बिल्डर अशोक एरन, पीडी अग्रवाल, पराग देसाई के 100 करोड़ उलझे, सुप्रीम कोर्ट का स्टे

ईश्वर एलॉय की जमीन नीलामी में खरीदकर बिना इंडस्ट्री लगाए ही प्लाटिंग कर बेचने की तैयारी कर रहे बिल्डर अशोक एरन, पराग देसाई और पीडी अग्रवाल के सौ करोड़ के संयुक्त प्रोजेक्ट का खुलासा 'द सूत्र' ने किया था। 

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Sanjay gupta
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Indore. 'द सूत्र' का एक बड़ा इम्पैक्ट हुआ है। ईश्वर एलॉय की जमीन नीलामी में खरीदकर बिना इंडस्ट्री लगाए ही प्लाटिंग कर बेचने की तैयारी कर रहे बिल्डर अशोक एरन, पराग देसाई और पीडी अग्रवाल के सौ करोड़ के संयुक्त प्रोजेक्ट का खुलासा 'द सूत्र' ने किया था। इस मामले में 'द सूत्र' द्वारा मुद्दा उठाने के बाद सरकार जागी और पहले हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर की और वहां से खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर हुई। इसमें अब एमएसएमई विभाग, सरकार को फिलहाल राहत मिली है और सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति यानी स्टे आर्डर दे दिया है। 

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इस तरह चला पूरा खेल

डीआरटी से नीलामी में ऐरन डेवलपर द्वारा 75 करोड़ में सेक्टर डी लक्ष्मीबाई नगर इंदौर में ईश्वर अलाय की 35 एकड़ जमीन खरीदी थी। बाद में लीज प्रीमियम आदि राशि भरकर करीब 100 करोड़ का निवेश किया। अब उद्योग भू प्रबंधन नियम के अनुसार भले ही नीलाम में जमीन खरीदें या कैसे भी कम से कम पांच साल इंडस्ट्री चलाना जरूरी है और इसमें दो साल बीते समय घाटे में रहकर बंद हो। इसके बाद प्लाटिंग कर इंडस्ट्री के लिए ही बेच सकते हैं। लेकिन ऐरन ग्रुप ने कहा कि उसे यह शर्त मानने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें मूल आवंटी माना जाए ईश्वर अलाय को बाकी अवधि के लिए ही उसे यह जमीन लीज पर मिली है। लेकिन उद्योग विभाग ने उनका आवेदन निरस्त कर दिया। लेकिन हाईकोर्ट डबल बेंच ने उन्हें मूल आवंटी मान लिया, सरकारी वकील व विभाग अपने ही नियम को पुख्ता तरीके से हाईकोर्ट में नहीं रख सके। यह मुद्दा द सूत्र ने लगातार उठाया। इसके बाद सरकार ने इसमें रिव्यू पिटीशन लगाई, ईश्वर अलाय भी पार्टी बना लेकिन सरकार हार गई। फिर वह सुप्रीम कोर्ट गई और स्टे लिया। 

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कीमती जमीन पर कन्वेंशन सेंटर की मांग

एसोसिएशन आफ इंडस्ट्री मप्र ने इस जमीन को लेकर लगातार सरकार से मांग रखी है कि यह उद्योगों के लिए प्राइम लोकेशन पर जमीन है और इसका सबसे बेहतर उपयोग कन्वेंशन सेंटर के रूप में हो सकता है। यह जमीन दोनों ओर से कॉर्नर पर है। एसोसिएशन के अध्यक्ष योगेश मेहता ने कहा कि इस जमीन पर उद्योगों के हित में सरकार को कन्वेंशन सेंटर बनाना चाहिए, हम लगातार इसकी मांग रख रहे हैं। 

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पूरा प्रोजेक्ट 300 करोड़ रुपए से ज्यादा का 

यह मामला ईश्वर एलाय स्टील लिमिटेड की सांवेर रोड इंडस्ट्रियल सेक्टर डी में मौजूद जमीन का। यह 35 एकड़ जमीन प्लॉट नंबर 4 ,5, 6, 7 ए और 7 बी व लगी हुई अतिरिक्त जमीन का है। यह 1.50 लाख वर्ग मीटर है। यह जमीन कंपनी के मालिक एसएस बब्बर को 1969, 1978, 1975 और 1986 में अलग-अलग समय में उद्योग विभाग से आवंटित हुई थी। वह भी 99 साल की लीज पर। बाद में कंपनी देनदारियों मे फंस गई और करीब 12 साल पहले बंद हो गई।

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केस डीआरटी में गया, एरन ग्रुप पिक्चर में आया

