से 7 लाख रुपयों की उगाही कर ली। जो उनकी पूरी एक साल की सैलरी होती है। हालांकि सभी अभ्यर्थियों ने रिश्वत नहीं दी लेकिन अधिकांश डॉक्टर वसूली का शिकार हो गए। जानकारी के मुताबिक इस विभाग में मेरिट के आधार पर भर्ती होनी थी, लेकिन यहां वर्षों से जमे एक उच्च अधिकारी ने साक्षात्कार का नियम लागू किया और जिन डॉक्टरों से पैसे लिए उन्हें अच्छे अंक देकर दूसरों से आगे कर नियुक्ति दे दी। इसमें भी जिन डॉक्टरों ने रिश्वत की राशि थोड़ी बढ़ा दी उन्हें मनचाही पदस्थापना मिल गई। बताया जा रहा है कि इस अवैध वसूली के लिए तात्कालीन आईएएस संचालक को भी इसमें शामिल किया गया। सूत्रों की मानें तो उस समय की संचालक मैडम को शक हुआ कि उन्हें लूट का कम हिस्सा दिया जा रहा है तो उन्होंने साक्षात्कार के दौरान आवेदकों से वोटिंग रूम में जाकर पूछताछ की तो उन्हें लूट की असली राशि का पता चला, फिर क्या था संचालक मैडम अधिकारियों पर बरस पड़ी कि उनके हिस्से में कटौती क्यों की गई। विभाग के अधिकारियों ने जैसे तैसे संचालक मैडम को तो साध लिया लेकिन रिश्वतकांड की जानकारी सरकार के पास पहुँच गई और इसका खामियाजा मैडम जी को ही उठाना पड़ा सरकार ने उन्हें लूप लाइन में डाल दिया जहां से निकलने के लिए मैडम जी आज भी जोर लगा रही हैं। अब मैडम जी वापस इस विभाग में आने की इच्छुक हैं लेकिन यह कभी हो नहीं पाएगा क्योंकि इस विभाग में संचालक रह चुके एक आईएएस अधिकारी वर्तमान में बहुत शक्तिशाली पद पर बैठे हैं और वे इस विभाग की करतूतों से वाकिफ हैं। इस विभाग में संचालक का पद विभाग के ही वरिष्ठ अधिकारी को दिया जाता है लेकिन यहां के भ्रष्ट वातावरण के चलते सरकार आईएएस अधिकारी की नियुक्ति करती है यह जानते हुए भी विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी संचालक की कुर्सी पर नजर गड़ाए हुए हैं। अब सवाल उन डाक्टरों और कर्मचारियों का है जिन्होंने लगभग एक साल की सैलरी इन अधिकारियों को रिश्वत में दे दी। बताते हैं कि अब विभाग के पास इन्हें सैलरी देने के पैसे भी नहीं हैं सैलरी मिल भी गई तो इस बात की गारंटी नहीं है कि एक साल बाद इनके अनुबंध का नवीनीकरण हो जाएगा??? इससे विभाग को क्या फर्क पड़ता है उन्हें तो रिश्वत मिल गई।
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रेत तस्करों के लिए कलेक्टर से भिड़े मंत्री जी
पूरे राज्य में रेत का अवैध खनन करने वालों पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सख्ती कर रहे हैं इसके लिए उन्होंने कलेक्टरों को निर्देश दिया है कि इस मामले में किसी को न बक्शा जाए। बीते दिनों बेमेतरा के कलेक्टर ने रेत तस्करों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए पूरे जिले में अलग अलग स्थानों पर रेत से भरी लगभग 70 गाड़ियां जब्त कर ली। इसके बाद तो जैसे हड़कंप मच गया रेत माफिया गाड़ियां छुड़ाने के लिए दबाव बनाने लगा। बेमेतरा के पडोसी जिले से आने वाले एक प्रभावशाली मंत्री ने अपने समर्थकों की गाड़ियां छेड़ने के लिए बेमेतरा कलेक्टर पर दबाव डाला लेकिन कलेक्टर साहब टस से मस नहीं हुए। उन्होंने मंत्री जी से साफ़ कह दिया कि आप मुख्यमंत्री से बात कर लीजिए। मंत्री जी ने मुख्यमंत्री साय से भी बात की लेकिन उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए यह कहकर कि मैं अपना आदेश वापस नहीं लूंगा। अब मंत्री जी अपने तस्कर चिंटुओं को समझा नहीं पा रहे हैं कि कलेक्टर उनकी सुन नहीं रहा। बात केवल बेमेतरा जिले की नहीं है मंत्री जी अपने खुद के जिले में पुलिस अधीक्षक से भी काम नहीं करवा पा रहे हैं जबकि वो उसी विभाग के मंत्री हैं। तीन चार दिन पहले उनके जिले के एसपी और जिला पंचायत के एक पदाधिकारी के बीच गरमागरम बहस हो गई। जिला पंचायत के ये पदाधिकारी मंत्री जी के ख़ास बताए जाते हैं। मामला एक सिपाही के तबादले का था जिसे एसपी साहब ने अनसुना कर दिया। इस मामले में भी मंत्री जी पर उनके ही विभाग का अफसर हावी हो गया। जब एसपी ना सुने कलेक्टर ना सुने तो क्या फायदा प्रदेश में नंबर दो होने का।
