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छत्तीसगढ़ के बीजापुर के घने जंगलों और नारायणपुर के अबूझमाड़ मुठभेड़ ने नक्सलियों के काले साम्राज्य को हिलाकर रख दिया। इस मुठभेड़ में मारा गया नक्सल चीफ बसव राजू की डायरी सुरक्षाबलों के हाथ लगी। इस डायरी में राजू ने जिक्र किया है कि नक्सलियों के दिलों में बस्तर की सबसे खूंखार फोर्स डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (डीआरजी) के खौफ है।
लाल स्याही से लिखे गए राजू के आखिरी शब्द अपने साथियों के लिए एक चेतावनी थे 'जहाँ हो, छिप जाओ... DRG वाले तुम्हें ढूंढकर मार डालेंगे!' यह संदेश नक्सलियों के टूटते हौसले और DRG की अजेय ताकत का जीता-जागता सबूत है।
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DRG बनी नक्सलियों का काल
बस्तर के जंगलों में नक्सलियों से लोहा लेने के लिए सीआरपीएफ, एसटीएफ, बीएसएफ और बस्तर बटालियन जैसी ताकतवर टीमें तैनात हैं, लेकिन एक फोर्स ऐसी है जो हमेशा सबसे आगे, नक्सलियों के सीने पर सवार होकर उन्हें धूल चटाती है, यह है डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG)। यह फोर्स बस्तर के उन जांबाजों का दस्ता है, जो जंगल की हर पगडंडी, हर पेड़ और हर गली को उतना ही जानते हैं, जितना नक्सली।
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DRG नक्सलियों के खिलाफ एक मास्टरस्ट्रोक
साल 2008 में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने नक्सलियों के खौफनाक नेटवर्क को देखते हुए एक साहसिक कदम उठाया। उस समय नक्सलियों का जाल बस्तर के गाँव-गलियों तक फैला हुआ था। कोई भी हलचल हो, नक्सलियों तक खबर पलक झपकते पहुँच जाती थी। बड़े-बड़े हत्याकांड कर वे जंगलों की आड़ में गायब हो जाते थे।
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इस चुनौती से निपटने के लिए डॉ. रमन सिंह ने एक ऐसी फोर्स गठित की, जिसमें शामिल थे, स्थानीय युवा और सरेंडर कर चुके नक्सली। ये जवान न सिर्फ बस्तर की भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे, बल्कि नक्सलियों की रणनीति और उनके नेटवर्क को भी बखूबी समझते थे।
DRG का गठन नक्सलियों के खिलाफ एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ। पहली बार 2008 में नारायणपुर में इस फोर्स ने जन्म लिया। इसके बाद सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर में 2013 तक भर्तियाँ हुईं। आज DRG में करीब 2,000 जवान हैं, जो जंगलों में नक्सलियों की हर साँस पर नजर रखते हैं।
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इसलिए खास है DRG?
DRG की ताकत उसकी जड़ों में छिपी है। इस फोर्स में शामिल स्थानीय युवा बस्तर की मिट्टी से जुड़े हैं। उसकी भाषा, संस्कृति और भूगोल को अपनी रगों में महसूस करते हैं। साथ ही वे कभी नक्सलियों के साथी थे, लेकिन अब उनके पैंतरों को उसी की भाषा में जवाब देते हैं।
ये जवान नक्सलियों के नेटवर्क को तोड़ने में माहिर हैं। जहाँ दूसरी फोर्सेज को जंगल की गहराइयों में दिक्कत होती थी, वहाँ DRG के जवान अपनी सूझबूझ और स्थानीय जानकारी के दम पर नक्सलियों को घेर लेते हैं। हर मुठभेड़ में DRG सबसे आगे होती है, जो नक्सलियों के लिए मौत का परवाना बनकर सामने आती है।
डायरी में नक्सलियों के टूटते हौसले की कहानी
अबूझमाड़ मुठभेड़ में मिली बसव राजू की डायरी नक्सलियों के डर को साफ बयान करती है। लाल स्याही से लिखा उनका संदेश “DRG वाले तुम्हें मार डालेंगे” यह बताता है कि DRG की दहशत नक्सलियों के मन में कितनी गहरी बैठ चुकी है। यह डायरी सिर्फ कागज का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि DRG की मेहनत, साहस और रणनीति की जीत का प्रतीक है।
अभी जारी है DRG की जंग
DRG के जवान आज भी बस्तर के जंगलों में नक्सलियों के खिलाफ अपनी जंग लड़ रहे हैं। हर कदम पर खतरा, हर पल अनिश्चितता, फिर भी ये जवान नक्सलियों के साम्राज्य को ध्वस्त करने के लिए अडिग हैं। बसव राजू की डायरी ने साबित कर दिया कि DRG न सिर्फ एक फोर्स है, बल्कि नक्सलियों के लिए एक ऐसा खौफ है, जो उनकी नींद उड़ा देता है। DRG की गूंज अब बस्तर के जंगलों से निकलकर नक्सलियों के दिलों तक पहुँच चुकी है। यह फोर्स न सिर्फ बस्तर की शांति की गारंटी है, बल्कि नक्सलवाद के अंत की शुरुआत भी।
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