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JABALPUR.मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी की जहरीली राख के पीथमपुर में दफनाने पर रोक लगा दी गई है। दरअसल गैस त्रासदी मामले में जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की खंडपीठ ने 8 अक्टूबर 2025 को आदेश दिया था। इसमें हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि अगली सुनवाई से पहले वैकल्पिक स्थलों की सूची पेश करें।
कोर्ट ने आदेश में कहा है कि मानव बस्तियों के समीप ऐसा कोई भी ‘टॉक्सिक वेस्ट कंटेनमेंट साइट’ स्थापित नहीं की जा सकती है। इससे किसी भी अप्रत्याशित घटना दोबारा हो सकती है।
नई जगह तय करें, विशेषज्ञों से मांगे मदद - HC
अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है। सरकार को अगली सुनवाई से पहले वैकल्पिक स्थलों की सूची पेश करनी है। तकनीकी मूल्यांकन रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी है। यह भी स्पष्ट करना है कि वैश्विक स्तर की एजेंसियों से टेंडर या परामर्श मांगा गया है या नहीं।
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एक और त्रासदी को निमंत्रण नहीं दे सकते
अदालत ने राज्य सरकार के तर्क को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने कहा था कि पीथमपुर में साइट आधुनिक सुरक्षा तकनीक से लैस है। कोर्ट ने कहा कि बारिश में सड़कें बह जाती हैं। पुल ढह जाते हैं। ऐसे में राज्य की इंजीनियरिंग क्षमता पर अंधविश्वास करना संकट को न्योता देना होगा।
जस्टिस श्रीधरन ने टिप्पणी की यूसीआईएल का कारखाना भी तब सुरक्षित था, जब तक आपदा नहीं आई। जब बीस हजार लोगों की जान एक रात में चली गई और लाखों आज भी उसकी सजा भुगत रहे हैं। अब बहुत अधिक सावधानी ही एकमात्र रास्ता है।
जहरीली राख में अब भी पारा, रिपोर्ट ने बताई सच्चाई
इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता ने अदालत में दायर रिपोर्ट में बताया गया कि भोपाल यूनियन कार्बाइड परिसर से निकली राख में आज भी मरकरी (पारा) की मात्रा अनुमेय सीमा से कई गुना अधिक है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 12 अगस्त 2025 की रिपोर्ट के अनुसार यह राख अभी भी उच्च स्तर की विषैली है। जो मिट्टी और भू-जल दोनों को प्रदूषित कर सकती है।
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1984 की राख आज भी जहर उगल रही है
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसायनेट गैस लीक हुई थी। इस हादसे में लगभग 20 हजार लोगों की जान गई। पांच लाख से अधिक लोग अभी भी बीमारियों से जूझ रहे हैं। हादसे के बाद बची रासायनिक अपशिष्ट और राख वर्षों से पड़ी है। इसके निपटान को लेकर 2004 से हाईकोर्ट में याचिका लंबित है।
हाईकोर्ट का यह निर्णय पर्यावरणीय सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। यह शासन-प्रशासन को सख्त संदेश देता है कि जनजीवन से समझौता नहीं किया जा सकता। अब प्रदेश की निगाहें सरकार की रिपोर्ट पर हैं। सरकार को यह बताना होगा कि ज़हरीली राख कहां जाएगी।