मप्र में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण केस को लेकर लगी विविध याचिकाएं हाईकोर्ट जबलपुर से सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर हो गई हैं। इसमें अब 25 नवंबर को सुनवाई लिस्टेड दिख रही है। इस तारीख पर एक नहीं बल्कि तीन केस डायरी लिंक्ड है और इसमें दर्जनभर से ज्यादा हाईकोर्ट मप्र के केस शामिल है।
यह केस डायरी और इतने केस
सुप्रीम कोर्ट की साइट से जानकारी निकालने पर सामने आया कि 25 नवंबर को एक नहीं बल्कि तीन केस डायरी आपस में जुड़ी है। इसमें केस डायरी 16430 के साथ ही 24541 और 23299 भी है, जो सभी साल 2023 की है। इन केस डायरियों के साथ लिंक्ड केस की भी जानकारी निकाली तो इसमें साल 2019 से लेकर 2023 तक के दौरान लगे केस शामिल है।
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यह सभी केस इसमें जुड़े हैं
इसमें रिट याचिका 5901/19 (जो मूल याचिका है 27 फीसदी आरक्षण को लेकर), 16552/19, 10310/19, 11330/19, 15662/19, 3757/20, 542/21, 8750/22, 24847/22, 599/23, 242247/22, 12398/23, 20791/23, 01868/23 व अन्य शामिल है।
दो याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट शिफ्ट
उधर इसी दौरान दो ट्रांसफर याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट से चार नवंबर को आदेश जारी कर खारिज कर दी गई हैं और इन्हें आगे हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए स्वतंत्र कर दी गई है। यह याचिकाएं 2827/22 और 2885/24 है। इसमें 13 फीसदी की मेरिट लिस्ट जारी करने की बात थी। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर खारिज किया कि इसमें ट्रांसफर याचिका जैसा कोई मुद्दा नहीं है, हालांकि इसमें हाईकोर्ट सुनवाई के लिए स्वतंत्र है। इसके बाद 87-13 फीसदी के फार्मूले को लेकर गेंद एक बार फिर हाईकोर्ट के पाले में आ चुकी है।
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ट्रांसफर याचिका पर यह हुआ सुप्रीम कोर्ट आदेश
प्रज्ञा शर्मा व अन्य विरुद्ध मप्र शासन की ट्रांसफर पिटीशन (सिविल)- 2885/2024 पर सुप्रीम कोर्ट जस्टिस अभय एस ओका व जस्टिस एजी मसीह को खारिज कर दिया। लेकिन इसमें कहा गया कि इस ट्रांसफर याचिका का कोई आधार नहीं है, इसे खारिज किया जाता है, हालांकि यह हाईकोर्ट के लिए सुनवाई के लिए ओपन रहेगी। इसमें हाईकोर्ट के लिए यह केस ओपन रहने की लाइन सबसे अहम है।
यह है प्रज्ञा शर्मा की मूल याचिका
प्रज्ञा शर्मा व अन्य याचिकाकर्ताओं की मूल याचिका हाईकोर्ट में रिट पिटीशन 5596/2024 है। इसमें मांग की गई थी कि 13 फीसदी में हम उम्मीदवार है और राज्य सेवा परीक्षा 2019 के प्रोविजनल रिजल्ट में हैं। इसके 87 फीसदी वालों को रिजल्ट आ गया जॉइनिंग हो गई लेकिन आज तक हमें नहीं पता कि हमारे अंक कितने हैं और हमारी मेरिट क्या है?
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हाईकोर्ट ने पहले यह दिया था अहम आदेश
प्रज्ञा व अन्य की मूल याचिका पर चार अप्रैल 2024 को हाईकोर्ट ने अहम आदेश दिया और कहा कि 13 फीसदी सूची में शामिल उम्मीदवारों का मेरिट लिस्ट सार्वजनिक की जाए। साथ ही याचिकाकर्ताओं की मेरिट लिस्ट भी जारी की जाए। यह भी बताया जाए कि क्या ऐसा हुआ है कि इस मेरिट लिस्ट से कम वालों को 87 फीसदी में नियुक्ति दी गई हो। लेकिन पीएससी ने इस आदेश का पालन नहीं किया। इस पर 16 जुलाई 2024 को सुनवाई पर हाईकोर्ट ने जमकर आयोग और शासन को फटकार लगाई और कहा कि शासन का यह रवैया पथेटिक (दयनीय) है। क्यों ना इस मामले में भारी कास्ट लगाई जाए। इसके बाद बेंच ने सीधे आदेश दिए कि हम 50 हजार की कॉस्ट लगा रहे हैं और यह शासन संबंधित अधिकारी से वसूल करें जिसके कारण हाईकोर्ट के चार अप्रैल के ऑर्डर के पालन में इतनी देरी हुई है। हाईकोर्ट ने शासन को दो सप्ताह में कदम उठाने के आदेश दिए और साफ कहा कि हम अगली सुनवाई में देखते हैं कि और किस तरह का ड्रामा इसमें किया जाता है।
लेकिन बाद में लिंक हो गई
