अब बच्चा गोद लेने वाली महिला कर्मचारियों को भी मिलेगा मातृत्व अवकाश

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी गुरु ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसले में स्पष्ट किया है कि गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) की पूर्ण रूप से हकदार हैं।

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Harrison Masih
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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति बीडी गुरु ने एक ऐतिहासिक और दूरगामी फैसले में स्पष्ट किया है कि गोद लेने वाली महिला कर्मचारी भी मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) की पूर्ण रूप से हकदार हैं। कोर्ट ने कहा कि बच्चों को गोद लेने वाली महिलाओं को मातृत्व लाभ से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।

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मातृत्व कोई भेदभाव नहीं सहता 

जस्टिस बीडी गुरु ने अपने फैसले में कहा कि जैविक मां, गोद लेने वाली मां या सरोगेसी के माध्यम से मां बनने वाली महिलाओं के बीच मातृत्व अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। सभी बच्चों को समान देखभाल, स्नेह, सुरक्षा और विकास का अधिकार है। इसी के तहत गोद लेने वाली मां को भी 180 दिनों की चाइल्ड एडॉप्शन लीव मिलनी चाहिए।

आईआईएम रायपुर की महिला अधिकारी को मिला न्याय

यह मामला भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) रायपुर की एक महिला सहायक प्रशासनिक अधिकारी से जुड़ा था, जिन्होंने नवंबर 2023 में नवजात बच्ची को गोद लिया था। उन्होंने उसी दिन से 180 दिन की चाइल्ड एडॉप्शन लीव के लिए आवेदन दिया, जिसे संस्थान ने अपनी HR नीति में प्रावधान न होने का हवाला देकर केवल 60 दिन की छुट्टी तक सीमित कर दिया।

महिला अधिकारी ने इसके बाद राज्य महिला आयोग का दरवाजा खटखटाया, जिसने उनकी मांग को उचित ठहराते हुए 180 दिन की छुट्टी की अनुशंसा की। IIM रायपुर ने आयोग के निर्देश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जिसके जवाब में महिला कर्मचारी ने भी कोर्ट का रुख किया।

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नियम 43-B(1) और संवैधानिक संरक्षण का हवाला

कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार के सिविल सेवा (अवकाश) नियम 1972 के नियम 43-B(1) का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई महिला सरकारी कर्मचारी एक साल से कम उम्र के बच्चे को गोद लेती है और उसके दो से कम जीवित बच्चे हैं, तो उसे 180 दिन की गोद लेने की छुट्टी दी जानी चाहिए।

साथ ही, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 15 (लैंगिक भेदभाव निषेध), अनुच्छेद 19(1)(g) (व्यवसाय की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) को फैसले में आधार बनाया गया।

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महिलाओं की कार्यस्थल पर भागीदारी संवैधानिक अधिकार

जस्टिस गुरु ने टिप्पणी की कि मातृत्व केवल जैविक प्रक्रिया नहीं है, यह एक भावनात्मक और सामाजिक दायित्व भी है। मातृत्व अवकाश से वंचित करना न केवल महिला कर्मचारी को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को भी बाधित करता है। यह अधिकार संविधान में निहित है और इसे किसी भी तकनीकी आधार पर नकारा नहीं जा सकता।

यह फैसला महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर समान अधिकारों की दिशा में एक बड़ी कानूनी जीत है। अब स्पष्ट हो गया है कि मातृत्व के अधिकारों में किसी भी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक है – चाहे बच्चा जैविक हो, गोद लिया गया हो या सरोगेसी से जन्मा हो।

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