भोपाल का 90 डिग्री ब्रिज विवाद, MANIT की जांच रिपोर्ट से ठेकेदार को राहत, PWD की ड्राइंग के आधार पर ही ठेकेदार ने बनाया ब्रिज

भोपाल का 90 डिग्री ब्रिज विवाद अब नए मोड़ पर है। मेनिट की रिपोर्ट को लेकर हाईकोर्ट में बुधवार, 10 सितंबर को सुनवाई हुई। मामले पर हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी भी की है।

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Neel Tiwari
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BHOPAL 90 DEGREE BRIDGE HIGH COURT
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मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के चर्चित 90 डिग्री ब्रिज विवाद का मामला अब एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। बुधवार (10 सितंबर) को जबलपुर हाईकोर्ट की डिवीजनल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की बेंच में मौलाना आजाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MANIT) भोपाल के सिविल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट प्रस्तुत की गई।

इस रिपोर्ट का लंबे समय से इंतजार किया जा रहा था, क्योंकि इसी से यह स्पष्ट होना था कि पुल के निर्माण में गलती के लिए असली जिम्मेदार ठेकेदार है या विभाग। रिपोर्ट पेश होते ही कोर्ट की कार्यवाही और भी दिलचस्प हो गई, क्योंकि इसमें ऐसे तथ्य सामने आए जिन्होंने पूरे मामले की दिशा ही बदल दी।

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मेनिट की जांच रिपोर्ट में सामने आया सच

मेनिट की टीम ने तकनीकी जांच करते हुए पाया कि विभाग के इंजीनियरों ने ठेकेदार पुनीत चड्ढा को जो जनरल अरेंजमेंट ड्राइंग (General Arrangement Drawing) प्रदान की थी, उसमें पुल का एंगल पहले से ही 119 डिग्री निर्धारित था। ठेकेदार ने उसी ड्राइंग को आधार मानकर निर्माण कार्य किया। जब बने हुए ब्रिज की माप-जोख की गई तो उसका एंगल 118° 40′11″ निकला, जो दिए गए नक्शे से लगभग मेल खाता है।

रिपोर्ट से यह साफ हो गया कि ठेकेदार ने कोई मनमानी नहीं की और उसने वही काम किया जो उसे विभाग से आधिकारिक तौर पर सौंपा गया था। इसका मतलब यह हुआ कि जिस 90 डिग्री ब्रिज के नाम पर विवाद खड़ा हुआ था, वह वास्तव में कभी 90 डिग्री का था ही नहीं, बल्कि तकनीकी रूप से यह 119 डिग्री का डिजाइन था।

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ठेकेदार की नहीं थी गलती, फिर भी मिली सजा– हाईकोर्ट

जब रिपोर्ट अदालत में पढ़ी गई, तो चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा ने इस पर बेहद कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने सरकारी वकील से सवाल किया कि जब ठेकेदार ने विभाग द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार ही काम किया और जांच रिपोर्ट भी उसकी पुष्टि कर रही है, तो उस पर कार्रवाई करने का क्या औचित्य था? चीफ जस्टिस ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा- अगर ठेकेदार ने विभाग के निर्देशों के अनुसार काम किया है तो उसे सजा नहीं, बल्कि मेडल मिलना चाहिए।

यह टिप्पणी केवल ठेकेदार के पक्ष में ही नहीं गई, बल्कि इसने विभागीय अधिकारियों की कार्यशैली और जिम्मेदारी पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

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शासन ने मांगा समय, अगली सुनवाई 23 सितंबर

जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद शासन की ओर से पेश हुए सरकारी वकील ने कोर्ट से अनुरोध किया कि उन्हें इस रिपोर्ट का अध्ययन करने और उस पर जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया जाए। अदालत ने यह मांग स्वीकार करते हुए मामले की अगली सुनवाई की तारीख 23 सितंबर तय कर दी। अब सरकार और विभाग को यह बताना होगा कि वे मेनिट की जांच रिपोर्ट को किस रूप में देखते हैं और क्या ठेकेदार की ब्लैकलिस्टिंग पर पुनर्विचार किया जाएगा।

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भोपाल ऐशबाग इलाके का पुल और विवाद

इस पूरे विवाद की शुरुआत भोपाल के ऐशबाग इलाके में बने उस पुल से हुई, जिसे जनता और मीडिया ने “90 डिग्री ब्रिज” का नाम दे दिया। पुल के डिजाइन में एक तीखा मोड़ आने से लोगों को लगा कि यह 90 डिग्री का है और सोशल मीडिया पर इसे लेकर जमकर चर्चा और आलोचना हुई। सुरक्षा को लेकर सवाल उठे और विपक्षी दलों ने भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया।

बढ़ते दबाव के बीच अधिकारियों पर कार्रवाई की गई और निर्माण करने वाली एजेंसी यानी ठेकेदार पुनीत चड्ढा की फर्म को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। उस समय यह माना गया कि पुल की खामी ठेकेदार की लापरवाही का नतीजा है। लेकिन अब, जब मेनिट की रिपोर्ट ने तकनीकी आधार पर यह साबित कर दिया कि ठेकेदार ने विभाग द्वारा स्वीकृत नक्शे के अनुसार ही काम किया, तो पूरी कहानी उलटती नजर आ रही है।

बता दें कि, 90 डिग्री ब्रिज घोटाला के तौर पर देखा जा रहा है| भोपाल का 90 डिग्री ब्रिज अभी भी सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है। 

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