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रायपुर : कुलपति डॉ आरएस कुरील का कच्चा चिट्ठा जांच कमेटी की रिपोर्ट में सामने आ गया है। कुरील भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हैं। उन पर पहले भी महू और रांची यूनिवर्सिटी में कुलपति रहते भ्रष्टाचार के आरोप लगे जिसके कारण उनको पद से हटाया भी गया। इस बार कुरील ने नियुक्ति प्रक्रिया से कुल सचिव को भी बाहर कर दिया। जबकि नियमानुसार दस्तावेजों पर साइनिंग अथॉरिटी कुल सचिव ही होता है। जांच कमेटी के सामने कुरील गोलमाल बातें कर अपने नियमों को सही ठहराते रहे। कुरील ने ये भर्ती करने के लिए यूजीसी से आए स्कोर कार्ड को ही बदल दिया। उन्होंने अपने मन से अपना नया स्कोर कार्ड बनाया और उसी आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर और नॉन शैक्षणिक स्टॉफ की भर्ती कर डाली। जब इतना सब कुछ किया है तो जाहिर है उंगलियां तो उठेंगी ही। इस भर्ती प्रक्रिया में शामिल हुए योग्य उम्मीदवारों ने जांच कमेटी के सामने ये शिकायत की है कि 30-35 लाख रुपए में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद बेचे गए हैं। आइए आपको बताते हैं कुलपति का पूरा कच्चा चिट्ठा।
कुल सचिव को नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर रखा
कुल सचिव को इस पूरी नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर रखा गया। कुल सचिव ने जांच कमेटी को बताया कि स्कोर बोर्ड अधिष्ठाताओं की समिति ने तैयार किया। इस समिति मैं शामिल नहीं था। इस स्कोर बोर्ड का कुलपति ने अनुमोदन किया। कुल सचिव ने बताया कि उनको प्रशासनिक एवं वित्तीय अधिकार से वंचित, चयन समिति से बाहर और जारी होने वाले आदेश-निर्देश से बाहर रखा गया। इसकी जानकारी राजभवन के सचिव को भी दी गई। कुल सचिव ने कहा कि उन्होंने राजभवन से इस भर्ती विज्ञापन पर रोक लगाने,जांच कराने और नए स्कोर कॉर्ड के बारे में भी कहा गया। मुझे स्थापना से भी अलग रखा गया जबकि नियमानुसार कुल सचिव के पास यह अधिकार हैं। उन्होंने कहा कि मुझे इंटरव्यू से दूर रखा गया। चयन समिति की अनुशंसा किसके द्वारा बनाई जा रही है। लिफाफा कब कौन बंद कर रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं थी। चयन समिति की अनुशंसाएं,अंतिम स्कोर कार्ड,चयन सूची सब कुछ कुलपति के पास रखी गई थीं। स्कोर बोर्ड की प्रक्रिया भी गलत थी। कुलपति ने मुझे ऑर्डर देकर साइन करवाए। कुल सचिव के पूछने पर कुलपति ने कहा कि सारी प्रक्रिया यूजीसी के मापदंडों के अनुसार की जा रही है। कुलसचिव ने कहा कि उनको एक बार इंटरव्यू में शामिल किया गया लेकिन उनको नंबर देने की पात्रता से वंचित रखा गया। यह सारी जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट कुणाल शुक्ला ने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की है।
इस तरह बदला स्कोर कार्ड
यूजीसी का स्कोर कार्ड
पीएचडी- 25 अंक
नेट - 8 अंक
जेआरएफ + नेट - 10 अंक
नेट + पीएचडी - 33-35 अंक
कुलपति का स्कोर कार्ड
पीएचडी - 20 अंक
नेट - 20 अंक
पीएचडी+नेट -20 अंक
यूं समझिए स्कोर कार्ड का खेल। जिस अभ्यर्थी ने पीएचडी और नेट दोनों डिग्री हासिल की हैं तो यूजीसी स्कोर बोर्ड के हिसाब से उसके 33-35 अंक होंगे। जिन्होंने अकेली पीएचडी की है तो उनके अंक 25 होंगे। अब कुलपति के स्कोर कार्ड पर आते हैं। इस स्कोर कार्ड के मुताबिक जिन्होंने पीएचडी और नेट दोनों डिग्री की हैं उनको 20 अंक मिलेंगे। जिन्होंने पीएचडी की उनको भी 20 अंक और जिन्होंने पीएचडी नहीं की सिर्फ नेट की परीक्षा पास की है उनको भी 20 ही अंक मिलेंगे। यानी सब धान 22 पसेरी। अब यहां से कुलपति का खेल शुरु होता है। यहां पर सबको 20 अंक दे दिए और बाकी अंक कुलपति के हाथ में। कुलपति ने अपने लोगों को इंटरव्यू में ज्यादा अंक देकर सिलेक्ट कर लिया और पीएचडी वाले हाथ मलते रह गए क्योंकि जहां उनके अंक 35 होने चाहिए वहां सिर्फ 20 नंबर ही मिले। यूजीसी ने नेट को 8 अंक दिए थे तो कुलपति ने नेट को 20 अंक देकर अपना काम कर लिया।
ये हैं कुलपति के काले कारनामे
जांच कमेटी के सामने कुलपति कुरील ने कहा कि कुल सचिव ने साक्षात्कार शामिल होने और नंबर देने के लिए लिखित रुप से दबाव बनाया। नियुक्ति संबंधी लिफाफे कुलपति की सुरक्षा में गोपनीय सेल में रखे गए। कुलपति के गोलमोल जवाब के बाद जांच कमेटी चयन प्रक्रिया में कई तरह की कमियां पाईं। स्कोर कार्ड बदलकर पीएचडी अभ्यर्थी मौजूद होने के बाद भी एमएससी वाले अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी गई। सहायक प्राध्यापक की भर्ती के लिए पीएचडी को अनिवार्य किया गया है। स्कोर कार्ड बदलकर नेट और पीएचडी को समान कर दिया गया जिससे योग्य अभ्यर्थी चयन से वंचित रह गए। पूरी चयन प्रक्रिया नियम विरुद्ध एवं त्रुटिपूर्ण है। स्कोर कार्ड में जो परिवर्तन किया गया है वो विश्व विद्यालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। जांच कमेटी ने कहा कि कुलपति और कुल सचिव के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण नहीं है बल्कि यह तनाव पूर्ण है। इसका यूनिवर्सिटी की गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। भविष्य में भी यह संबंध सौहार्दपूर्ण होंगे इसकी संभावना नहीं दिख रही। इसका निराकरण तत्काल होना चाहिए।
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30-35 लाख में बिके पद
इस नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हुए पीएचडी अभ्यर्थियों ने भी जांच कमेटी के सामने कुछ शिकायतें रखीं। उन्होंने आरोप लगाया कि असिस्टेंट प्रोफेसर का पद पर नियुक्ति के लिए 30-35 लाख रुपए की बोली लगाई गई थी। प्रोफेसरों की भर्ती के दो अलग अलग विज्ञापन निकले थे लेकिन सिलेक्शन सूची एक ही बनाई गई। पीएचडी और नेट किए हुए लोगों को 20 नंबर देकर चयन से दूर कर दिया गया। तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती के लिए विशेष कौशल के 40 अंक दिए गए। जबकि विशेष कौशल की विज्ञापन में कोई जानकारी नहीं थी। यानी यह 40 अंक कुलपति ने अपनी तरफ से देकर अपनों को सिलेक्ट कर लिया।
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