MP में शिक्षक भर्ती... ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं ! जिम्मेदार कौन ?

एमपी बोर्ड के नतीजों ने प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की पोल खोलकर रख दी है। शिक्षकों की कमी के कारण पढ़ाई पर भारी असर पड़ा है। परिणाम यह है कि लाखों बच्चे फेल हो गए। प्रदेश के लचर शिक्षा व्यवस्था को लेकर पढ़िए पढ़िए द सूत्र की खास रिपोर्ट 

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Vikram Jain
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संजय शर्मा, BHOPAL. देश में नई शिक्षा नीति (new education policy) के बारे में भले ही बढ़-चढ़कर बातें हो रही हैं। लेकिन सरकारी स्कूलों में कोई खास बदलाव नजर नहीं दिख रहा है। कम से कम मध्यप्रदेश में तो कोई असर नहीं दिख रहा है। हाल ही में एमपी बोर्ड हायर सेकंडरी एग्जाम (MP Board Higher Secondary Examination) के नतीजों ने भी प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की पोल खोलकर रख दी है। 

मध्यप्रदेश में हजारों शिक्षकों का टोटा

बड़ा सवाल ये है कि ये हालात सुधरें भी तो कैसे? क्योंकि केवल इमारतें बना देने भर से पढ़ाई का स्तर बदल नहीं जाएगा। अच्छी शिक्षा के लिए योग्य और पर्याप्त शिक्षक भी चाहिए। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी का रोना नया नहीं है। दो दशक से ज्यादा समय से शिक्षकों की कमी (shortage of teachers) बनी हुई है। लेकिन पद भरने को लेकर सरकार के स्तर पर कोई ठोस इंतजाम नजर नहीं आते। 

एमपी बोर्ड की परीक्षा में 35 फीसदी छात्र फेल

एमपी बोर्ड रिजल्ट 2024 (mp board result 2024) में 35 फीसदी से ज्यादा यानी 2 लाख 19 हजार बच्चे फेल हुए हैं। बड़वानी के पानसेमल का एक स्कूल ऐसा है जहां सभी बच्चे फेल हो गए। ये इकलौता स्कूल नहीं है, बल्कि प्रदेश के ऐसे दर्जनों स्कूल हैं। जहां के रिजल्ट 20 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाए। प्रदेश में फिलहाल शिक्षकों के कितने पद खाली हैं। सरकार कितने पदों पर भर्ती कर रही है। 

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शिक्षकों की कमी से शिक्षा व्यवस्था के हाल बेहाल

01 दिसंबर 2022 को जारी मध्यप्रदेश सरकार राजपत्र के मुताबिक प्रदेश के हाईस्कूलों में प्राचार्य और उप-प्राचार्य के 1114, उच्च माध्यमिक शिक्षकों के 34789, मिडिल स्कूल के प्राधानाध्यापक के 250, माध्यमिक शिक्षकों के 60686, माध्यमिक शिक्षक खेल के 931 और माध्यमिक शिक्षक संगीत के 700 पद खाली हैं... यानी राजपत्र कहता है कि प्रदेश में कुल मिलाकर 98470 पद खाली पड़े हैं। अब इनमें से प्राचार्य, उप प्राचार्य और प्राधानाध्यापकों के कुछ पद समय-समय पर भरे जाते रहे हैं लेकिन चिंता की बात ये है कि बच्चों को क्लासरूम में पढ़ाने वाले उच्च माध्यमिक शिक्षकों के 34789 और माध्यमिक शिक्षकों के 60686 पद खाली हैं। यानी सिर्फ इन्हीं दोनों कैटेगरी के कुल 95475 पद खाली हैं। इनमें से उच्च माध्यमिक शिक्षकों के 34789 पदों में से सरकार सिर्फ 8720 पदों पर भर्ती कर रही है। इनमें भी नए पद सिर्फ 5052 हैं। और इनमें भी 45 फीसदी पद बैकलॉग के हैं। इन पदों को भरने के लिए सरकार ने 2023 में वर्ग-1 की चयन और पात्रता परीक्षा ली थी। 

भर्ती न होने से गड़बड़ा रहा एजुकेशन सिस्टम

हैरानी की बात ये है कि इससे पहले प्रदेश में शिक्षक भर्ती परीक्षा साल 2018 में हुई थी तब 22 हजार नए पद थे, लेकिन इस बार नए पद सिर्फ 5052 हैं। दूसरी तरफ जितने पदों पर भर्तियों के लिए सरकार ने परीक्षा ली थी उन पर भी भर्तियां नहीं दी जा रही हैं। सरकार की ओर से कभी ओबीसी आरक्षण का हवाला दिया जाता है तो कभी सुप्रीम कोर्ट में केस पेंडिंग होने की बात कही जाती है। इधर, वर्ग-1 की उच्च माध्यमिक शिक्षक परीक्षा के चयनित उम्मीदवार लंबे समय से नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। चयनित उम्मीदवार नियुक्तियों और पदवृद्धि की मांग लेकर प्रदर्शन और आंदोलन भी कर रहे हैं। सरकार के उदासीन रवैये की वजह से अब उनकी नाराजगी और गुस्सा बढ़ता जा रहा है। 

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2022 से 2025 तक वित्त विभाग की ओर से स्वीकृत पद 

