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INDORE. वरिष्ठ नागरिक अधिकार अधिनियम के मामलों को लेकर इंदौर हाईकोर्ट ने एक बेहद अहम टिप्पणी के साथ फैसला दिया है। इस फैसले में हाईकोर्ट ने माता-पिता को देव तुल्य बताते हुए साफ तौर पर कहा है कि इस एक्ट के तहत अपील का अधिकार केवल माता-पिता को ही है। संतान या अन्य पक्षकार अपील नहीं कर सकते। यानी यदि किसी स्तर पर माता-पिता के खिलाफ फैसला आता है तो वे अपील कर सकते हैं। वहीं यदि उनके पक्ष में फैसला आता हो तो संतान अपील नहीं कर सकती।
वेदों से लिया ऋचा का संदर्भ
इंदौर हाईकोर्ट की जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस विनोद कुमार दिवेदी की डबल बेंच ने वेदों की ऋचा का संदर्भ भी लिया। कोर्ट ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, अर्थात् माता भी देव की तरह और पिता भी देव के समान माने गए हैं।
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यह है पूरा केस और इसके मायने
अधिवक्ता अभिनव धनोतकर ने बताया कि हाईकोर्ट में शांतिबाई ने केस दायर किया था। अपील में वेद, कुरान और बाइबिल में माता-पिता को भगवान के समान माना जाने का उदाहरण दिया गया।
इसमें कहा गया कि इसी भावना के तहत यह वरिष्ठ नागरिक अधिकार कानून बनाया गया है। इसमें बच्चों को अपील का अधिकार नहीं है। यह कानून माता-पिता के हितों की रक्षा के लिए है, ताकि उन्हें तत्काल न्याय मिल सके।
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अपर कलेक्टर के आदेश को किया खारिज
हाईकोर्ट ने इन दलीलों के बाद अपर कलेक्टर के आदेश को खारिज कर दिया। इस आदेश में बच्चों की अपील को मान्य किया गया था। साल 2022 में शांतिबाई की बेटी मंजूरी कुनारे और दामाद प्रेमचंद ने उनके घर पर कब्जा कर लिया था।
कलेक्टर के आदेश पर एसडीएम ने सुनवाई की थी। साथ ही, सितंबर 2024 में आदेश दिया कि मंजूरी 30 दिन के भीतर मकान खाली कर शांतिबाई को कब्जा दे।
इस आदेश के खिलाफ मंजूरी ने अपर कलेक्टर कोर्ट में अपील की थी। इसे अपर कलेक्टर ने स्वीकार कर लिया था। इसके खिलाफ शांतिबाई ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। इसमें कहा कि इस एक्ट के तहत संतान या अन्य पक्षकार को अपील का अधिकार ही नहीं है। ऐसा होने पर वरिष्ठ नागरिकों को राहत मिलना बंद हो जाएगी। हाईकोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया।
वरिष्ठ नागरिक अधिकार कानून को लेकर कोर्ट ने यह भी कहा
अपील मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह विधि द्वारा प्रदत्त एक अधिकार है।
वरिष्ठ नागरिक एक्ट का उद्देश्य लंबी कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि वृद्धजन को तत्काल राहत देना है।
यदि किसी को आदेश से शिकायत है तो वह सामान्य दीवानी न्यायालय में केस कर सकता है, लेकिन इस एक्ट के तहत अपील नहीं कर सकता।