विद्या सागर जी का अस्थि कलश दबाया जाएगा जमीन में, उत्तराधिकारी समय सागर पदयात्रा कर 22 को चंद्रगिरि पहुंचेंगे

जैन धर्म में अस्थियों को जल में विसर्जित नहीं किया जाता। इसलिए आचार्य विद्या सागर जी की अस्थियों का कलश में संकलन कर उसे जमीन में दबाया जाएगा। जिस स्थान पर अस्थि कलश दबाया जाएगा, उसी स्थान पर वहीं उनकी समाधि बनाई जाएगी।

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Pooja Kumari
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Vidya Sagar
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BHOPAL. आचार्य विद्या सागर जी महाराज शनिवार 17 फरवरी की रात 2:35 बजे महा समाधि में लीन हो गए थे। रविवार 18 फरवरी को दोपहर को उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था। आज यानी मंगलवार 20 जनवरी को उनका अस्थि संचय होगा। बता दें कि जैन धर्म में अस्थियों को जल में विसर्जित नहीं किया जाता। इसलिए आचार्य विद्या सागर जी की अस्थियों का कलश में संकलन कर उसे जमीन में दबाया जाएगा। जिस स्थान पर अस्थि कलश दबाया जाएगा, उसी स्थान पर वहीं उनकी समाधि बनाई जाएगी।

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इंदौर, नागपुर, छत्तीसगढ़, भोपाल बड़ें ट्रस्टों से पहुंच रहे हैं लोग

अंतिम संस्कार स्थल पर अभी भी अग्नि जल रही है। यहां से श्री विद्या सागर महाराज के अनुयायी नारियल चढ़ा रहे हैं और भभूति लेकर घर जा रहे हैं। जैन चंद्रगृह तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष किशोर कुमार जैन और प्रतिभा स्थली के अध्यक्ष प्रकाश चंद्र जैन ने बताया कि देशभर से सभी संत पद यात्रा करके यहां आ रहे हैं। सोमवार 19 फरवरी को हुई विनयांजलि सभा में हस्तिनापुर के मठाधीश दिगंबर समाज के कीर्ति रविंद्र जैन पहुंचे। ये ज्ञानमती माता के भाई हैं। उनके अलावा इंदौर, नागपुर, छत्तीसगढ़, भोपाल सहित देश के बड़े ट्रस्टों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे रहे हैं।

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गरगढ़ में समय सागर महाराज को सौंपी जाएगी गद्दी 

आचार्य विद्या सागर जी ने 6 फरवरी को मुनि योग सागर से चर्चा करने के बाद आचार्य पद का त्याग कर दिया था। उन्होंने मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा की थी। मुनि समय सागर महाराज के चंद्रगिरी तीर्थ पहुंचने के बाद विधिवत तरीके से उन्हें आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी। विद्या सागर जी के उत्तराधिकारी बनाए गए मुनि समय मंगलवार को सागर महाराज मध्यप्रदेश के रावल वाड़ी मप्र पहुंच गए। वे 43 साधुओं के साथ पैदल यात्रा कर 22 फरवरी को बालाघाट से डोगरगढ़ पहुंचेंगे। वहां उन्हें विधिवत रूप से आचार्य की गद्दी सौंपी जाएगी।

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8 मार्च 1980 को छतरपुर में समय सागर मिली थी पहली दीक्षा 

जानकारी के मुताबिक विद्या सागर जी का इलाज कर रही टीम में 9 लोग थे। इसमें 2 नाड़ी वैद्य थे। आचार्य श्री ने 6 फरवरी को वैद्य से पूछा था कि उनके पास कितना वक्त है तो वैद्य ने बताया था कि नाड़ी बता रही कि अब उम्र ज्यादा नहीं बची है। उसके बाद आचार्य श्री ने उसी दिन साथ के मुनियों को अलग भेजकर निर्यापक श्रवण मुनि योग सागर जी से चर्चा की और संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ले ली। उसी दिन उन्होंने आचार्य पद त्यागकर समय सागर महाराज को आचार्य पद दे दिया था। आचार्य विद्या सागर महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उन्हें आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने 22 नवंबर 1972 को राजस्थान के अजमेर में आचार्य पद की दीक्षा दी थी। आचार्य बनने के बाद विद्या सागर जी ने 8 मार्च 1980 को छतरपुर में मुनि श्री समय सागर महाराज को पहली दीक्षा दी। इसके बाद सागर जिले में योग सागर और नियम सागर महाराज को दीक्षित किया। 

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विद्या सागर जी ने राजस्थान में सीखी थी हिंदी 

अंग्रेजी राजस्थान के अजमेर में विद्या सागर जी के शुरुआती दिनों के साक्षी रहे विनित कुमार जैन का कहना है कि आचार्य श्री दीक्षा से पूर्व ब्रह्माचारी अवस्था में राजस्थान आए थे। उनको केवल कन्नड़ भाषा आती थी। अजमेर के केसर गंज में ही रहकर उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी भाषा सीखी। यहां एक अंडरग्राउंड कमरा था। वे यहीं स्वाध्याय और अन्य धार्मिक कार्य करते थे। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में आश्रम और मंदिर बनाने का काम 2004 में शुरू हुआ था। 2011 में आचार्य विद्या सागर आए, तो उन्होंने यहां पूजन किया। तब से निर्माण में तेजी आई। आचार्य विद्या सागर जी ने यहां 2011 और 2013 में चातुर्मास किया, जिसमें पूरे देश के संत इस जगह से जुड़े।

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