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टैक्सी ड्राइवरों की सेहत जांच मिशनभोपाल ट्रैफिक पुलिस ने 219 ड्राइवरों की आंखों और 180 की दांतों की जांच की। 10 ड्राइवरों में मुंह के कैंसर के शुरुआती लक्षण (ग्रेड-2) मिले। करीब 23% ड्राइवरों की आंखों की रोशनी कमजोर पाई गई। हर चौथा ड्राइवर किसी न किसी विजन समस्या से जूझ रहा है। हादसे रोकने के लिए पुलिस अब इन ड्राइवरों का इलाज भी करा रही है। | |
सड़क सुरक्षा का नया संकट
भोपाल और इंदौर के बीच का सफर प्रदेश के सबसे तेज चलने वाले रास्तों में से एक है। यहां हर घंटे हजारों गाड़ियां गुजरती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जो ड्राइवर आपकी बस या टैक्सी चला रहा है, वह खुद कितना स्वस्थ है?
हाल ही में भोपाल ट्रैफिक पुलिस ने एक ऐसी मुहिम चलाई जिसकी रिपोर्ट ने सबको चौंका दिया है। पुलिस ने जब ड्राइवरों का हेल्थ चेकअप कराया, तो जो नतीजे आए वे डराने वाले हैं।
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आंखों की रोशनी पर ट्रैफिक पुलिस की जांच रिपोर्ट
सड़क पर गाड़ी चलाते समय सबसे जरूरी होती है तेज नजर। वहीं इस जांच में शामिल 219 ड्राइवरों की स्क्रीनिंग की गई। रिपोर्ट बताती है कि हर चौथे ड्राइवर की आंखों में कोई न कोई समस्या है। करीब 23 फीसदी ड्राइवरों को चश्मे या दवा की तुरंत जरूरत पाई गई।
हैरानी की बात यह है कि 15 ड्राइवरों में मोतियाबिंद (Cataract) के लक्षण मिले हैं। आप खुद सोचिए, यदि तेज रफ्तार बस चलाने वाले ड्राइवर को धुंधला दिखाई दे, तो यात्रियों की जान कितनी जोखिम में होगी। पुलिस ने इनमें से 25 ड्राइवरों को चश्मा और 50 को आई ड्रॉप्स दिए हैं।
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10 ड्राइवरों में कैंसर के लक्षण
आंखों से भी ज्यादा डरावनी स्थिति ड्राइवरों के दांतों और मुंह की सेहत को लेकर सामने आई है। करीब 180 ड्राइवरों की डेंटल जांच की गई। इसमें से 10 ड्राइवरों में ग्रेड-2 यानी पहले स्टेज के मुंह के कैंसर के लक्षण मिले हैं। लंबे समय तक गाड़ी चलाने के दौरान थकान मिटाने के लिए ड्राइवर अक्सर गुटखा और तंबाकू का सहारा लेते हैं, जो अब उनकी जान पर बन आया है।
ड्राइविंग पर असर
विशेषज्ञों का कहना है कि दांतों का दर्द ड्राइवर का ध्यान भटका सकता है। जांच में पाया गया कि:
78 फीसदी ड्राइवरों को दांतों के इलाज की सख्त जरूरत है।
30 ड्राइवरों को स्केलिंग और 25 को रूट कैनाल (RCT) की सलाह दी गई।
हर 4 में से 1 ड्राइवर के दांत इतने खराब हैं कि उन्हें निकलवाना पड़ेगा।
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भोपाल पुलिस की सराहनीय पहल
ट्रैफिक एसीपी विजय दुबे ने बताया कि यह जांच सिर्फ आंकड़े जुटाने के लिए नहीं है। पुलिस इन ड्राइवरों का इलाज भी करवा रही है। अक्सर ड्राइवर अपनी सेहत को नजरअंदाज करते हैं क्योंकि उनके पास समय की कमी होती है।
शनिवार को भी यह कैंप जारी रहेगा ताकि ज्यादा से ज्यादा ड्राइवरों की जांच हो सके। सड़क सुरक्षा का मतलब सिर्फ चालान काटना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि ड्राइवर शारीरिक रूप से फिट हो।
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ड्राइवरों का फिट होना जरूरी
भोपाल-इंदौर रूट पर हर घंटे 5 से 6 हजार वाहन निकलते हैं। ऐसे में एक भी बीमार ड्राइवर सैकड़ों लोगों की जान खतरे में डाल सकता है। आंखों की कमजोरी या शरीर का दर्द ड्राइवर की फुर्ती को कम कर देता है।
समय रहते इन बीमारियों का पता न चले, तो यह बड़े हादसों का कारण बनती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कैंप हर बड़े रूट पर नियमित रूप से लगने चाहिए।
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