भोपाल के स्कूली बच्चों में हाई ब्लड प्रेशर की सच्ची तस्वीर, AIIMS की नई स्टडी

AIIMS Bhopal ने 10 से 18 साल के 824 स्कूल बच्चों पर रिसर्च की और पाया कि सिर्फ लगभग 1.4 प्रतिशत में ही सच में हाई ब्लड प्रेशर था, जबकि पहले देश स्तर पर करीब 7–8 प्रतिशत का अनुमान लगाया जाता रहा है। स्टडी कहती है, सही और दोहराई जांच बहुत जरूरी है।

author-image
Manya Jain
New Update
aiims-bhopal-research-high-blood-pressure-hypertension-in-school-children
Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

 5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला

  • भोपाल के सरकारी स्कूलों के 10 से 18 साल के बच्चों पर यह रिसर्च हुई।

  • 824 बच्चों को कई हफ्तों तक बार-बार ब्लड प्रेशर जांच के लिए बुलाया गया।  

  • हर बच्चे की तीन विजिट पर कुल नौ रीडिंग ली गईं और फिर विश्लेषण हुआ। 

  • नतीजे में सच में हाई बीपी सिर्फ लगभग 1.4 प्रतिशत बच्चों में पाया गया। 

  • स्टडी मानती है कि एक दिन की रीडिंग से बच्चे को हाई बीपी मरीज नहीं कहना चाहिए।  

 MP News: भोपाल के एक स्कूल में एक हैरान करने वाली कहानी सामने आई। सोचिए, स्कूल असेंबली के बाद बच्चे हंसी-मजाक करते हुए क्लास में जा रहे हैं। इस भीड़ में कुछ बच्चों का ब्लड प्रेशर बढ़ चुका है, और किसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।

 AIIMS Bhopal की टीम ने इन बच्चों की स्थिति को समझने की कोशिश की। टीम का मानना था कि बच्चों में हाइपरहाईटेंशन      शन के डर को कम किया जाए। सही जानकारी और आंकड़े सामने लाए जाएं ताकि इसके बारे में सही समझ बनी सके।

यह रिसर्च इस बात पर केंद्रित था कि बच्चों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता (medicines for diabetes and blood pressure) बढ़ाई जाए। यह जरूरी है कि बच्चों को सही जानकारी मिले ताकि वे खुद अपनी सेहत का ध्यान रख सकें।

स्टडी में कौन बच्चे शामिल हुए और कैसे जांच हुई

रिसर्च टीम ने जून से दिसंबर 2023 के बीच भोपाल के शहरी सरकारी स्कूल चुने। 849 बच्चों में से मानक पूरा करने वाले 824 बच्चों को स्टडी में शामिल किया गया। जो 10 से 18 साल की उम्र के थे, वही फाइनल एनालिसिस चुने गए थे। आखिर में 795 बच्चों के डेटा से मेन रिजल्ट निकाले गए।

हर बच्चे को तीन अलग दिनों पर स्कूल में ही जांच के लिए बुलाया गया। हर विजिट के बीच लगभग एक सप्ताह का अंतर रखा गया ताकि रूटीन जीवन चल सके।  हर विजिट पर ब्लड प्रेशर तीन बार नापा गया, यानी कुल नौ रीडिंग तैयार हुईं। इन सभी रीडिंग को अंतरराष्ट्रीय पीडियाट्रिक चार्ट के अनुसार वर्गीकृत किया गया।

कितने बच्चों में सच में निकला हाई ब्लड प्रेशर 

जब सभी विजिट की नौ रीडिंग को जोड़कर देखा गया, तो तस्वीर बदली। हाइपरटेंशन ( lifestyle) की वास्तविक दर 1.4 प्रतिशत निकली, यानी सौ में लगभग एक बच्चा। पहले कई भारतीय स्टडी में यह आंकड़ा लगभग 7.6 प्रतिशत तक बताया गया था।  इस अंतर से साफ हुआ कि कम रीडिंग वाली स्टडी में अनुमान ज्यादा हो रहा था। स्टडी ने यह भी दर्ज किया कि लड़कों में जोखिम ज्यादा दिखा।  

