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छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से एक गंभीर मामला सामने आया है जिसमें एक विधवा महिला ने न केवल अपने अधिवक्ता पर धोखाधड़ी और पेशेवर कदाचरण का आरोप लगाया है, बल्कि आरोप यह भी है कि शिकायत के जवाब में वकील ने महिला के खिलाफ झूठी FIR दर्ज करवा दी। पीड़िता वंशिका अग्निहोत्री ने अब इस पूरे मामले में न्याय की गुहार लगाते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
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ये है मामला
कोंडागांव निवासी वंशिका अग्निहोत्री, जिनके परिवार में कोई पुरुष सदस्य जीवित नहीं है, ने अपने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के लिए एक अधिवक्ता को नियुक्त किया था। यह प्रमाण पत्र उनके पति की बीमा राशि क्लेम करने के लिए आवश्यक था। वंशिका और उनकी भाभी ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 372 के अंतर्गत सिविल न्यायाधीश, वर्ग-1, कोंडागांव के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे 5 अक्टूबर 2023 को मंजूरी दे दी गई।
बाद में, मृतक के एक रिश्तेदार बसंत अग्निहोत्री ने कोर्ट के आदेश के विरुद्ध अपील की, जिसे 23 सितंबर 2024 को जिला न्यायालय कोंडागांव ने खारिज कर दिया।
गुमराह करने का आरोप
अपील की प्रक्रिया के दौरान वंशिका को जानकारी मिली कि जिस अधिवक्ता को उन्होंने अधिकृत किया था, उसने कोर्ट फीस और अन्य खर्चों के नाम पर मोटी रकम वसूली, जबकि इसकी कोई वास्तविक आवश्यकता नहीं थी। इस खुलासे के बाद वंशिका ने तुरंत वकील बदल दिया और स्टेट बार काउंसिल में शिकायत करने की बात कही।
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वकील ने दर्ज करवा दी झूठी FIR
वंशिका की इस प्रतिक्रिया से बौखलाए वकील ने बदले की भावना से कोंडागांव थाने में वंशिका और उसकी महिला मित्र के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी। इसमें IPC की धाराएं 294 (अश्लीलता), 506 (आपराधिक धमकी), 500 (मानहानि), 341 (गलत तरीके से रोकना), और 34 (सामूहिक अपराध) लगाई गईं।
इसके आधार पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया, हालांकि 28 मार्च 2024 को उन्हें जमानत मिल गई। पुलिस ने अब केस में चार्जशीट दाखिल कर दी है और ट्रायल कोर्ट में आरोप तय करने की प्रक्रिया चल रही है।
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हाई कोर्ट की दखल और ट्रायल पर रोक
इस अन्याय के खिलाफ वंशिका ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में उन्होंने अधिवक्ता के खिलाफ पेशेवर कदाचार की कार्रवाई की मांग की है। पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को निरस्त करने की अपील की है। यह तर्क दिया है कि यह शिकायत पूरी तरह बदले की भावना से प्रेरित है।
हाई कोर्ट ने प्रारंभिक सुनवाई के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए JMFC कोंडागांव को निर्देश दिया है कि वह ट्रायल कोर्ट में लंबित प्रकरण पर फिलहाल कोई कार्यवाही न करें। साथ ही राज्य शासन और संबंधित अधिवक्ता को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
क्या कहते हैं कानून और समाज?
इस घटना ने एक बार फिर विधवा महिलाओं की कानूनी असुरक्षा और कुछ अधिवक्ताओं के अनैतिक व्यवहार पर सवाल खड़े कर दिए हैं। वकीलों को न्याय दिलाने वाला माना जाता है, लेकिन जब वही विश्वासघात करें तो पीड़िता के पास बहुत कम विकल्प बचते हैं।
हाई कोर्ट की कार्यवाही से वंशिका को न्याय की उम्मीद मिली है, और यह मामला छत्तीसगढ़ में न्यायिक जवाबदेही और वकालत की मर्यादा पर एक अहम सवाल बनकर उभरा है।
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