वित्त विभाग के आंकड़‍े कहते हैं कि 2022-23 सत्र में 23127, 2023-24 सत्र में 6144, 2024-25 सत्र में 942 पदों को स्वीकृति दी गई है। यानी 2022 से 2025 तक के लिए वित्त विभाग ने कुल 30213 पदों को भरने की स्वीकृति दी है। सरकारी दस्तावेज में ये भी कहा गया है कि वर्तमान में कई विषयों में पात्रताधारी अभ्यर्थी उपलब्ध न होने की वजह से सीमित संख्या में ही भर्ती की जाएगी। इसलिए 2022-23 में 15 हजार 252, 2023-24 में 13 हजार 963 और 2024-25 में 942 पदों पर भर्तियां की जाएंगी। 

शिक्षक भर्ती ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं

मौजूदा हालत देखें तो चाहे सरकार के राजपत्र के मुताबिक खाली पद हों या फिर वित्त विभाग की ओर से स्वीकृत पद हों। दोनों के आंकड़े सिर्फ कागजी जमाखर्च ही बनकर रह गए हैं क्योंकि सरकार फिलहाल उच्च माध्यमिक शिक्षकों के सिर्फ 8720 पदों पर भर्ती कर रही है। जाहिर है कि जितने पदों पर भर्तियां की जा रही हैं वो खाली पड़े पदों के मुकाबले ऊंट के मुंह में जीरे के समान भी नहीं है। यही वजह है कि प्रदेश के चयनित शिक्षक लगातार नियुक्ति देने और पद बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार और सरकारी सिस्टम फिलहाल लोकसभा चुनाव को अंजाम देने में जुटा हुआ है। 

फेल हुए सवा 2 लाख छात्र, जिम्मेदार कौन ?

हाल ही में 24 अप्रैल को एमपी बोर्ड ने हायर सेकंडरी परीक्षा के नतीजे जारी किए हैं। 12वीं की परीक्षा में 6 लाख 27 हजार 126 स्टूडेंट्स शामिल हुए थे, जिनमें 3 लाख 14 हजार 167 छात्र और 3 लाख 12 हजार 959 छात्राएं थीं। रिजल्ट बताता है कि परीक्षा में बैठने वाले 35.41 फीसदी यानी 2 लाख 19 हजार स्टूडेंट्स फेल हुए हैं। इनमें भी 70 फीसदी संख्या साइंस स्ट्रीम यानी मैथमेटिक्स और बायोलॉजी की है। ऐसा नहीं है कि परीक्षा के नतीजे पहली बार खराब आए हों। प्रदेश के सरकारी हायर सेकंडरी स्कूलों में हर बार रिजल्ट के हाल कुछ ऐसे ही रहते हैं। रिजल्ट आने के बाद कुछ दिन तक सरकारी सिस्टम विचार-मंथन करता है और फिर वही पुराना ढर्रा लौट आता है। यानी भविष्य में रिजल्ट सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते। 

स्कूलों में करीब 35 हजार शिक्षकों के पद खाली

स्कूलों के खराब रिजल्ट के पीछे सबसे बड़ी वजह है शिक्षकों की कमी। प्रदेश में करीब 6 हजार सरकारी स्कूल ऐसे हैं जिनमें सब्जेक्ट टीचर ही नहीं हैं... कहीं-कहीं महज एक या दो टीचर्स से ही काम चलाया जा रहा है... हर साल सरकारी स्कूलों में 6 से 7 लाख स्टूडेंट्स एडमिशन लेते हैं लेकिन गणित, विज्ञान और कॉमर्स पढ़ाने वाले टीचर्स की कीम के कारण हर साल रिजल्ट खराब ही आता है। सरकारी आंकड़े देखें तो प्रदेश में 4765 सरकारी हायर सेकंडरी और 3851 हाई स्कूल हैं, जिनमें करीब 35 हजार पद खाली हैं। इनमें से 17 हजार पदों पर पुराने शिक्षकों को प्रभार सौंपा गया है, जबकि बाकी पद अभी भी खाली पड़े हैं। शिक्षा विभाग ने अगस्त 2023 में 8720 पदों पर भर्ती का नोटिफिकेशन जारी किया था। 

अब तक नहीं भरे जा सके खाली पद

उच्च माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती के लिए दो परीक्षाएं ली गईं लेकिन प्रक्रिया के दौरान इनमें बैकलॉग के भी 3 हजार पद जोड़ दिए गए। इसके बावजूद बीते सात महीने से ज्यादा वक्त से प्रक्रिया पूरी ही नहीं हो पाई है यानी खाली पद अब तक नहीं भरे जा सके हैं। यानी ऐसा नहीं है कि प्रदेश में योग्य शिक्षकों की कमी है। बस सरकार नियुक्ति नहीं दे रही है। अब आप ही बताइए कि ऐसे में कैसे सुधरेंगे शिक्षा के हालात और कैसे कम होगी बेरोजगारी। क्योंकि करीब 70-80 फीसदी अंकों के साथ दो-दो परीक्षाएं पास करने के बावजूद नियुक्ति न मिलने से हजारों चयनित अभ्यर्थी फिलहाल खुद को बेरोजगार ही मान रहे हैं। और प्रदेश के सरकारी स्कूल राम भरोसे चल रहे हैं।

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