करीब 2.6 प्रतिशत लड़के हाइपरटेंशन की श्रेणी में आए। लड़कियों में यह दर सिर्फ लगभग 0.2 प्रतिशत रही, यानी संख्या काफी कम रही। यह अंतर बताता है कि स्कूल हेल्थ प्रोग्राम में लड़कों की स्क्रीनिंग पर खास ध्यान चाहिए। 

ये भी पढ़ें...नाक भी होती है सेंसेटिव, जानें कौन-कौन सी बीमारी के संकेत देती है नाक

 एक दिन में ली गई रीडिंग क्यों भटका सकती है

किशोर बच्चों का ब्लड प्रेशर दिन भर में कई कारणों से बदलता रहता है। क्लास टेस्ट, घर की चिंता या खेल के बाद थकान, सभी का असर रीडिंग पर पड़ता है। बहुत बार बच्चे डॉक्टर या हेल्थ वर्कर को देखकर भी नर्वस हो जाते हैं। इसे व्हाइट कोट इफेक्ट कहा जाता है, जिसमें डर से बीपी अचानक ऊपर चला जाता है।

अगर ऐसे में सिर्फ पहली विजिट की रीडिंग पर फैसला हो, तो गलती बढ़ जाती है। कई बच्चों को हाइपरटेंसिव मान लिया जाता है, जबकि आगे की रीडिंग सामान्य आती। भोपाल की टीम ने जब तीन विजिट के आंकड़ों को जोड़ा, तो मामलों की संख्या घट गई। यहीं से संदेश निकला कि बच्चों के लिए एक बार की जांच कभी काफी नहीं हो सकती।

मोटापा, खानपान और दूसरे छिपे कारण

दुनिया भर की कई रिपोर्टें बचपन के हाइपरटेंशन को मोटापे से जोड़ती हैं। लेकिन इस सैंपल में मोटापा बहुत बड़ा कारण नहीं दिखा। रिसर्चकर्ताओं ने माना कि कई बच्चों का वजन सामान्य होने पर भी बीपी ऊंचा मिल गया।

इससे संकेत मिला कि सिर्फ वजन देखकर जोखिम का अनुमान लगाना सही नहीं होगा। टीम का मानना है कि शहर के स्कूलों में खानपान की आदतें भी अहम हैं।

ज्यादा नमक वाला जंक फूड, पैकेट स्नैक्स और सॉफ्ट ड्रिंक जैसे कारण असर डाल सकते हैं। पढ़ाई का दबाव और पारिवारिक तनाव भी किशोरों के ब्लड प्रेशर को धीरे-धीरे बदल सकते हैं। अगर परिवार में पहले से हाई बीपी हो, तो बच्चे का जोखिम और बढ़ सकता है।

ये भी पढ़ें...मिलेगा 10 लाख तक कैशलेस इलाज, एमपी में कर्मचारियों के लिए आ रही है मुख्यमंत्री आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना

हाइपरटेंशन टैग देना आसान काम नहीं

स्टडी के लेखक साफ कहते हैं कि किशोर को हाइपरटेंशन टैग देना आसान काम नहीं होना चाहिए। उनकी सलाह है कि कम से कम तीन अलग विजिट पर बीपी मापा जाए। जब कम से कम दो विजिट पर रीडिंग लगातार ऊंची हो, तभी निदान तय किया जाए।

इसके लिए सही चार्ट और आयु आधारित मानकों का उपयोग भी जरूरी बताया गया है। रिसर्चकर्ता चाहते हैं कि राष्ट्रीय और राज्य हेल्थ प्रोग्राम इस मॉडल को अपनाएं। स्कूल हेल्थ चेकअप में एक बार की जगह मल्टी विजिट प्लान बनाया जाए।

