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रवि अवस्थी, भोपाल।
छिंदवाड़ा में आधा दर्जन मासूम बच्चों की मौत के बाद भी सरकार अब तक सख्त कदम उठाने से बच रही है। जिन कफ सिरपों-कोल्ड्रिफ (Coldrif) और नेक्सट्रॉस डीएस (Nextro-DS)-को मौत की वजह माना जा रहा है, वे अब भी खुले बाजार में बिक रहे हैं। वजह सिर्फ़ इतनी कि सरकार "रिपोर्ट आने का इंतजार" कर रही है।
मौत के बाद भी खामोशी,कलेक्टर को हटाया
बुखार से पीड़ित बच्चों को जब ये सिरप दिया गया, तो उनकी किडनी फेल हो गई। पेशाब रुकने पर उन्हें नागपुर ले जाया गया, जहाँ एक-एक कर सभी ने दम तोड़ दिया। नागपुर में हुई किडनी बायोप्सी में भी इन सिरपों के सेवन की पुष्टि हुई। फिर भी राज्य स्तर पर कोई रोक नहीं लगी। हाँ, तत्कालीन कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने हिम्मत दिखाते हुए सिरप पर रोक लगाई, लेकिन कुछ ही घंटों बाद उनका तबादला कर दिया गया।
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विशेषज्ञों की सलाह पर की दवा प्रतिबंधित
शीलेंद्र सिंह ने जिले में दवा के विक्रय व सेवन को प्रतिबंधित करने का फैसला इस मामले में जांच के लिए बनाई गई एक्सपर्ट कमेटी की सलाह पर लिया। इससे पहले एक बैठक भी हुई। इसमें सीईओ जिला पंचायत,सीएमएचओ,मेडिकल कॉलेज डीन,डॉक्टर्स, ड्रग्स इंस्पेक्टर और बाकी अधिकारी शामिल रहे। दरअसल,विशेषज्ञों ने पेयजल व अन्य बिंदुओं पर भी जांच की लेकिन इनमें कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई। नागपुर में भर्ती बच्चों की किडनी बायोप्सी हुई थी। जांच में सामने आया कि मृत ज्यादातर बच्चों को इलाज के दौरान एक कॉमन कफ सिरप कोल्ड्रिफ Coldrif और नेक्सट्रॉस डीएस Nextro-DS दिया गया।
दिन भर चला मंथन का दौर
छिंदवाड़ा जिला प्रशासन के फैसले के बाद संबंधित कफ सिरफ उपयोग को लेकर नियंत्रक खाद्य एवं औषधि दफ्तर में पूरे दिन मंथन का दौर जारी रहा। देर शाम खाद् एवं औषधि नियंत्रक दिनेश कुमार मौर्य ने कहा कि लंबे विमर्श के बाद यह तय हुआ कि पहले दवा सेंपल की जांच होगी। इसकी रिपोर्ट आने पर तय होगा कि दवा को प्रदेशभर में प्रतिबंधित करना है या नहीं। सूत्रों का दावा है कि रिपोर्ट आने में वक्त लग सकता है।
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एक-दूसरे पर डाली जिम्मेदारी
वहीं,स्वास्थ्य आयुक्त तरुण राठी ने कहा कि दवा प्रतिबंध का निर्णय खाद्य एवं औषधि प्रशासन को लेना है। वह इस बारे में कुछ नहीं कह सकते। जहां तक स्वास्थ्य सेवाओं की बात तो विभाग इस मामले में पूरी तरह सतर्क है। छिंदवाड़ा मामले में नमूने इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च नईदिल्ली को भी भेजे गए। वहां से अब तक कोई रिपोर्ट शासन को नहीं मिली है। लिहाजा इस मामले में बच्चों की मौत की असल वजह को लेकर साफ तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।
इधर,दवा कार्पोरेशन के एमडी मयंक अग्रवाल ने कहा कि दवा प्रतिबंध का काम कार्पोरेशन नहीं करता। मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि सरकारी खरीदी में यह सिरप नहीं खरीदा जा रहा है।
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ड्रग ट्रायल का भी अंदेशा,पहले भी हुई 35 मौतें
छिंदवाड़ा जिले में कफ सिरफ सेवन से हुई आधा दर्जन बच्चों की मौत के बाद मामले को ड्रग ट्रायल से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इससे पहले भी साल 2008-09 में इंदौर संभाग में ड्रग ट्रायल से हुई 35 मरीजों की मौतों के मामले सामने आ चुके हैं। ड्रग ट्रायल से करीब 81 मरीजों को गंभीर दुष्परिणाम का सामना भी करना पड़ा। विधानसभा में मामला उठने के बाद सरकार ने ईओडब्ल्यू व लोकायुक्त को जांच सौंपी।
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आरोपी डॉक्टर्स से वसूली कर किया बरी
साल 2011-12 में आई जांच रिपोर्ट में एमजीएम कॉलेज इंदौर के आधा दर्जन डॉक्टर्स इसमें लिप्त पाए गए। इनमें कॉलेज की तत्कालीन डीन डॉ. पुष्पा वर्मा, डॉ. रामगुलाम राजदान और डॉ. हेमंत जैन डॉ. अनिल भराणी, डॉ. अशोक वाजपेयी व डॉ. सलील भार्गव के नाम सामने आए। कुछ डॉक्टर्स पर जुर्माना भी लगाया गया। ऑटोनोमस डॉक्टर्स की वेतनवृद्धि रोकी गई थी। बाद में स्वास्थ्य विभाग ने आरोपी डॉक्टर्स से ड्रग ट्रायल में हुई कमाई का आधा हिस्सा लेकर इन्हें बरी कर दिया।
क्या है ड्रग ट्रायल,विवाद क्यों?
ड्रग ट्रायल का मतलब है नई दवा को इंसानों पर आजमाना ताकि यह देखा जा सके कि वह दवा कितनी सुरक्षित और प्रभावी है। यह प्रक्रिया आम तौर पर चार चरणों में होती है –
प्री-क्लिनिकल स्टेज: दवा को पहले जानवरों पर टेस्ट किया जाता है।
फेज-1 ट्रायल: दवा को बहुत कम संख्या (20–80) स्वस्थ लोगों पर आज़माया जाता है, यह देखने के लिए कि कोई नुकसान तो नहीं।
फेज-2 ट्रायल: दर्जनों से सैकड़ों मरीजों पर दवा दी जाती है, ताकि असर और साइड इफेक्ट्स दोनों समझे जा सकें।
फेज-3 ट्रायल: हज़ारों मरीजों पर ट्रायल होता है। यहां असर, सुरक्षा और तुलना पुरानी दवाओं से की जाती है।
फेज-4 निगरानी: दवा बाजार में आने के बाद भी उस पर निगरानी रखी जाती है।
विवाद की वजह ये..
कई बार बिना मरीज/परिजनों की सहमति लिए ट्रायल किए गए। गरीब मरीजों को लालच देकर दवा दी गई। साइड इफेक्ट और मौतों की सही जांच/जवाबदेही नहीं ली गई। इसलिए ड्रग ट्रायल पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, खासकर तब जब बिना पारदर्शिता और सुरक्षा के ये किए जाएँ।