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Photograph: (the sootr)
BHOPAL.मध्यप्रदेश BJP में आदिवासी नेतृत्व की अंदरूनी लड़ाई अब खुली सियासी जंग बन चुकी है। एक तरफ दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री सीताराम आदिवासी, दूसरी ओर पूर्व मंत्री रामनिवास रावत।
विडंबना यह है कि सत्ता में होते हुए भी सीताराम खुद को हाशिए पर बता रहे हैं। राज्यमंत्री का विस्फोट: द सूत्र से बोले“सरकार में हूं, फिर भी कोई नहीं सुनता”सीताराम आदिवासी का दर्द अब सार्वजनिक मंच पर छलक पड़ा है।उनका आरोप है कि सरकार में रहते हुए भी न उन्हें सम्मान मिल रहा है और न अधिकार। उन्होंने साफ कहा कि मुख्यमंत्री तक उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा।
मीटिंग, बजट और फैसले-हर मोर्चे पर उपेक्षा का आरोप
सीताराम का कहना है कि उन्हें न तो अहम बैठकों में बुलाया जाता है और न योजनाओं के लिए बजट मिलता है। राज्यमंत्री होते हुए भी वे सिर्फ नाम के मंत्री बनकर रह गए हैं। काम ठप हैं और सिस्टम पूरी तरह उदासीन है।
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बिना पद रामनिवास को VIP ट्रीटमेंट
सीताराम का सीधा आरोप पूर्व मंत्री रामनिवास रावत पर है। उनका कहना है कि रावत के पास कोई संवैधानिक पद नहीं है, फिर भी प्रशासन उन्हीं के इशारे पर चलता है। कलेक्टर से लेकर प्रभारी मंत्री तक रावत को प्राथमिकता दे रहे हैं।
श्योपुर से विजयपुर तक एक ही नाम
सीताराम का दावा है कि पूरे इलाके में सिर्फ रामनिवास रावत की ही चल रही है। सरकारी फैसले हों या स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली, हर जगह वही हावी हैं। यह हालात पार्टी के अंदर असंतोष और अविश्वास को जन्म दे रहे हैं।
बैठक में न्योता तक नहीं, सम्मान की उम्मीद बेमानी
राज्यमंत्री ने बताया कि हाल की जिला स्तरीय बैठक में उन्हें बुलाया तक नहीं गया। पिछली बैठक में जब वे खुद पहुंचे, तो वहां भी उनका कोई सम्मान नहीं हुआ। एक मौजूदा मंत्री के साथ ऐसा व्यवहार गंभीर सवाल खड़े करता है।
राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि यह लड़ाई सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है। सीताराम और रामनिवास-दोनों को अलग-अलग बड़े नेताओं का संरक्षण प्राप्त है। इसी शक्ति संतुलन ने विवाद को और गहरा कर दिया है।
लोकसभा जीत पर भी घमासान: श्रेय किसका?
सीताराम ने लोकसभा चुनाव को लेकर भी बड़ा दावा किया है। उनका कहना है कि भाजपा सांसद की जीत आदिवासी समाज के सामूहिक वोट से हुई। इसके बावजूद पूरा श्रेय रामनिवास रावत को दिया जा रहा है।
सीताराम का कहना है कि विजयपुर, जौरा और बमोरी जैसी सीटें आदिवासी वोट तय करते हैं। जब उन्हें टिकट नहीं दिया गया, तो आदिवासी समाज नाराज़ हो गया। नतीजा यह हुआ कि भाजपा को कई सीटों पर। नुकसान उठाना पड़ा।
जमीन विवाद का आरोप:आदिवासियों पर बढ़ता दबाव
सीताराम ने रामनिवास रावत पर जमीन से जुड़े गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि। रावत जनता के काम छोड़कर जमीन के मामलों में उलझे रहते हैं। इससे आदिवासियों की जमीनों पर दबाव बढ़ रहा है।
सबसे गंभीर आरोप सहरिया विकास प्राधिकरण को लेकर है। सीताराम का कहना है कि उनके प्राधिकरण को न बजट मिल रहा है और न मंजूरी। वहीं, रामनिवास रावत से जुड़े प्रस्ताव फौरन पास हो जाते हैं।
मुख्यमंत्री से शिकायत, जवाब ने बढ़ाई टीस
सीताराम ने बताया कि जब उन्होंने मुख्यमंत्री से अपनी पीड़ा साझा की, तो जवाब मिला—“उपचुनाव मैंने हराया है।” उनका सवाल है कि जब मुख्यमंत्री खुद कई बार क्षेत्र में गए, तो दोष सिर्फ उनका क्यों?
रामनिवास रावत का पलटवार नहीं,जवाब से परहेज
जब इन आरोपों पर पूर्व मंत्री रामनिवास रावत से द सूत्र ने सवाल किया, तो वे स्पष्ट जवाब देने से बचते नजर आए। उन्होंने कहा कि यह सब सीताराम की सोच है और आरोप कभी सही होते हैं क्या।
आदिवासी सम्मान बनाम संगठन की साख
सीताराम आदिवासी ने चेतावनी दी है कि यह सिर्फ उनका अपमान नहीं है। यह पूरे आदिवासी समाज की अनदेखी है। अगर यही रवैया जारी रहा, तो पार्टी को राजनीतिक नुकसान तय है।
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अंदर की आग, बाहर असर तय
BJP के भीतर आदिवासी नेतृत्व की यह जंग अब नजरअंदाज नहीं की जा सकती। एक तरफ पदधारी मंत्री हाशिए पर है, दूसरी तरफ बिना पद नेता ताकतवर। अगर संतुलन नहीं बना, तो यह विवाद संगठन और सरकार—दोनों को झटका दे सकता है।
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