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MP के जबलपुर के रेपुरा गांव में हैदराबाद रेस क्लब से लाए गए घोड़ों की लगातार मौतें अब प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। यह पूरा मामला सिर्फ पशु क्रूरता का नहीं, बल्कि जिम्मेदार विभागों की चुप्पी और देर से हुई कार्रवाई का भी है।
बिना दस्तावेज के हुआ घोड़ों का परिवहन
हैदराबाद स्थित Hetha Net India Private Limited ने सचिन तिवारी निवासी जबलपुर के जरिए 29 अप्रैल से 3 मई 2025 के बीच कुल 57 घोड़ों का सड़क मार्ग से परिवहन किया। आरोप है कि इस परिवहन की सूचना न तो जिला प्रशासन को दी गई और न ही पशुपालन विभाग को। हैरानी की बात यह रही कि यह सारा काम सिर्फ ग्राम पंचायत रेपुरा की अनुमति के आधार पर कर लिया गया। घोड़ों का इस तरह बिना रजिस्ट्रेशन और पासपोर्ट के परिवहन करना न सिर्फ गैरकानूनी है, बल्कि जानवरों की सुरक्षा के लिहाज से भी गंभीर लापरवाही है।
बीमार पड़ने लगे घोड़े, मौतों का सिलसिला शुरू
ग्राम रेपुरा पहुंचने के कुछ ही दिनों बाद घोड़ों में बीमारी और संक्रमण की जानकारी सामने आने लगी थी। जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना के निर्देश में गठित पशु चिकित्सक दल की रिपोर्ट में पहले बताया गया कि घोड़ों की मौत संभावित गलेंडर्स नाम की बीमारी से हुई है।
जांच रिपोर्ट में कोई भी घोड़े इस बीमारी से ग्रसित नहीं पाए गए थे। और अब अपनी पिछली प्रेस विज्ञप्ति से पलटते हुए प्रशासन ने बताया है कि कई घोड़े उच्च ज्वर (High Grade Pyrexia), सुस्ती (Lethargy), शरीर पर घाव और खून बहने जैसी स्थिति में थे। और इसका कारण उन्हें गलत ढंग से ट्रांसपोर्ट करना था। इससे यह भी सामने आया कि प्रशासन की निगरानी में ही इलाज के दौरान लगातार घोड़ों की मौतें होती रहीं।
- अब FIR में यह यह बताया गया है कि जांच रिपोर्ट के अनुसार, कई घोड़ों की मौत अलग-अलग कारणों से हुई थी जैसे
- 09 मई 2025, सुबह 8:15 बजे - अश्व क्रमांक P-15 (मिल माटा) की मौत, गंभीर घाव और बुखार से जूझ रहा था।
- 14 मई 2025, सुबह 10:57 बजे - अश्व क्रमांक P-52 (Through bred, उम्र 9 वर्ष) की मौत, शरीर पर नोड्यूल्स और नाक से खून आ रहा था।
- 15 मई 2025, सुबह 5:43 बजे - अश्व क्रमांक 405 (काले रंग का माटा घोड़ा) की मौत, लंगड़ापन और लैमिनाइटिस की आशंका थी।
- 16 मई 2025, सुबह 9:12 बजे - रेड टेंट शेड, ग्राम रेपुरा में एक और घोड़ा मृत पाया गया।
एफआईआर में अब तक कुल 19 घोड़ों की मौत दर्ज है, जबकि प्रशासन ने शुरुआती प्रेस विज्ञप्ति में केवल 8 मौतें स्वीकार की थीं और उसे समय मौत के ऐसी कोई भी कारण नहीं बताए गए थे। हालांकि FIR में यह भी सामने नहीं आया है कि पशु चिकित्सा विभाग के द्वारा पहले स्वस्थ घोषित किए गए 49 घोड़ों में से भी मौतें कैसे होती रही।
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प्रशासन ने बताया था 49 घोड़ों को स्वस्थ
23 मई 2025 को जिला प्रशासन ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दावा किया था कि 57 में से 49 घोड़े पूरी तरह स्वस्थ हैं और सिर्फ 8 की मौत हुई है। साथ ही यह भी बताया गया कि सभी घोड़ों के ब्लड सैंपल हिसार स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र भेजे गए, जिनमें से 44 की रिपोर्ट निगेटिव आई है और 9 की रिपोर्ट शेष थी जिसकी जानकारी आज तक नहीं मिल पाई है।
घोड़ों को ऐसे कोई भी सिमटम नहीं थे जो गलेंडर्स बीमारी से जुड़े हो और यह बात घोड़े की जांच रिपोर्ट में भी साबित हुई। लेकिन यहां पर इस बीमारी को बीच में लाने का मुख्य कारण यह था कि इस बीमारी का शक होने पर भी घोड़ों का पोस्टमार्टम नहीं किया जाता और इस तरह से बिना पोस्टमार्टम के घोड़ों को दफनाया गया और उनकी मौत के सच को सामने ना लाने की भरपूर कोशिश की गई।
इसके बावजूद मौतें नहीं रुकी। यही नहीं, प्रशासन की प्रेस विज्ञप्ति पर यह सवाल भी उठे कि जब शुरुआत से ही घोड़ों के पास जरूरी कागज़ात और पासपोर्ट नहीं थे, तब उन्हें जिले में प्रवेश ही क्यों दिया गया और इस मामले की जानकारी मिलने के बाद भी सचिन तिवारी पर कार्यवाही करने में देर करते हुए, घोड़ों को मरने के लिए क्यों छोड़ दिया गया ?
