प्रशासन की निगरानी के बावजूद बिक गए 22 घोड़े, हाईकोर्ट में हुआ खुलासा

हैदराबाद से जबलपुर लाए गए घोड़ों की मौत और अवैध परिवहन का बड़ा खुलासा हुआ है। 22 घोड़े बिना प्रशासन की जानकारी के बेचे गए। द सूत्र ने पहले ही घोड़ों की गुप्त बिक्री का खुलासा किया था।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. हैदराबाद से जबलपुर लाए गए घोड़ों की मौत और अवैध परिवहन के विवाद में हाईकोर्ट में बड़ा खुलासा हुआ है। द सूत्र ने अपनी पड़ताल में पहले ही बता दिया था कि घोड़े गायब नहीं हुए हैं। असल में उनकी गुपचुप बिक्री हो चुकी है। 

बुधवार 3 दिसंबर को जबलपुर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान आधिकारिक तौर पर यह सच दर्ज हो गया। सरकार की स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया है कि 22 घोड़े बेच दिए गए हैं। प्रशासन, जो लगातार निगरानी का दावा कर रहा था, इस बिक्री की जानकारी अब तक सार्वजनिक नहीं कर सका।

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कोर्ट में पेश स्टेटस रिपोर्ट ने खोली प्रशासन की पोल

पिछले आदेश के अनुसार मध्यप्रदेश सरकार को घोड़ों की स्थिति पर स्टेटस रिपोर्ट पेश करनी थी। बुधवार को जब रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखी गई, तो उसमें माना गया कि कुल 22 घोड़े बेचे जा चुके हैं। यह वही तथ्य है, जिसका खुलासा द सूत्र ने हाल ही में किया था। हमने आरोपी सचिन तिवारी के ओनरशिप ट्रांसफर और घोड़ों की गुप्त बिक्री के दस्तावेज़ों की पड़ताल की थी। इसके बाद उन्हें सार्वजनिक भी किया था।

घोड़ों की स्टेटस रिपोर्ट की कॉपी याचिकाकर्ताओं को बुधवार को दी गई। इसके बाद उन्होंने रिपोर्ट को समझने और अवलोकन के लिए समय मांगा। सरकार ने कोर्ट को बताया कि 19 घोड़े अभी उनकी निगरानी में हैं। वेटरिनरी डॉक्टरों की टीम लगातार उनकी देखभाल कर रही है।

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प्रशासन की भूमिका पर सवाल 

इस पूरी घटना ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। घोड़ों की मौतों का मामला हाई कोर्ट में लंबित था। इस दौरान 22 घोड़े बिना जबलपुर प्रशासन या वेटरनरी डिपार्टमेंट की जानकारी के कैसे बिके? द सूत्र की पड़ताल ने बताया था कि घोड़ों को गायब नहीं किया गया। सचिन तिवारी ने ओनरशिप ट्रांसफर कर घोड़े बेचे, जबकि वेटरनरी विभाग रोजाना मॉनिटरिंग का दावा करता रहा।

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अगली सुनवाई 9 जनवरी 2026 को

9 जनवरी 2026 की अगली सुनवाई में बड़ा मुद्दा होगा। क्यों प्रशासन घोड़ा मौत कांड और अवैध क्रियाकलापों को रोकने में विफल रहा? क्या यह लापरवाही थी या कोई बड़ा रैकेट था? घोड़ों के जबलपुर पहुंचने से लेकर मौतों को छिपाने तक यह प्रकरण प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल उठाता है।

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