दवा खरीदी के घोटाले में सरकार को 700 करोड़ का घाटा, अफसरों की मिलीभगत

एसीबी और ईओडब्ल्यू के दफ्तर में घोटाले में शामिल रहकर मोटी कमाई करने वाले अफसरों की कुंडली खंगाली जा रही है। दवा सप्लायर मोक्षित कंपनी के डायरेक्टर शंशाक चोपड़ा से मिली जानकारी के बाद अब अफसरों को तलब किया जाने लगा है।

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Arun Tiwari
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The government has suffered a loss of Rs 700 crore in the medicine purchase scam the sootr
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छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कार्पोरेशन यानी सीजीएमएससी की दवा खरीदी में किए गए घोटाले की परतें जैसे-जैसे उधड़ रही हैं वैसे-वैसे अफसरों के होश फाख्ता हो रहे हैं। घोटाले के इन जख्मों पर न दवा काम आ रही है और न ही दुआ। एसीबी और ईओडब्ल्यू के दफ्तर में घोटाले में शामिल रहकर मोटी कमाई करने वाले अफसरों की कुंडली खंगाली जा रही है।

दवा सप्लायर मोक्षित कंपनी के डायरेक्टर शंशाक चोपड़ा से मिली जानकारी के बाद अब अफसरों को तलब किया जाने लगा है। यह घोटाला पिछले 10 साल से चल रहा था। इस घोटाले से सरकार को 700 करोड़ का चूना लगा है। आइए आपको बताते हैं कि किस तरह अफसरों के किए गए घोटाले के जख्मों पर जांच का नमक छिड़का जा रहा है।    

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काम आती दवा न दुआ 

सीजीएमएससी और दवा कंपनियों के गठजोड़ से छत्तीसगढ़ में पिछले दस साल से दवा खरीदी का गोरखधंधा चल रहा है। अब इसकी परतें उधड़ रही हैं तो अफसरों को न दवा काम आ रही है और न ही दुआ असर कर रही है। पिछले दस साल में कई अफसर मोटी कमाई कर चुके हैं।

दवा सप्लायर मोक्षित कार्पोरेशन के डायरेक्टर निखिल चोपड़ा ने पूछताछ में कई राज उगले हैं। इस पूछताछ के बाद कई अफसरों पर शक की सुई घूम रही है। अब अफसरों की पूछताछ की बारी आ गई है। सूत्रों की मानें तो जांच एजेंसी सीजीएमएससी के तत्कालीन जीएम बसंत कौशिक, वर्तमान जीएम कमलकांत पाटनवार, वित्त अधिकारी रहीं मीनाक्षी गौतम, बायो मेडिकल इंजीनियर क्षीरोद्र रावटिया,जीएम मेडिसिन हिरेन मनुभाई पटेल और स्वास्थ्य विभाग के उपसंचालक आनंद राव व डॉ अनिल परसाई से पूछताछ कर चुकी है। उनसे मिली जानकारी अनुसार स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन संचालक भीमसिंह और सीजीएमएससी के एमडी रहे चंद्रकांत वर्मा और पद्मनी भोई साहू को पूछताछ के लिए नोटिस जारी जारी किया गया।  

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अफसरों का स्वास्थ्य खराब 

विधानसभा के शीतकालीन सत्र में यह मामला गरमाया तो स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने इसकी जांच कराने की घोषणा कर दी। उस समय कार्पोरेशन के एक अधिकारी को दिल का दौरा पड़ गया था। 20 दिनों तक हॉस्पिटल में रहने के बाद वे काम पर लौटे थे। मोक्षित कारपोरेशन के संचालक शशांक चोपड़ा की गिरफ्तारी के बाद कुछ अधिकारी छुट्टी पर भी चले गए। किसी ने अपने पिता की बीमारी का हवाल दिया तो किसी ने कोई और कारण बताया।

