नगर निगम में 28 करोड़ का बिल घोटाला, महापौर को आशंका अधिकारियों की मिलीभगत, सीधे पीएस को पत्र लिखा, निगमायुक्त बोले जांच करा रहे

इंदौर नगर निगम में लंबे समय से लीगेसी फंड से भुगतान की व्यवस्था है। 2018 से 2022 के बीच हुए कामों के लंबित भुगतान इसी फंड से किए गए हैं। करीब तीन महीने पहले तत्कालीन निगमायुक्त के सामने इस पर आपत्ति ली थी। 

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Sandeep Kumar
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संजय गुप्ता @ INDORE.  इंदौर नगर निगम ( Municipal council ) में 28 करोड़ का बिल घोटाला ( scam ) हो गया है, वह भी सभी अधिकारियों की नाक के नीचे। घोटाला सामने आने के बाद कहा जा रहा है कि इसमें अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। लेकिन महापौर को इसमें अधिकारियों की मिलीभगत नजर आ रही है। उन्होंने सीधे प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन को पत्र लिख दिया है। उधर निगमायुक्त शिवम वर्मा इसमें जांच कर कार्रवाई की बात कर रहे हैं। फिलहाल फौरी तौर पर बिल भुगतान की फाइल लगाने वाली 5 फर्म के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। 

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इन फर्म पर हुए एफआईआर

1. नींव कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद साजिद

 2. ग्रीन कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मोहम्मद सिदिकी

 3. किंग कंस्ट्रक्शन प्रोप्रा. मो. जाकिर, 147 मदीना नगर

 4. क्षितिज इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. रेणु वडेरा, आशीष नगर

5. जाह्नवी इंटरप्राइजेस प्रोप्रा. राहुल वडेरा निवासी 12 आशीष नगर

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यह है फर्जीवाड़ा

इन फर्म के पांचों ठेकेदारों ने 20 ड्रेनेज कार्यों के फर्जी दस्तावेज तैयार किए जो सीधे ऑडिट विभाग के पास पहुंचे। वहां से पास भी हो गए जबकि पांचों फर्म को वर्क ऑर्डर ही जारी नहीं हुए। इनसे जुड़े आवक और जावक क्रमांक भी फर्जी थे। जिन कार्यों के बिल प्रस्तुत हुए, उनका ठेका अन्य ठेकेदारों को मिला था। अनुबंध भी अन्य फर्मों के साथ हुए थे। 

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इस तरह सामने आया

निगम में लंबे समय से लीगेसी फंड से भुगतान की व्यवस्था है। 2018 से 2022 के बीच हुए कामों के लंबित भुगतान इसी फंड से किए गए हैं। करीब तीन महीने पहले तत्कालीन निगमायुक्त हर्षिका सिंह के सामने जब करोड़ों रुपए के भुगतान की फाइलें पहुंचीं तो उन्होंने भी इस पर आपत्ति ली थी। जनसुनवाई में भी कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि कुछ ठेकेदारों ने काम नहीं किया फिर भी उन्हें भुगतान किया जा रहा है। उनसे नाम मांगे तो इन पांचों फर्म के नाम सामने आए। जांच शुरू हुई तो ड्रेनेज विभाग के कार्यपालन यंत्री की गाड़ी से फाइलें तक चोरी हो गई। ड्रेनेज विभाग और लेखा शाखा से बिलों का सत्यापन करवाया गया। मेजरमेंट बुक में ईई के साइन थे जबकि इसमें उनके साइन नहीं होते हैं। नोटशीट तक नहीं मिली।

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घोटाला 50 करोड़ के पार होने की आशंका

