मप्र में मौखिक ही चल रहा पदोन्नति पर बैन, जीएडी ने कभी नहीं लगाई रोक

नौकरशाही 'लकीर की फकीर'कही जाती है। जो सिर्फ लिखित नियम—कायदे पर ही काम करती है,लेकिन मप्र में पदोन्नति को लेकर बीते 9 सालों में सबकुछ सिर्फ मौखिक होता रहा।

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Ravi Awasthi
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Photograph: (the sootr)

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भोपाल. राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने आपने मप्र पर्यटन विकास निगम का यह स्लोगन तो सुना ही होगा..... "एमपी अजब है, सबसे गजब है!"  करीब दो दशक पहले निगम के विज्ञापन का यह स्लोगन तब खूब चर्चित हुआ था, लेकिन वाकई एमपी अजब है..

यह साबित कर दिखाया यहां की नौकरशाही ने, जिसने एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे नौ साल तक राज्य के सरकारी अधिकारी कर्मचारियों को मौखिक आदेश पर पदोन्नति से वंचित रखा। इस दौरान एक लाख से ज्यादा अधिकारी, कर्मचारी बिना पदोन्नति रिटायर हो गए। 

राज्य का जीएडी विभाग अब कह रहा है,कि हमने तो पदोन्नति पर प्रतिबंध का आदेश कभी जारी ही नहीं किया। जबकि न्यायालय के किसी भी फैसले को क्रियान्वित कराने जीएडी सर्कुलर या आदेश समय-समय पर जारी करता है,लेकिन इस मामले में विभाग चुप्पी साधे रहा और विभाग प्रमुख मूकदर्शक की भूमिका में रहे।

हाल ही में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत ग्वालियर के जयंतीलाल जाटव की ओर से मांगी गई जानकारी के जवाब में जीएडी की लोक सूचना अधिकारी एवं अपर सचिव सुमन रायकवार ने लिखा -  विभाग की ओर से पदोन्नतियों पर रोक को लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया गया। 

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अनारक्षित भी हुए प्रभावित

एक बड़ा सवाल यह भी पदोन्नति में आरक्षण प्रावधान को लेकर याचिका आरक्षित श्रेणी को लेकर लगाई गई थी। न्यायालय का ​तत्कालीन फैसला भी इसी वर्ग को लेकर आया। तब अनारक्षित यानी सामान्य श्रेणी के अधिकारी,कर्मचारी पदोन्नति से क्यों वंचित रहे?

इसे ऐसे समझा जा सकता है कि साल 2002 में तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने पदोन्नति के नए नियम बनाते हुए प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान कर दिया था। ऐसे में आरक्षित वर्ग के कर्मचारी प्रमोशन पाते गए, लेकिन अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पिछड़ गए।

जब इस मामले में विवाद बढ़ा तो कर्मचारी कोर्ट पहुंचे। उन्होंने कोर्ट से प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने का आग्रह किया। तर्क दिया गया कि प्रमोशन का फायदा सिर्फ एक बार मिलना चाहिए।

इस आधार पर मप्र हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया। सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष कोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया। तभी से प्रमोशन पर विभागों में मौखिक रोक लगी है।

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एकल पद भी हुए प्रभावित

अनारक्षित श्रेणी की ही तरह विभागों के सिंगल पद भी पदोन्नति से नहीं भरे गए।जबकि एकल पदों पर आरक्षण लागू ही नहीं है। ये पद विभागीय वरिष्ठता के आधार पर भरे जाते हैं।

प्रभावित  अधिकारी,कर्मचारियों ने समय-समय पर यह मांग उठाई भी लेकिन उन्हें अदालती आदेश का हवाला देकर चुप कर दिया गया। खास बात यह कि इस दरम्यान राज्य विधानसभा में भी यह मामला कई बार उठा,लेकिन सरकार के स्तर पर भी कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका।

अलबत्ता,राज्य विधानसभा के बीते बजट सत्र में गत 14 मार्च को मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने यह संकेत जरूर दिए कि हम किसी भी विभाग में पद खाली नहीं रहने देंगे। विपक्ष थोड़ी मदद करेगा तो हम प्रमोशन पर भी ठीक रास्ते पर जा रहे हैं।

हम-आप मिलकर सभी वर्गों के जो प्रमोशन अटके हैं, उनका भी समाधान खोज रहे हैं, ताकि नीचे के पद और रिक्त हो जाएं। उनको भी भरने का काम हमारी सरकार के माध्यम से किया जा सके।

विधि विभाग ने सालभर पहले ​निकाला रास्ता

मुख्यमंत्री डॉ यादव के उक्त वक्तव्य के बाद वित्त विभाग ने प्रमोश की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसके लिए विधि विभाग से अभिमत मांगा गया है। दरअसल, हाल ही में विधि विभाग ने भी सवा सौ से अधिक कर्मचारियों को विभागीय भर्ती नियम के अनुसार प्रमोशन दिया है।

 वहीं, गए साल 28 फरवरी को महाधिवक्ता कार्यालय में भी पदस्थ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी में पदोन्नत किया गया। बताया जाता है कि यह आदेश मुख्यमंत्री की लिखित सहमति के बाद ही जारी किया गया है।

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अदालत के ये आदेश भी नहीं बन सके नजीर

15 दिसंबर 2022 को हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने पशु चिकित्सकों की याचिका पर न्यायालय ने प्रमोशन के आदेश दिए। विभाग प्रमुखों की हठधर्मिता जानिए कि न्यायालय के आदेश का भी पशुपालन विभाग के प्रमख सचिव ने पालन नहीं किया।

अवमानना याचिका पर सुनवाई के बाद जब कोर्ट ने संबंधित अफसर के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए तब पशु चिकित्सकों की पदोन्नति हुई।

इसी तरह,21मार्च 2024 को नगरीय निकायों के सब इंजीनियर्स व 22 मार्च 2024 को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी रामबहादुर सिंह समेत अन्य को दो माह में पदोन्नत किए जाने के आदेश दिए,लेकिन ये फैसले भी अन्य विभागों के लिए नजीर नहीं बन सके। 

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1 लाख से ज्यादा,प्रमोशन बिना हुए रिटायर

मप्र में पिछले 9 साल में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो गए। इनमें कई बिना पदोन्नति पाए ही सेवानिवृत हो गए। इसके विपरीत  साल 2020 से 2024 तक सिर्फ 33 हजार पदों पर ही भर्तियां की गईं।

मप्र के आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग के नए प्रशासनिक प्रतिवेदन के मुताबिक अप्रैल 2020 से मार्च 2024 तक राज्य के कर्मचारियों की संख्या सिर्फ 5 प्रतिशत ही बढ़ी,जबकि सरकार ढाई लाख पदों पर भर्ती की बात कहती रही है।

आदेश नहीं, मार्गदर्शन हमेशा दिया

इस बारे में सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव अनिल सुचारी कहते हैं-यह सही है कि पदोन्न​ति पर रोक को लेकर विभाग की ओर से कोई आदेश जारी नहीं किया गया,लेकिन विभागों की ओर से जब-जब इस बारे में मार्गदर्शन मांगा,उन्हें विभाग के अभिमत से जरूर अवगत कराया गया।

वहीं पदोन्न​ति प्रक्रिया का काम देख रहे जीएडी के अवर सचिव अजय कटे​सरिया ने कहा- यह नीतिगत मामला है। इस बारे में वह स्पष्ट तौर पर कुछ भी नहीं कह सकते। 

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