इस मामले में फिर उम्मीदवारों के साथ चोट हो गई। प्रज्ञा शर्मा की यह याचिका 5901/2019 के साथ लिंक कर दी गई। यह याचिका मूल रूप से ओबीसी आरक्षण को 27 फीसदी किए जाने को लेकर थी। जब अगली सुनवाई हुई और उम्मीदवारों को लगा कि उनके 13 फीसदी मेरिट लिस्ट को जारी किया जाएगा, तब हाईकोर्ट ने 2 सितंबर 2024 को इस मामले में सुनवाई से यह कहते हुए इनकार कर दिया। कहा कि यह पूरे मामले क्योंकि 5901 याचिका के साथ लिंक हो गई है और यह सभी हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो रहे हैं तो अभी इस पर सुनवाई नहीं करेंगे, जब तक वहां से डायरेक्शन नहीं होते। इसके बाद सुनवाई की अगली तारीख 9 दिसंबर 2024 लगा दी गई।
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हाईकोर्ट में फिर याचिका आना इसलिए अहम
इस सारे मामले को लिंक करके द सूत्र का बताने का उद्देश्य है कि पूरी स्थिति साफ हो सके। अब सुप्रीम कोर्ट ने जब प्रज्ञा शर्मा की मूल याचिका 5596 को वापस हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए ओपन कर दिया है। फिर उनकी यह मांग और हाईकोर्ट के पूर्व के आदेश जिसमें 13 फीसदी की मेरिट लिस्ट जारी करने की मांग थी (राज्य सेवा परीक्षा 2019 को लेकर) वह भी फिर जीवित हो गई है। इस मामले में 19 दिसंबर को मूल याचिकाकर्ता प्रज्ञा व अन्य इस मामले को फिर से उठा सकते हैं और अब हाईकोर्ट इसमें सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनवाई और आदेश के लिए स्वतंत्र है।
अब आपको 5901 याचिका भी बताते हैं
अब अब आपको मूल याचिका नंबर 5901/2019 भी बताते हैं जो सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हुई है। यह याचिका मेडिकल एजुकेशन विभाग के उम्मीदवारों ने मेडिकल एजुकेशन डिपार्टमेंट मप्र शासन के खिलाफ लगाई थी। इसमें कहा गया था कि मप्र का आर्डिनेंस नंबर 2, जो साल 2019 में ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी हुआ जिसके तहत ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी किया गया, वह असंवैधानिक है, क्योंकि इससे मप्र में एसी आरक्षण 16 फीसदी, एसटी आरक्षण 20 फीसदी मिलाकर कुल आरक्षण 63 फीसदी हो जाता है। इस पर हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया कि केस में सुनवाई जारी रहेगी लेकिन तब तक मप्र शासन ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से अधिक नहीं दें।
यह है पूरी 87-13 फीसदी की कहानी
मप्र शासन ने ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। लेकिन मामला हाईकोर्ट में गया तो इसमें 14 फीसदी से ज्यादा आरक्षण देने पर रोक लगा दी गई। शासन ने इसका तोड़ निकाला और सितंबर 2022 में 87-13 फीसदी फार्मूला लागू कर दिया और ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी के हिसाब से 87 फीसदी का रिजल्ट जारी किया और 13 फीसदी पद ओबीसी और अनारक्षित दोनों के लिए अलग रख दिए। कहा गया जब ओबीसी आरक्षण पर अंतिम फैसला होगा, तब यह रिजल्ट जारी होगा। यानी यदि ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी हुआ तो यह 13 फीसदी पद उनके कोटे में नहीं तो अनारक्षित के कोटे में चले जाएंगे। लेकिन इसके लिए कोई समयसीमा तय नहीं है। साल 2019 के बाद 2020, 2021 के भी अंतिम रिजल्ट हो गए हैं और सभी 13 फीसदी पद रुके हुए हैं। यह हाल पीएससी के साथ ईएसबी व अन्य भर्ती परीक्षा यहां तक की पात्रता परीक्षा रिजल्ट के साथ भी हुआ।
यह है सबसे बड़ी समस्या
सबसे बड़ी समस्या यह है कि उम्मीदवार जो भी 13 फीसदी में हैं, उन्हें पता ही नहीं है कि उनके अंक कितने हैं। ओबीसी या अनारक्षित कैटेगरी दोनों यह जानना चाहते हैं कि किसी के भी हक में फैसला आए। लेकिन क्या वह मेरिट के आधार पर चयन सूची में है भी कि नहीं? नहीं है तो वह भविष्य में आगे की ओर बढ़े, उसे कब तक यह जानने के लिए इंतजार करना होगा कि वह चयन सूची के दायरे में आएगा भी या नहीं। वहीं इस केस के चक्कर में साल 2019, 2020, 2021 किसी भी परीक्षा की मेंस देने वालों को अपनी कॉपियां देखने को नहीं मिल रही है और ना ही अंक पता है कि आखिर वह क्या गलती कर रहा है? इसी के चलते हजारों पद और लाखों उम्मीदवार अटके हुए हैं।
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