यह बिला घोटाला और अधिका होने का अफसरों को भी शक है। पांच साल पुरानी ड्रेनेज लाइन डालने के 20 कामों के लिए 28 करोड़ रु. के बिल लेखा शाखा तक पहुंचे थे। अभी 28 करोड़ के भुगतान को रोकने की बात आ रही है, लेकिन माना जा रहा है कि फर्जीवाड़ा 40 से 50 करोड़ तक हो सकता है। पुराने भुगतान की जांच की जाए तो बड़ी गड़बड़ी सामने आ सकती है।  आशंका है ठेकेदारों की गैंग ऐसे कई मामलों में भुगतान करवा चुकी हो। जमीन के अंदर हुए ऐसे कामों के लिए करोड़ों रुपए का भुगतान किया जा रहा था, जिनका वेरिफिकेशन आसान नहीं है। इस गैंग ने अफसरों के फर्जी दस्तखत ही नहीं किए, उनकी कार से फाइलें तक गायब करवाई हैं। यहां तक कि विभागीय आईडी और पासवर्ड का भी इस्तेमाल किया गया। 

आईडी और पासवर्ड कैसे इस्तेमाल हो गए?

यह भुगतान संबंधी सभी फाइलें सीधे लेखा शाखा तक पहुंची, जबकि भुगतान के लिए कोई भी बिल विभाग की ओर से भेजे जाते हैं। यह भी स्पष्ट नहीं हो सका कि ई-नगर पालिका पर आईडी और पासवर्ड का इस्तेमाल कर बिलों की जानकारी किसने अपलोड की? यह बिल अधिक राशि के थे, इसलिए गड़बड़ सामने आ गई। कार्यपालन यंत्री ने भी सुनील गुप्ता ने एफआईआर के आवेदन में लिखा है कि मैं जेल पेन का इस्तेमाल करता हूं, बॉल पेन का नहीं।

महापौर ने पीएस को यह पत्र लिखा

महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने उच्च स्तरीय समिति से प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने के लिए पीएस नीरज मंडलोई को पत्र लिखा है। महापौर ने कहा कि- ड्रेनेज शाखा के अन्तर्गत वर्ष 2018 के कुछ कार्यो को लेकर कथित ठेकेदारो के द्वारा विभाग में बिल प्रस्तुत कर भुगतान राशि को हड़पने संबंधी जानकारी और विभाग द्वारा इस संबंध में पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। चूंकि लेखा शाखा तक बिलो को पहुंचाने का कार्य संबंधित विभाग की जिम्मेदारी होती है। यदि इसका पालन नही हुआ है, और लेखा शाखा द्वारा देयक प्राप्त किए है तो कहीं ना कहीं इसमें निकाय के संबंधित विभागो की संलिप्तता प्रतित होती है। इस संबंध में मेरे द्वारा उच्च स्तरीय समिति से प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराने हेतु पत्र लिखा गया है और पूरे प्रकरण में जिस भी जिम्मेदार की भुमिका निकलकर आयेगी उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। 

निगमायुक्त शिवम वर्मा यह बोल रहे

निगमायुक्त शिवम वर्मा ने कहा कि- हम विभागीय जांच भी करवा रहे हैं। इन फर्मों को कितने काम दिए गए हैं, उनका रिकॉर्ड भी मंगवाया है। अधिकारियों की संपलिप्ता की भी जांच करवा रहे हैं। विभाग से कोई मिला है तो जल्द पता लग जाएगा।  आईडी-पासवर्ड का इस्तेमाल हुआ है। पर कर्मचारियों का कहना है कि उनके सिस्टम से यह काम नहीं हुआ है। जांच के बाद स्थिति स्पष्ट होगी।

पीएम आवास योजना में भी घोटाला सामने आ चुका

इंदौर नगर निगम में लगातार घोटाले सामने आ रहे हैं। कुछ महीने पहले ही पीएम आवास योजना में भी घोटाला सामने आ चुका है। जिसमें राशि लेकर हितग्राहियों को फ्लैट देने की बात सामने आई थी। जिस कंपनी के पास काम नहीं था वह भी इसे लगातार कर रही थी। इसमें भी निगम ने केस दर्ज कराया था। यह भी एक शिकायत के जरिए सामने आया था।





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