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Photograph: (the sootr)
मध्यप्रदेश में इंजीनिरिंग शिक्षा को लेकर छात्र-छात्राओं का रुझान तेजी से घट रहा है, जिसका असर काॅलेज पर भी पड़ रहा है। छात्र-छात्राओं की लगातार घटती छात्र संख्या के कारण प्रदेश के 69 इंजीनियरिंग काॅलेजों पर ताले डल गए है।
अगर हम पिछले एक दशक के आंकड़ों को देखें तो 2015-16 में राज्य में कुल 203 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, लेकिन 2024-25 में ये संख्या घटकर केवल 134 रह गई है, जिसमें 69 कॉलेज पूरी तरह बंद हो चुके हैं। इसमें से सबसे ज्यादा कॉलेज भोपाल और इंदौर से बंद हुए हैं।
46 प्रतिशत सीटें रही खाली
2024-25 में, निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में उपलब्ध कुल 64,206 सीटों में से 35,064 सीटों पर ही प्रवेश हुआ, यानी 46 प्रतिशत सीटें खाली रह गईं। यह एक चिंताजनक संकेत है, जो निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की घटती लोकप्रियता को दर्शाता है। छात्र-छात्राएं निजी काॅलेजों की जगह सरकारी काॅलेजों को महत्व दे रहे है।
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69 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होने के कारण
इन कॉलेजों के बंद होने के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि इन कॉलेजों में छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट आई है। पिछले कुछ वर्षों से इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के प्रति छात्रों का रुझान कम हुआ है। यह भी देखा गया है कि बहुत से कॉलेजों ने शिक्षा के मानकों को बनाए रखने में कमी की है, जिससे छात्रों ने इन कॉलेजों में प्रवेश लेने से परहेज किया है।
1. औद्योगिक मांग से मेल न खाना
आधुनिक शिक्षा की मांग लगातार बदल रही है, लेकिन निजी कॉलेजों ने अपने पाठ्यक्रम को उद्योग और नाैकरी की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं बदला। छात्रों को ऐसे कौशल और तकनीकी शिक्षा(technical Education) की आवश्यकता है जो उन्हें नौकरी की दुनिया में प्रतिस्पर्धी बना सके, लेकिन ये कॉलेज इस आवश्यकतारूप को पूरा करने में विफल रहे हैं।
2. अपर्याप्त सुविधाएं और उपकरण
निजी कॉलेजों में अक्सर प्रैक्टिकल के लिए आवश्यक उपकरण और तकनीकी सुविधाएं नहीं होती हैं, जिसके कारण छात्र इन कॉलेजों में अध्ययन करने में रुचि नहीं दिखाते हैं। शिक्षा का स्तर और शोध एवं नवाचार की सुविधाओं का अभाव भी एक बड़ा कारण बन चुका है।
3. गुणवत्ता की कमी
अच्छे शिक्षकों की कमी और एक ही शिक्षक का कई कॉलेजों में कार्य करना भी कॉलेजों के लिए एक समस्या बन गया है। शिक्षा की गुणवत्ता पर असर डालने वाली यह समस्या कॉलेजों के बंद होने का प्रमुख कारण बन सकती है।
निजी इंजीनियरिंग काॅलेजों से छात्रों के मोह भंग को ऐसे समझें69 निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों का बंद होना: मध्य प्रदेश में पिछले 10 वर्षों में 69 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो गए हैं, जिनमें सबसे ज्यादा भोपाल और इंदौर में हैं। प्रवेश दर में गिरावट: निजी कॉलेजों में सीटों की क्षमता के मुकाबले प्रवेश दर में भारी गिरावट आई है, 2024-25 में केवल 54% सीटें भरी जा सकी, जबकि 46% सीटें खाली रहीं। सरकारी कॉलेजों में वृद्धि: सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में 90% तक सीटें भर रही हैं, जबकि निजी कॉलेजों में यह दर 45-55% के बीच रही है। बंद होने के कारण: कॉलेजों में प्रैक्टिकल शिक्षा की कमी, अपर्याप्त संसाधन, और पुराने पाठ्यक्रम के कारण छात्रों का रुझान घटा है। भविष्य में सुधार की आवश्यकता: कॉलेजों को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम अद्यतन करने और शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार करने की आवश्यकता है। |
एमपी के सरकारी कॉलेजों का महत्व बढ़ा
दूसरी ओर, सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश की दर में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। सरकारी कॉलेजों में जहां 90 प्रतिशत सीटें भरी जा रही हैं, वहीं निजी कॉलेजों में केवल 45 से 55 प्रतिशत सीटों पर ही प्रवेश हो पा रहा है। इसके कारण सरकारी कॉलेजों की ओर छात्रों का रुझान बढ़ा है। हालांकि कुछ सरकारी कॉलेजों में भी सीटें खाली हैं, लेकिन इनकी संख्या निजी कॉलेजों से बहुत कम है।
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निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश घटने के कारण
निजी कॉलेजों में प्रवेश घटने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. औद्योगिक आवश्यकताओं से मेल न खाते पाठ्यक्रम
आधुनिक उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम में बदलाव की कमी है, जिससे छात्र नए क्षेत्रों में प्रवेश की तलाश करते हैं।
2. प्रैक्टिकल शिक्षा की कमी
निजी कॉलेजों में प्रैक्टिकल शिक्षा के लिए आवश्यक संसाधनों की कमी छात्रों को निराश करती है। साथ ही, छात्रों को सैद्धांतिक शिक्षा के बजाय प्रैक्टिकल ज्ञान की आवश्यकता होती है।
3. शिक्षक की कमी
अच्छे, अनुभवी शिक्षकों की कमी भी निजी कॉलेजों में छात्रों की रुचि घटने का एक कारण है।
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