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रायपुर (कृष्ण कुमार सिकंदर) : छत्तीसगढ़ के पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद कहा था कि हार कर संन्यास नहीं लेंगे। सिंहदेव ने बात यूं ही नहीं कही थी। उन्हें अपनी ही सरकार में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इशारे में बार-बार अपमानित किया जाता रहा। ढाई-ढाई साल के फार्मूले की बात हो या बतौर मंत्री कामकाज की खुली छूट न होने की, भूपेश बघेल ने सिंहदेव को बढ़ने नहीं दिया। भूपेश बघेल ने उनके गुट के विधायकों को भी अपने पाले में कर उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर करने की कोशिश की। यह सब यह उनके मन में टीस है। यही वजह रही कि सरगुजा नरेश ने भी अपने अपमान को बदला लेने का संकल्प ले लिया।
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टूट गई जया बीरू की जोड़ी
प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस में पहले दिन से ही मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान जारी थी। इसको लेकर दिल्ली में हुई हाईकमान की बैठक के बाद ताम्रध्वज साहू को मुख्यमंत्री चुन लिया गया और उन्हें शपथ ग्रहण की तैयारी का आदेश मिला। इधर, ताम्रध्वज साहू रायपुर के लिए उड़े, उधर उनके साथ खेल हो गया। ताम्रध्वज रायपुर पहु्ंचे तो पता चला कि भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री चुन लिया गया। साथ ही राजनीति हलके में यह भी चर्चा रही कि मुख्यमंत्री पद के लिए ढाई-ढाई साल का फार्मूला तय हुआ है। इसके मुताबिक पहले ढाई साल भूपेश बघेल और दूसरे ढाई साल टीएस सिंहदेव उर्फ बाबा मुख्यमंत्री रहेंगे। इसके बाद भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव साथ साथ लौटे। तब कहा गया कि जय बीरू की जोड़ी है। मगर ढाई साल बाद जब भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री पद छोड़ने से मना कर दिया तो जया बीरू की जोड़ी टूट गई।
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बघेल और सिंहदेव के बीच चौड़ी हुई खाई
टीएस सिंहदेव का भूपेश बघेल से मोहभंग हुआ तो वह अपने समर्थक विधायकों का कूनबा जोड़ना शुरू किया। इस बीच, राजनीतिक गलियारे में चर्चा थी कि सिंहदेव और उनके समर्थक विधायक सरकार से बगावत कर सकते हैं। इस दौरान दिल्ली में हाईकमान के सामने कथित सिंहदेव समर्थक विधायकों ने अपनी ताकत दिखाई। हालांकि बीजेपी के पास भी विधायकों की संख्या उतनी नहीं थी कि सिंहदेव समर्थक बगावत करते हैं तो सरकार बना सके। इसके बावजूद भूपेश बघेल कील कांटा दुरुस्त करने में लग गए और कथित सिंहदेव समर्थक विधायाकों को अपने पाले में मिला लिया। इससे भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच खाई और चौड़ी हो गई।
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बतौर मंत्री भी सरकार पर हमलावर रहे बाबा
भूपेश बघेल से राजनीतिक धोखा खाने के बाद भी सिंहदेव शांत रहे और खूद को कांग्रेस सच्चा सिपाही बताते रहे। मगर, अपने बेवाक अंदाज से सरकार को कटघरे में खड़ा करने से पीछे नहीं रहे। इस बीच, सिंहदेव ने प्रधानमंत्री आवास में गड़बड़ी का सवाल उठाया और गरीब ग्रामीणों को प्रधानमंत्री आवास नहीं दे पाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए ग्रामीण विकास और पंचायत मंत्री पद से इस्तीफा देकर भूपेश बघेल के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी। इसके बाद भी सिंहदेव नहीं रूके। वह समय समय पर सरकार की कई नीतियों की खुलकर आलोचना करते रहे। इसके बाद, कांग्रेस संगठन ने सिंहदेव की नाराजगी हाईकमान तक पहुंचाई। हाईकमान हरकत में आया और आनन फानन में सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाकर दरार पाटने की कोशिश की। मगर तब तक देर हो चुकी थी। हाईकमान का प्रयास राजनीतिक धोखे की खाई फुस से ढकने जैसा था।
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महाराज की नाराजगी पड़ी भारी
सिंहदेव यानी बाबा की नाराजगी को असर यह हुआ कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सरगुजा संभाग में खाता तक नहीं खुला। साथ ही कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। 15 साल बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस ने मात्र पांच साल में जनता का विश्वास खो दिया। भूपेश को सत्ता से बाहर कर बाबा ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया, लेकिन भूपेश हाईकमान का भरोसा बचाने में कामयाब रहे। इसी साल फरवरी में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ने घोषणा की कि अगला विधानसभा चुनाव महाराज यानी बाबा के नेतृत्व में लड़ेगे तो भूपेश बघेल नाराज हो गए। माना जा रहा है कि राजनीतिक अदावत के कारण बाबा को भूपेश का कद बड़ा होना रास नहीं आया। वह आज भी खार खाए बैठे हैं। यहीं वजह है कि आज भी उनके बयान में भूपेश बघेल टारगेट पर होते हैं।
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सिंहदेव का संकल्प कांग्रेस पर काल
सिंहदेव और भूपेश की अदावत का असर प्रदेश कांग्रेस पर पड़ रहा है। सिंहदेव की नाराजगी के कारण सरगुजा संभाग यानी उत्तर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हालत पतली है। दक्षिण में आदिवासी बनाम धर्मांतरित आदिवासी के टकराव के कारण कांग्रेस की पकड़ कमजोर हो चुकी है। मध्य छत्तीसगढ़ में भाजपा का खासा प्रभाव है। ऐसे में सिंहदेव का संकल्प भूपेश बघेल के साथ कांग्रेस पर भारी पड़ सकता है।
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