अब फिर विधानसभा का बजट सत्र आने वाला है तो छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विस कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने अपने ऑफिस में चौकसी बढ़ा दी है। आने जाने वालो का नाम पता और मिलने का कारण की रजिस्टर में एंट्री करने के बाद ही कार्यलय में प्रवेश दिया जा रहा है। इसके लिए सुरक्षागार्ड के साथ एक सविंदाकर्मी क्लर्क को तैनात किया गया है। 

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सरकार को 700 करोड़ का चूना 

सीजीएमएसी की जांच में नए खुलासे हुए हैं। कार्पोरेशन के अधिकारियों ने दवा कंपनी के सप्लायरों से मोटा कमीशन लिया है। ईओडब्लू में दर्ज एफआईआर के मुताबिक कर्पोरेशन के अफसरों और सप्लाई कंपनी के मिलीभगत से सरकार को करीब 700 करोड़ का नुकसान हुआ है। मेडिकल कार्पोरेशन की शुरुआत साल 2010 में हुई थी। साल 2016 के बाद से धड़ल्ले से फर्जीवाड़ा चल रहा है। अधिकारियों ने दवा कंपनियों से मोटा कमीशन लेकर घटिया किस्म की दवाइयां और रीजेंट की खरीदी कीमत से पांच से दस गुना ज्यादा में खरीदी की गई। यानी ये मामला एक या दो साल का नहीं बल्कि पिछले दस साल का है। 

ये रहे साल 2016- 2024 तक कार्पोरेशन के एमडी 

 
आईएफएस वी रामाराव, आईएएस नरेंद्र सर्वेश भूरे, निरंजन दास, भुवनेश यादव, नीरज बंसोड़, सीआर प्रसन्ना,कार्तिकेय गोयल,अभिजीत सिंह, चंद्रकांत वर्मा और वर्तमान में पद्मनी भोई साहू है। तो स्वास्थ्य संचालक रहे आईएएस आर प्रसन्ना, नरेंद्र कुमार शुक्ला, रानू साहू, आर प्रसंन्ना, प्रियंका शुक्ल, शिखा राजपूत तिवारी, नीरज बंसोड़, भीम सिंह, जयप्रकाश मौर्या, ऋतुराज रघुवंशी और वर्तमान में डॉ प्रियंका शुक्ला है। 

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ऐसे मिली मोक्षित को एंट्री 

 
दुर्ग की कंपनी मोक्षित कॉर्पोरेशन को साल 2016 में तत्कालीन सरकार और अफसरों के सहयोग से दवा सप्लाई के लिए एंट्री मिली। उसके बाद मोक्षित का इस काम में एक तरफा राज हो गया। एक तरीके से मोक्षित कॉर्पोरेशन, सीजीएमएससी को चलाने लगा। जांच में ये भी पता चला है कि सप्लायर कंपनी के अनुसार अधिकारियों और कमर्चारियों की पोस्टिंग होती गई और घोटाले का खेल चलता रहा है। साल 2020 यानी कोरोना काल में दवा और उपकरण खरीदी में भारी भ्रष्टाचार हुआ।

बिना बजट और स्वीकृति के 650 करोड़ का रीजेन्ट खरीदा गया। ईओडब्लू के एफआईआर अनुसार रीएजेन्ट की खरीदी मोक्षित कारपोरेशन के कैमिकल को ख़राब होने से बचाने ख़रीदा गया, और 25 दिनों के भीतर सप्लाई ऑर्डर देकर प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डंप कर दिया गया।

अधिकारियों के सहयोग से 650 करोड़ का रीएजेंट सप्लाई हुआ और भुगतान होने के पहले मामला सत्ता परिवर्तन होने से उलझ गया। सीएजी की ऑडिट में गड़बड़ी की पुष्टि हुई। ऑडिट रिपोर्ट अनुसार साल 2016 से लेकर 2022 तक जमकर खेला हुआ। इन सात सालों में 3753.18 करोड़ रुपये की दवाई और मेडिकल उपकरण ख़रीदे गए।  जिसमें भ्रष्टाचार हुआ।

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