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भोपाल, जिसे झीलों के शहर के रूप में जाना जाता है, अपने ऐतिहासिक बड़े तालाब के कारण प्रसिद्ध है। एक समय यह तालाब प्रदेश का पहला वेटलैंड और रामसर साइट बना, जिससे अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली। परंतु, सही संरक्षण न होने और बढ़ते अतिक्रमण के कारण यह शहर यूनेस्को की इंटरनेशनल वेटलैंड सिटी सूची से बाहर हो गया।
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अतिक्रमण और संरक्षण में कमी
बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में 1300 अवैध अतिक्रमण चिन्हित किए गए हैं। इनमें से मात्र 980 को नोटिस जारी किए गए, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी।
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सीवेज की समस्या
शहर में 1000 करोड़ रुपए खर्च करके सीवेज नेटवर्क विकसित किया गया, फिर भी तालाब में सीवेज का प्रवाह जारी है। घरेलू कनेक्शन न होने और एसटीपी (Sewage Treatment Plant) की क्षमता कम होने से यह समस्या बनी हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि खराब प्रबंधन और नगर निगम की लापरवाही के चलते यह योजना अब तक विफल रही है। आज भी 362 नालों का गंदा पानी झीलों में सीधे छोड़ा जा रहा है, जिससे झीलों की स्वच्छता और जल गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।
संरक्षण योजनाओं का अभाव
भोपाल के भोज वेटलैंड प्रोजेक्ट में तालाब संरक्षण के कई प्लान तैयार हुए। इनमें अतिक्रमण हटाने, सीवेज रोकने, कैचमेंट क्षेत्र का संरक्षण और पेस्टीसाइड का नियंत्रण जैसे कदम शामिल थे। मगर अमल में कमी के कारण इन योजनाओं का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला।
मजबूत बायो डायवर्सिटी फिर भी…
बड़े तालाब में 223 प्रकार के जलीय पौधे मौजूद हैं। इनमें से 103 को IUCN (International Union for Conservation of Nature) ने दुर्लभ श्रेणी में रखा है। इसे बायो डायवर्सिटी हेरिटेज साइट का दर्जा भी नहीं मिल सका।
तालाबों की स्थिति
भोपाल में कुल 14 प्रमुख तालाब हैं, लेकिन सभी अस्तित्व के संकट से जूझ रहे हैं। यदि इन तालाबों पर सही समय पर ध्यान दिया जाता, तो शहर को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिल सकती थी।
अंतर्राष्ट्रीय वेटलैंड सिटी का फायदा
यदि भोपाल को वेटलैंड सिटी का दर्जा मिलता, तो शहर को विश्वस्तर पर नई पहचान मिलती। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन बढ़ता और सकारात्मक ब्रांडिंग होती। वर्तमान में भोपाल गैस त्रासदी के कारण पहचाना जाता है।
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