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छत्तीसगढ़ के कोटा ब्लॉक के छेरकाबांधा में संचालित वेलकम डिस्टलरी पर जल संसाधन विभाग का बकाया जलकर और सरचार्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, डिस्टलरी पर पहले से ही 88.62 करोड़ रुपये का जलकर बकाया था। इस महीने विभाग ने नियमित बिल के साथ 1.35 करोड़ रुपये का अतिरिक्त सरचार्ज जोड़कर नया बिल जारी किया है, जिसके बाद कुल बकाया राशि बढ़कर 89.97 करोड़ रुपये हो गई है। यह मामला पिछले 27 वर्षों से अनसुलझा बना हुआ है, और जल संसाधन विभाग की वसूली के प्रयास अब तक नाकाम रहे हैं।
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27 सालों से अनसुलझा बकाया
वेलकम डिस्टलरी पर जल संसाधन विभाग 1998 से जलकर वसूली की कोशिश कर रहा है। विभाग का आरोप है कि डिस्टलरी बिना अनुमति और अनुबंध के भू-जल का दोहन कर रही है, जिसके लिए शासन द्वारा निर्धारित राशि का तीन गुना देयक लगाया जाता है।
हर महीने बकाया राशि के साथ सरचार्ज जोड़ा जा रहा है, जिसके कारण डिस्टलरी पर बकाया राशि अब 90 करोड़ रुपये के करीब पहुंच चुकी है। जून 2025 तक की गणना के अनुसार, डिस्टलरी पर कुल 89.99 करोड़ रुपये का जलकर बकाया है।
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इस महीने का नया बिल, सवा करोड़ का सरचार्ज
जल संसाधन विभाग ने इस महीने डिस्टलरी को एक नया बिल जारी किया, जिसमें नियमित जलकर के साथ 1.35 करोड़ रुपये का सरचार्ज शामिल है। इस नए बिल ने डिस्टलरी की देनदारी को और बढ़ा दिया है। विभागीय सूत्रों का कहना है कि बकाया राशि और सरचार्ज का यह सिलसिला वर्षों से जारी है, लेकिन डिस्टलरी प्रबंधन की ओर से न तो कोई भुगतान किया गया है और न ही बकाया चुकाने के लिए कोई ठोस कदम उठाया गया है।
प्रशासन की नाकामी और ठोस कार्रवाई का अभाव
यह मामला कई बार प्रशासन और विधानसभा में उठ चुका है। मानसून सत्र 2025 में कांग्रेस विधायक अटल श्रीवास्तव ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। जल संसाधन मंत्री केदार कश्यप ने सदन में स्वीकार किया कि वेलकम डिस्टलरी पर करीब 90 करोड़ रुपये का जलकर बकाया है और वसूली के लिए कार्रवाई की जा रही है। फिर भी कोई परिणाम नहीं आया है। इससे पहले गत जुलाई 20, 2025 को 88 करोड़ रुपये का बकाया जमा करने के लिए नोटिस जारी किया था। यह नोटिस रतनपुर तहसीलदार ने डिस्टलरी को जारी किया था।
पर्यावरणीय चिंताएं और स्थानीय समस्याएं
वेलकम डिस्टलरी न केवल जलकर बकाया के लिए विवादों में है, बल्कि इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी गंभीर चिंता का विषय हैं। छेरकाबांधा और आसपास के गांवों जैसे खरगहनी, जोगीपुर, और कोटा नगर पंचायत के कई वार्डों में डिस्टलरी के जहरीले अपशिष्ट और प्रदूषित पानी के कारण मवेशियों की मौत और स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। डिस्टलरी से निकलने वाली जहरीली हवा और प्रदूषित पानी ने क्षेत्र की जमीन को दलदल में तब्दील कर दिया है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि डिस्टलरी द्वारा बिना अनुमति भू-जल का दोहन न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह क्षेत्र में जल संकट को और गहरा रहा है। बिलासपुर जिले में भू-जल स्तर में लगातार गिरावट की खबरें सामने आ रही हैं, और डिस्टलरी जैसे औद्योगिक इकाइयों का अनियंत्रित जल उपयोग इस समस्या को बढ़ा रहा है।
वसूली में देरी क्यों?
विभागीय सूत्रों का कहना है कि जलकर वसूली में देरी के पीछे प्रशासनिक सुस्ती और डिस्टलरी प्रबंधन की ओर से ठोस जवाबदेही का अभाव है। कुछ खबरों में यह भी दावा किया गया है कि वसूली में देरी के पीछे तथाकथित "मांडवाली सिंडिकेट" की भूमिका हो सकती है, जो इस मामले को सुलझाने के बजाय जटिल बनाए रखने में सक्रिय है। जल संसाधन विभाग ने कलेक्टर और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को कई बार पत्र लिखकर वसूली के लिए कार्रवाई का आग्रह किया है, लेकिन अब तक कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया।
विभाग और प्रशासन के सामने चुनौती
वेलकम डिस्टलरी का यह मामला न केवल आर्थिक, बल्कि पर्यावरणीय और सामाजिक दृष्टिकोण से भी गंभीर है। जल संसाधन विभाग और प्रशासन के सामने अब यह चुनौती है कि वे इस बकाया राशि को वसूलने के लिए कठोर कदम उठाएं। तहसीलदार के नोटिस के बाद भी भुगतान न होने पर डिस्टलरी को सील करने की बात कही गई है, लेकिन यह देखना बाकी है कि प्रशासन इस दिशा में कितनी गंभीरता दिखाता है।
स्थानीय लोग और पर्यावरण कार्यकर्ता इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि डिस्टलरी को न केवल बकाया राशि चुकानी चाहिए, बल्कि पर्यावरणीय नुकसान की भरपाई के लिए भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। इस बीच, जल संसाधन विभाग ने स्पष्ट किया है कि वह बकाया वसूली के लिए हर संभव प्रयास करेगा, लेकिन अब तक की निष्क्रियता ने इस दावे पर सवाल उठाए हैं।
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