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Jabalpur News: जबलपुर के रेपुरा गांव में हैदराबाद से लाए गए 57 घोड़ों का मामला अब बड़े खुलासे के साथ और गंभीर हो गया है। वेटनरी विभाग की जांच में 14 घोड़े कम पाए गए थे।
मामले को लेकर द सूत्र ने घोड़ों के केयरटेकर और आरोपी सचिन तिवारी से बात की। बातचीत में पता चला कि घोड़े गायब नहीं हुए, बल्कि उन्हें बेच दिया गया है। अब इस खुलासे के कुछ दस्तावेज भी सामने आए हैं।
द सूत्र के हाथ ओनरशिप ट्रांसफर के दस्तावेज लगे हैं। इससे ये पता चला कि घोड़ों का देखभाल करने वाले सचिन तिवारी ने 6 अक्टूबर 2025 को अपने नाम पर एक ओनरशिप एग्रीमेंट किया था।
चुपचाप बेचे 14 घोड़े
सचिन तिवारी ने इस बीच बचे हुए 38 घोड़ों को आंध्र प्रदेश की Hitha Net Pvt. Ltd. कंपनी के गद्दम पवानी से खरीद लिया। इसके बाद, वेटरनरी विभाग की दैनिक निगरानी और हाई कोर्ट में चल रहे मामले के बावजूद, उसने बिना किसी को बताए चुपचाप 14 घोड़े बेच दिए।
और तो और, प्रशासन और विभाग को इसकी कोई खबर तक नहीं लगी। बता दें कि सचिन को सभी ओनर मानते थे लेकिन अभी तक वह केयरटेकर था।
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बेटिंग एप्स, बीमार घोड़े और अब गुपचुप बिक्री
हैदराबाद से 29 अप्रैल से 3 मई 2025 के बीच 57 मारवाड़ी और काठियावाड़ी नस्ल के घोड़े जबलपुर लाए गए थे। याचिका में आरोप है कि इन घोड़ों का उपयोग बेटिंग एप्स और रेस कोर्स गतिविधियों में किया जाता था।
जबलपुर पहुंचने के बाद कई घोड़े गंभीर रूप से बीमार हुए और अब तक 20 घोड़ों की मौत हो चुकी है। इस बीच, बचे हुए 37 घोड़ों की नियमित जांच की जिम्मेदारी वेटनरी टीम के पास थी। बुधवार को सिर्फ 23 घोड़े ही डेयरी में मिले, जिससे प्रशासन सतर्क हुआ।
अब सचिन तिवारी के बयान और दस्तावेजों से यह सामने आया कि उसने ओनरशिप अपने नाम ट्रांसफर कराई। फिर उत्तर प्रदेश व कोलकाता के कारोबारियों को घोड़े बेच दिए।
घोड़ों की बिक्री पर सवाल
यह पूरा मामला ये सवाल उठाता है कि जब सरकारी निगरानी थी। कोर्ट में मामला चल रहा था। वेटरनरी विभाग और प्रशासन फार्म पर रोजाना निगरानी कर रहे थे। फिर भी घोड़े कैसे बिक गए?
वेटरनरी विभाग के उप संचालक प्रफुल्ल मून ने बताया कि जब जांच की गई तो 14 घोड़े कम मिले। इसके बाद आरोपी से जानकारी ली गई।
उनसे बातचीत में ये पता चला कि उन्हें घोड़ों की बिक्री और ओनरशिप ट्रांसफर के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। टीम रोजाना घोड़ों की निगरानी कर रही थी।
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आरोपी ने कहा- व्यापारियों को बेचे घोड़े
सचिन तिवारी ने खुद यह माना कि घोड़ों के इलाज पर उसे अपनी जेब से 15-16 लाख रुपए खर्च करने पड़े थे। उसने बताया कि ओनरशिप ट्रांसफर के बाद उसने घोड़ों को यूपी और कोलकाता के व्यापारियों को बेच दिया। क्योंकि कंपनी महीनों से इलाज का खर्च नहीं दे रही थी।
हाईकोर्ट में एमपी में घोड़ों की मौत का मामला चल रहा था और वेटरनरी विभाग भी घोड़ों की निगरानी कर रहा था। फिर भी प्रशासन की नाक के नीचे घोड़ों की ओनरशिप ट्रांसफर हो गई।
इसके बाद घोड़ों की चोरी-छिपे बिक्री भी हो गई। ये सारे घटनाक्रम अब प्रशासन की लापरवाही और बड़ी गड़बड़ी की तरफ इशारा कर रहे हैं।
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