विंध्यवासिनी मंदिर का बदला स्वरूप, अद्भुत कलाकारी भक्तों का मन मोह रही

Vindhyavasini Temple Dhamtari : धमतरी की आराध्य देवी मां विंध्यवासिनी ने 35 साल बाद 2024 में अपना चोला छोड़ दिया था। अब 2025 में मंदिर का स्वरूप बदल गया है।

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Marut raj
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प्रफुल्ल पारे। रायपुर. धमतरी की आराध्य देवी मां विंध्यवासिनी माता देश-विदेश तक प्रख्यात है। वर्ष 2024 में मां विंध्यवासिनी ने 35 साल बाद अपना चोला छोड़ दिया था। इसके बाद माता नए स्वरूप में आ गई थी। अब 2025 में मंदिर का स्वरूप बदल गया है। विंध्यवासिनी माता का मंदिर एक विशेष रूप में नजर आने लगा है।

यहां कारीगरों और बाहर से आए कलाकारों द्वारा मंदिर को नया रूप दिया गया है। जो लोगों को काफी आकर्षित कर रहा है। जो भी भक्त पहुंच रहा है बगैर सेल्फी लिए और फोटो- वीडियो लिए वापस नहीं लौट रहा, क्योंकि मंदिर पहले से ज्यादा मनमोहक नजर आने लगा है।

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चैत्र नवरात्रि के लिए देवी मंदिरों में विशेष सजावट

दरअसल 30 मार्च से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। इसके लिए देवी मंदिरों में विशेष सजावट किए जा रही है। छत्तीसगढ़ के धमतरी स्थित स्वयंभू मां विंध्यवासिनी मंदिर, जहां  मां विंध्यवासिनी जिसे बिलाई माता के नाम से जाना जाता है, मान्यता है कि जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर यहां पहुंचता है, उसकी मनोकामना माता जरूर पूरा करती है।

मंदिर पहले की अपेक्षा वर्तमान में काफी आकर्षक दिखने लगा है। खासतौर पर यहां का रंग रोगन और कलाकारी, भक्तों का मन मोह रहा है। मंदिर का रंग रोगन कर नया रूप दिया गया है। नक्काशी और राजस्थानी पत्थरों से बना गर्भगृह श्वेत रंग में काफी लुभा रहा है। मार्बल और नरसिंह अवतार के सभी रूपों को मंदिर के चारो ओर नक्काशी किया गया है।

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मंदिर पहुंचे भक्तों का कहना है कि माता के नए रूप को देखने के बाद अब मंदिर का नया स्वरूप देखकर काफी खुशी मिल रही है। यहां देश-विदेश से भक्त पहुंचते हैं। मंदिर में शांति और सुख का अनुभव होता है। माता स्वयंभू है और सबकी मनोकामना पूर्ण करती है।

विंध्यवासिनी माता मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आनंद पवार ने बताया कि मां विंध्यवासिनी के भक्तों के लिए एक खुशखबरी है और हम सबके लिए सौभाग्य की बात है। मां विंध्यवासिनी जो बिलाई माता के नाम से प्रख्यात है। माता ने पिछले वर्ष 12 मई को अपना चोला उतारा था।

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 उससे पहले से और अब तक मंदिर में जो राजस्थानी कारीगरों और राजस्थान के मकराना के कारीगरों के द्वारा मार्बल के काम किए गए हैं, चाहे वह गर्भगृह हो या सामने जगमोहन में गलीचा बनाना हो, सौंदर्यीकरण के हिसाब से जो पेंटिंग की गई है।

माता का जैसे चोला उतरा वैसे ही मंदिर अपने नए स्वरूप में आ गया हैं। इसका हम सभी भक्त साक्षी बने हैं। विंध्यवासिनी मंदिर में देश-विदेश से भक्त अपनी मनोकामना ज्योत जलवाने आते हैं। विंध्यवासिनी मंदिर में लगातार 3 वर्षों से कार्य जारी है। राजस्थान के कलाकारों द्वारा जो अद्भुत कारीगरी की गई है वह माता की सच्ची साधना का परिचय दिया है।

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