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ब्रीडिंग का है पूरा खेल
इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि एनिमल एक्टिविस्ट और पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी जिला प्रशासन से संपर्क किया।लेकिन हकीकत यह रही कि प्रशासन ने महीनों तक केवल इलाज और सैंपलिंग का काम किया, जबकि मौतें लगातार जारी रहीं। इस मामले में सचिन तिवारी से जब हमने बात की तो उसने खुद कबूल किया कि वह घोड़ों को खरीद कर ब्रीडिंग कर बेचने का काम करता है।
हैदराबाद के रेस कोर्स में अवैध बैटिंग के के मामले में फंसने पर वह रेस कोर्स बंद हुआ तो वहां से सचिन तिवारी ने यह घोड़े जबलपुर लेकर आया। आपको बताने की रेस कोर्स में इस्तेमाल होने वाले घोड़े की अलग-अलग नस्ल की कीमत 20 लाख से 1 करोड रुपए तक होती है। ब्रीडिंग के बाद रेस जीतने वाले घोड़े से पैदा हुए बच्चे की कीमत भी बढ़कर मिलती है। हालांकि इस मामले में सचिन तिवारी का यह कहना है कि उसके पास घोड़े के सभी दस्तावेज हैं पर अभी यह दस्तावेज हमारे सामने नहीं आए है।
यहां एक बात तो साफ है कि मोटा मुनाफा कमाने के लिए सचिन तिवारी इन घोड़े को हैदराबाद से लेकर आया था और बिना पूरी प्रक्रिया के जबलपुर में रेस कोर्स खोलने का सपना देखने वाले सचिन तिवारी के साथ प्रशासन की मिली भगत से भी इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि घोड़ों की लगातार मौत के बाद भी उन्हें पशु चिकित्सा विभाग या प्रशासन ने अपने कब्जे में नहीं लिया और सचिन तिवारी के पास ही मरने को छोड़ दिया। लगातार 3 महीनो तक घोड़ों की मौत के बाद मामला दर्ज करने में देरी भी अब सवाल खड़े कर रही है।
मजबूरी में FIR कराना सिर्फ पल्ला झाड़ने की कोशिश
मीडिया और जनचर्चा में मामला आने के बाद भी शुरुआती दौर में प्रशासन ने सचिन तिवारी को बचाने की भरपूर कोशिश की। 3 महीने तक घोड़े की निगरानी की ही बात होती रही और कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। आखिरकार जब लगातार घोड़ों मौत होती रही तब मजबूरी में प्रशासन ने अचानक पनागर थाने में FIR दर्ज करा दी। एफआईआर में साफ लिखा गया है कि सचिन तिवारी ने घोड़ों के परिवहन की कोई जानकारी प्रशासन को नहीं दी थी। अब प्रशासन इसे आधार बनाकर खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है।
5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी👉 हैदराबाद से 29 अप्रैल से 3 मई 2025 के बीच 57 घोड़ों का बिना किसी प्रशासनिक अनुमति और दस्तावेज के सड़क मार्ग से जबलपुर के रेपुरा गांव में परिवहन किया। 👉 रेपुरा गांव पहुंचने के बाद घोड़ों में बीमारियां और संक्रमण फैलने लगे। प्रशासन ने पहले गलेंडर्स बीमारी का शक जताया। बाद में पता चला कि घोड़ों में उच्च ज्वर, सुस्ती, घाव और खून बहने जैसी समस्याएं थीं। 👉 प्रशासन ने पहले दावा किया था कि 57 घोड़ों में से 49 स्वस्थ हैं और केवल 8 घोड़ों की मौत हुई है। बाद में यह सामने आया कि प्रशासन ने घोड़ों के पोस्टमार्टम और मौत के असल कारणों को छिपाने की कोशिश की। 👉सचिन तिवारी, जो घोड़ों को ब्रीडिंग के लिए लाया था, ने स्वीकार किया कि वह घोड़ों को खरीदकर ब्रीडिंग कर बेचता है। वह इन घोड़ों को हैदराबाद के रेस कोर्स से लेकर आया था, जो एक अवैध बैटिंग मामले में बंद हो गया था। 👉मीडिया और जनचर्चा में मामला उठने के बाद, प्रशासन ने मजबूरी में एफआईआर दर्ज की। एफआईआर में यह स्वीकार किया गया कि घोड़ों के परिवहन की जानकारी प्रशासन को नहीं दी गई थी। |
इस मामले ने कई बड़े सवाल खड़े किए
जब घोड़े बिना दस्तावेज़ और पासपोर्ट के आए, तब प्रशासन ने उन्हें क्यों नहीं रोका और सचिन तिवारी के ऊपर कोई कार्यवाही तब क्यों नहीं हुई?
- अगर 23 मई को 49 घोड़े स्वस्थ थे, तो फिर उसके बाद मौतें क्यों होती रहीं?
- बिना किसी लक्षण के क्यों जानकार बनाया गया गलेंडर्स बीमारी का पेंच ?
- घोड़ों की प्रारंभिक मौत की जानकारी मिलने के बाद भी घोड़े का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया ?
- क्या प्रशासन ने जानबूझकर मौतों का इंतजार किया और आखिरकार मजबूरी में मामला दर्ज करना पड़ा?
जिम्मेदारी तय होनी बाकी
यह पूरा मामला प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े करता है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम की धाराओं में मामला दर्ज कर दिया गया है, लेकिन असली जिम्मेदारी अब तक तय नहीं हुई। घोड़ों की मौतें केवल परिवहन में हुई लापरवाही का नतीजा नहीं थीं, बल्कि प्रशासनिक चुप्पी और देर से हुई कार्रवाई का भी परिणाम थीं। अब देखना यह है कि यह FIR वास्तव में न्याय दिलाने का जरिया बनेगी या सिर्फ प्रशासन को बचाने की कवायद साबित होगी।
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