पंच-सरपंचों की जगह सिर्फ 3 जिलों में अपात्रों पर खर्च कर डाला पूरा बजट

मध्य प्रदेश में सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को पलीता लगाने का काम अब विभागीय मुख्यालय स्तर पर किया जाने लगा। यह भी पूरी सांठगांठ से व संगठित​ गिरोह की तरह।

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Ravi Awasthi
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Photograph: (the sootr)

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भोपाल. सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार नई बात नहीं है, लेकिन यह काम संगठित गिरोह के तौर पर किया जाने लगा है। पेसा एक्ट के तहत मप्र के आदिवासी पंचायत जनप्रतिनिधियों की ट्रेनिंग के लिए मिले साढ़े आठ करोड़ रुपए की बंदरबांट इसका बड़ा उदाहरण है।

जिसे आदिम जाति कल्याण व पंचायत विभाग ने मिलकर अंजाम दिया। खास बात यह कि इस मामले में दो साल पहले जांच के आदेश हुए, लेकिन जांच आज तक नहीं हुई।

विभागीय सूत्रों के मुताबिक,केंद्र सरकार के जनजातीय मामले के मंत्रालय ने साल 2020 में मप्र को 8.42 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। इस राशि से प्रदेश के सभी जिलों में पंचायतराज प्रतिनिधियों को उनके अधिकारों व कर्तव्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाना था। यानी रकम आदिम जाति विभाग के खाते में आई और खर्च पंचायतों पर​ होनी था।    

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रकम खपाने निकाला बीच का रास्ता

जिस वक्त यह रकम मिली तब प्रदेश में अधिकांश पंचायतें कार्यकाल पूरा होने व नए चुनाव नहीं होने से पंच-सरपंच विहीन थीं। ऐसे में बीच का रास्ता निकालते हुए जबलपुर के पंचायतराज प्रशिक्षण संस्थान से एक प्रस्ताव बुलाया गया। 

इसमें कहा गया कि पंचायत प्रतिनिधि उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में यह प्रशिक्षण प्रदेश में कार्यरत स्व सहायता समूहों को दे दिया जाए। आदिम जाति विभाग ने भी संस्थान की बात मान ली और आनन-फानन में संस्थान के सिवनी को 443 लाख व इंदौर केंद्र को 400 लाख रुपए आवंटित कर दिए गए।

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52 जिलों का पैसा दो जिलों में बंट गया

विभाग ने दावा किया कि आवंटित राशि से इंदौर परिक्षेत्र के धार व बड़वानी की 17हजार 6सौ समूह सदस्यों को व सिवनी में ऐसे ही 17हजार 540 सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया। क्या ट्रेनिंग दी गई, समूहों को क्यूं दी, इसका फायदा पंचायतों को कैसे होगा, इन सब बातों के उत्तर सरकार के पास नहीं हैं।

मंत्री ने भी नहीं जताई आपत्ति

इस प्रकरण में सबसे चौंकाने वाली बात यह कि तत्कालीन मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया नें भी इस बंदरबांट पर कोई आपत्ति नहीं की,बल्कि प्रस्ताव का अनुमोदन कर इसे हरी झंडी दे दी। विभागीय मंत्री से अनुमति मिलते ही विभागीय अफसर पूरी तरह आश्वस्त हो गए। इस तरह,पूरे प्रदेश के लिए मिली रकम सिर्फ तीन जिलों में खर्च कर दी गई और ट्रेनिंग भी अपात्रों को देना बता दिया गया। 

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जांच कमेटी बनी,पर जांच नहीं

प्रकरण में शिकवे-​शिकायत हुई तो पंचायत संचालनालय के तत्कालीन संचालक अमरपाल सिंह ने अपने मार्गदर्शन में दो सदस्यीय जांच समिति गठित कर दी। इसमें विभाग के अपर संचालक प्रद्युम्न शर्मा व उप संचालक दिनेश गुप्ता को शामिल किया गया। सूत्र बताते हैं कि प्रकरण में सिर्फ जांच कमेटी बनी,लेकिन जांच कभी नहीं हुई। 

विभाग के मौजूदा संचालक छोटे सिंह भी इस बात को स्वीकारते हैं,लेकिन वह इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि लोकायुक्त संगठन अब इस मामले की जांच कर रहा है। उन्होंने कहा-लोकायुक्त पुलिस ने जो जानकारी मांगी,वह उन्हें उपलब्ध कराई गई। अब वही कुछ तय करेगा। 

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लोकायुक्त तक पहुंचा मामला

सूत्रों के अनुसार,विभाग व सरकार का ढिलमुल रवैया देख प्रकरण में रुचि रखने वालों ने लोकायुक्त संगठन को इसकी शिकायत की। संगठन ने इस पर संज्ञान लिया और वह नतीजे के करीब है।  

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