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छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के अंतर्गत पांडवपारा क्षेत्र के तीन गांवों के ग्रामीण एसईसीएल (SECL) के खिलाफ मुआवजे और रोजगार की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। वर्ष 1988-89 में कोल खदान के लिए किए गए भूमि अधिग्रहण से प्रभावित सैकड़ों ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि उन्हें न तो अब तक मुआवजा मिला और न ही नौकरी, जबकि अधिग्रहण के समय प्रबंधन ने ये वादे किए थे। धरना के पहले दिन से ही ग्रामीणों ने चक्काजाम कर कोयला परिवहन पूरी तरह से ठप कर दिया है। कोल ट्रांसपोर्टिंग बंद रही, जिससे एसईसीएल को प्रतिदिन लाखों रुपये की क्षति हो रही है।
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विधायक ने दिया था आश्वासन, नहीं हुआ अमल
प्रदर्शनकारी ग्रामीणों ने बताया कि इससे पहले 21 दिसंबर 2024 को प्रदर्शन के दौरान स्थानीय विधायक भैयालाल रजवाड़े की उपस्थिति में 1 फरवरी को दस्तावेज़ों और रिकॉर्ड की जांच के लिए शिविर आयोजित करने का आश्वासन मिला था। दो महीने बीत जाने के बावजूद शिविर में कोई समाधान नहीं हुआ, जिससे ग्रामीणों में आक्रोश व्याप्त है।
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1989 से लंबित है हक की लड़ाई
ग्रामीणों का कहना है कि 1988-89 में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई थी और जुलाई 1992 तक पूरी कर ली गई। उस समय एसईसीएल प्रबंधन ने वादा किया था कि भूमि के बदले परिवार के एक सदस्य को नौकरी और उचित मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन 200 से अधिक प्रभावित परिवारों में से सिर्फ कुछ को ही यह लाभ मिला, बाकी को ‘अपात्र’बता दिया गया।
तीन प्रमुख मांगें रखीं
1. रोजगार या वैकल्पिक मुआवजा – 0.01 आरए भूमि के अनुपात में 40 वर्षों का रोजगार या उसके अनुसार जितनी आय होती है, उतना एकमुश्त मुआवजा।
2. विलंब का हर्जाना – बीते 35-36 वर्षों के नुकसान की भरपाई हेतु प्रति वर्ष 5 लाख रुपये का हर्जाना या जमीन लौटाई जाए।
3. उचित दर से मुआवजा – 8 लाख रुपये प्रति डिसमिल या 2 करोड़ रुपये प्रति एकड़ की दर से मुआवजा भुगतान किया जाए।
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राजनीतिक समर्थन भी मिलने लगा
धरना प्रदर्शन को जिला पंचायत सदस्य राजेश साहू ने भी समर्थन दिया है। उन्होंने मौके पर पहुंचकर कहा, “ये ग्रामीण वाजिब मांग कर रहे हैं। अधिग्रहण के बाद कुछ लोगों को नौकरी मिली, कुछ को मुआवजा, लेकिन अधिकांश को कुछ नहीं मिला। यह अन्याय है। मैं इनके समर्थन में अंतिम दम तक खड़ा हूं। जब तक पारदर्शी तरीके से वार्ता नहीं होती, तब तक कोयला परिवहन नहीं शुरू होगा।”
प्रदर्शनकारी ग्रामीण प्रवीण दुबे ने बताया कि “हमारी जमीन 1988-89 में अधिग्रहित की गई, लेकिन आज तक हमें न नौकरी दी गई, न मुआवजा। पूर्व में भी कई बार धरना दिए गए, शिविर आयोजित करने का वादा हुआ, लेकिन समाधान शून्य रहा। जब तक हमारी मांगें पूरी नहीं होतीं, हड़ताल जारी रहेगी।”
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धरनास्थल पर नहीं पहुंचा कोई अधिकारी
एसईसीएल प्रबंधन की ओर से अब तक कोई अधिकारी धरनास्थल पर नहीं पहुंचा है। स्थिति यह है कि कोल परिवहन पूरी तरह से ठप है और ग्रामीण अपनी मांगों पर अडिग हैं। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि जल्द समाधान नहीं हुआ तो यह आंदोलन बड़ा रूप ले सकता है। वर्षों से वंचित लोग अब अपना हक पाने के लिए एकजुट हो गए हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि अब वादों से भरोसा उठ चुका है। वे कागज़ी आश्वासनों नहीं, बल्कि ठोस निर्णय चाहते हैं। आंदोलन की यह चिंगारी अगर समय रहते नहीं बुझाई गई, तो यह कोरिया से निकलकर एसईसीएल के अन्य प्रोजेक्ट्स में भी आग भड़का सकती है।
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