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पैसा है तो बन जाओ कुलगुरु
सामान्यतः सभी राज्यों में राजनीति का एक पैटर्न है कि विपक्षी दल सरकार की शिकायत राज्यपाल से करते हैं, ज्ञापन देते हैं,मांग करते हैं, लेकिन जब राज्यपाल से ही दिक्कत हो तब दुविधा बढ़ जाती है।छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ ऐसा ही हो रहा है। भाजपा की सरकार बनने के बाद से राज्यपाल पर कांग्रेस के हमले तेज हो गए हैं। सरकार में रहते हुए भी कांग्रेस उस समय के राज्यपाल पर आरोप लगाती रही कि एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण बिल को राजभवन में जानबूझकर रोका गया है हालांकि यह बिल अब भी राजभवन में ही है । अब नए राज्यपाल से भी कांग्रेस को दिक्कत है कांग्रेस नेताओं का कहना है कि राज्यपाल एक मुख्यमंत्री की तरह जिलों में समीक्षा बैठक लेते हैं जबकि यह उनका काम नहीं है। इसी तरह प्रदेश के विश्वाविद्यालयों में की जा रही कुलपतियों की नियुक्तियां भी सवालों के घेरे में हैं। कांग्रेस तो खुला आरोप लगा रही है कि प्रदेश में कुलपति का पद बेचा जा रहा है, बताया जाता है कि पत्रकारिता के एक विश्वविद्यालय को छोड़कर शेष सभी विश्वविद्यालयों में कुलपति के लिए दो से चार करोड़ तक की बोली लगी। कला एवं संगीत के एकमात्र विश्वविद्यालय में हुई नियुक्ति को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। जरा सोचिए रिश्वत देकर बने कुलगुरु शिक्षा का क्या हश्र करेंगे।
क्या सुब्रत और पिंगुआ नहीं बनेंगे CS
प्रदेश में मुख्यसचिव का चयन होते होते अचानक रुक गया और मुख्यसचिव अमिताभ जैन को तीन माह का एक्सटेंशन मिल गया। मतलब अब अटकलों का बाजार तीन माह तक और सजा रहेगा। इस घटना के बाद सत्ता के गलियारों में तरह तरह की चर्चा हो रही है। कोई इसे राज्य सरकार की हार बता रहा है तो कोई केंद्र का अनावश्यक दखल। साय सरकार की केबिनेट की बैठक में नए मुख्यसचिव का ऐलान होने ही वाला था कि अचानक माइक्रोफोन बंद हो गया और बिना माइक के घोषणा कुछ और हो गई। इसके बाद कुछ सवाल सामने आ रहे हैं कि प्रदेश के भाजपा नेता अमिताभ जैन के एक्सटेंशन का लखित में विरोध कर चुके थे तो फिर उन्हें एक्सटेंशन क्यों मिल गया। क्या सरकार जिसे मुख्यसचिव बनाने जा रही थी उस नाम पर केंद्र को आपत्ति थी। क्या केंद्र की मंशा को राज्य के नेता समझ नहीं पाए। ऐसे कई सवाल गलियारों में तैर रहे हैं, परन्तु बड़ा सवाल तो अपनी जगह अब भी कायम है कि तीन माह बाद ही सही आखिर मुख्य सचिव होगा कौन??? विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि सरकार एसीएस सुब्रत साहू को CS बनाने जा रही थी जबकि हल्ला मनोज पिंगुआ के नाम का था। केबिनेट की बैठक के पहले पिंगुआ को बधाई भी मिलने लगी थी लेकिन एक झटके में "जज्बात बदल गए हालात बदल गए" वाली स्थिति निर्मित हो गई। केंद्र की आपत्ति के बाद अब यह माना जा रहा है कि सुब्रत साहू और मनोज पिंगुआ का अब CS बनना आसान नहीं रह गया और यह भी तय हो गया है कि केंद्र ही मुख्यसचिव के नाम का चयन करेगा। इसीलिए मुख्यसचिव की नियुक्ति पर केंद्र ने स्थगन लगा दिया। अचानक बदली परिस्थितियों में केंद्र सरकार में सेवा दे रहे आईएएस अमित अग्रवाल और प्रदेश की एसीएस श्रीमती रेणु पिल्लई का नाम ऊपर आ गया है।
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