जहां संभव हो, वहां 24 घंटे की एंबुलेटरी मॉनिटरिंग पर भी विचार करने की बात आई है। इससे उन बच्चों को पकड़ा जा सकेगा, जिनका बीपी सिर्फ घर या स्कूल से बाहर बढ़ता है।

माता पिता और स्कूल क्या सीख सकते हैं

स्टडी से एक राहत भरा संदेश मिला कि बड़े पैमाने पर हाई बीपी की लहर नहीं दिखी। ज्यादातर बच्चे सुरक्षित दायरे में हैं, फिर भी नजर रखना जरूरी है। एक छोटा समूह, खासकर लड़के, पहले से जोखिम में हैं और इन्हें समय पर पहचानना होगा।

वरना आगे चलकर दिल और किडनी से जुड़ी दिक्कतें बढ़ने की आशंका रहती है। माता-पिता के लिए संदेश है कि वे नियमित बीपी जांच से डरें नहीं। लेकिन एक रीडिंग ऊंची आने पर तुरंत घबराएं भी नहीं और दोहराई जांच कराएं।

स्कूलों के लिए जरूरी है कि हेल्थ कैंप में बीपी मापने की प्रक्रिया को बेहतर बनाया जाए। रिकॉर्ड अच्छे से रखें, ताकि जरूरत पड़ने पर डॉक्टर को पूरी हिस्ट्री मिल सके।

ये भी पढ़ें...रहस्यमयी बीमारी से 90 से अधिक मौत, सरकार और स्वास्थ्य विभाग अनजान, झोला छाप डॉक्टर बने मुसीबत

बच्चों के लिए आसान और काम की आदतें

बच्चों के लिए सबसे पहले संदेश है कि हाई बीपी शब्द सुनकर घबराने की जरूरत नहीं। इसके बजाय रोज की आदतों पर थोड़ा ध्यान देना ज्यादा असरदार साबित होगा। ज्यादा नमक और तली चीजों को कम कर घर का सादा खाना बढ़ाना मदद करेगा।

दिन भर में पर्याप्त पानी पीना भी ब्लड प्रेशर संतुलित रखने में सहायक है। मोबाइल और स्क्रीन टाइम घटाकर खुला खेल और हल्की एक्सरसाइज बढ़ाना फायदेमंद है। हर दिन कम से कम आधा घंटा तेज चलना या खेलना दिल के लिए अच्छा माना गया है।

नींद पूरी लेना, देर रात तक जागने की आदत छोड़ना भी बीपी पर सकारात्मक असर डालता है। अगर डॉक्टर ने फॉलो अप विजिट कहा है, तो कोई विजिट मिस न करना सबसे जरूरी है।

रिसर्च टीम और स्रोतों को क्रेडिट

यह स्टडी एआईआईएमएस भोपाल के पीडियाट्रिक्स विभाग ने तैयार की। लीड लेखक प्रोफेसर डॉ महेश महेश्वरी रहे, जिनके साथ कई विशेषज्ञ जुड़े रहे। सह लेखकों में रेवदी गौरूमूर्ति, अमित कुमार, स्मृति भास्कर और अन्य शामिल हैं। रिसर्च पेपर अक्टूबर 2025 में बीएमसी पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित हुआ।

इस खबर में उपयोग किए गए सभी प्रमुख तथ्य टाइम्स ऑफ इंडिया भोपाल सिटी रिपोर्ट से लिए गए हैं। साथ ही बीएमसी पीडियाट्रिक्स के मूल रिसर्च पेपर और हेल्थ गाइडलाइन लेखों पर भी आधारित हैं।

ये भी पढ़ें...अब सूंघकर दूर होगी डायबिटीज, सिपला ने लांच किया इन्हेल्ड इंसुलिन Afrezza

MP News AIIMS Bhopal medicines for diabetes and blood pressure lifestyle हाईटेंशन
Advertisment