बैंकों की वसूली के लिए मामला डीआरटी में गया, एक बार नीलामी हुई और कंपनी की सारी मशीनरी बिक गई। इसके बाद जमीन के लीज राइट्स बिक्री की नीलामी हुई। आईसीआईसीआई बैंक ने डीआरटी में केस लगाया और वसूली के लिए डीआरटी ने नीलामी कर दी। यह जमीन मेसर्स एरन डेवलपर्स ने जिसमें मुख्य तौर पर बिल्डर अशोक एरन है। साथ में सहयोगी बिल्डर पराग देसाई है।  उन्होंने इसे जनवरी 2023 में 75.74 करोड़ में नीलामी में खरीदा। इसमें लीज राइट्स ट्रांसपर व अन्य देयताओं के तौर पर 20 करोड़ से ज्यादा की राशि बकाया थी वह भी भर दी। इस तरह करीब 100 करोड़ रुपए ग्रुप ने खर्च किए। लीज राइट्स एरन डेवलपर्स के नाम ट्रांसफर हो गए।

एरन ग्रुप ने मांगी यहां पर प्लॉट काटने की मंजूरी

इसके बाद एरन ग्रुप ने डीआईसी (महाप्रबंधक जिला उद्योग इंदौर) से यहां पर प्लॉट काटने की मंजूरी मांगी, ताकि इसे अन्य उद्योगों को बेच सके। लेकिन उद्योग विभाग ने उन्हें मूल आवंटी (जिसे जमीन उद्योग विभाग से मूल रूप से दी गई थी) मानने से इंकार करते हुए भूमि भवन आवंटन व प्रबंधन नियम 2021 का हवाला देते हुए प्लाट काटने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया और 15 मई 2024 को इसके लिए एरन ग्रुप को पत्र दे दिया। 

यह था एरन ग्रुप का प्रोजेक्ट

एरन ग्रुप यहां पर 5000 वर्गफीट और इससे बड़े प्लॉट काटकर इंडस्ट्री को ट्रांसफर (यहां कहें बेचना) करना चाहता था। यह जमीन एमआर 4 पर है और दोनों ओर रोड है, यहां आज 3 से 5 हजार रुपए वर्गफीट के भाव जमीन है। यहां रोड व अन्य विकास के बाद करीब 10 लाख वर्गफीट माल बिक्री के लिए निकलता, यानी इसकी कीमत होती 300 करोड़ रुपए।

मंजूरी नहीं मिली तो एरन ग्रुप गया हाईकोर्ट, वहां यह हुआ

एरन ग्रुप ने मंजूरी नहीं मिलने पर हाईकोर्ट इंदौर डबल बैंच में केस लगाया और कहा कि  वह मूल आवंटी है और जमीन पर प्लाट काटने की मंजूरी दी जाए। इस पर डीआईसी की ओर से शासकीय अधिवक्ताओं द्वारा मजबूती से पक्ष नहीं रखा गया, इसके बाद हाईकोर्ट ने 30 दिन के भीतर ग्रुप के आवेदन पर फैसला करने के आदेश दिए, डीआईसी द्वारा प्लाट काटने की मंजूरी खारिज करने के 15 मई 2024 के पत्र को निरस्त किया और साथ ही प्लाट काटने की मंजूरी दी। 

यह है उद्योग विभाग की एक्जिट पॉलिसी का नियम

मप्र के भू आवंटन नियम 2021 में संशोधन कर एक एग्जिट पॉलिसी लाई गई, जिसमें नियम 19(बी) पैरा में साफ है कि- बंद औद्योगिक इकाई जो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रही और कम से कम दो साल से बंद हो, वह आवंटित भूखंड के समुचित उपयोग के लिए व नए उद्योग स्थापना के लिए भूखंड का विभाजन कर हस्तांतरण हेतु पात्र होंगे, इसकी मंजूरी दी जाएगी। इसमें एक बात बिल्कुल साफ है कि यदि किसी इकाई को मूल इकाई के परिसमापन, न्यायालय (लिक्विडेशन) द्वारा नीलामी या बैंक या ट्रिब्यूनल द्वारा नीलामी से भूमि ट्रांसफर होती है तो कम से कम पांच साल तक उत्पादन में रहना होगा और कम से कम दो साल से बंद रहना आवश्यक होगा। 

इस नियम के मायने एरन ग्रुप के लिए क्या है?

इस नियम के मायने साफ है कि एरन ग्रुप ने डीआरटी नीलामी से 2023 में जमीन खरीदी। लेकिन उन्होंने कोई उद्योग चलाया ही नहीं, उनका कहना है कि मुझे लीज ट्रांसफर 99 साल की नहीं हुई बल्कि ईश्वर एलॉय की बाकी समयावधि के लिए मिली है तो वह मूल आवंटी है और उन्हें पांच साल उद्योग चलाने की जरूरत नहीं है। डीआईसी हाईकोर्ट में यह पक्ष मजबूती से रख ही नहीं पाई कि यदि नीलामी से भी खरीदी है तो भी पांच साल उद्योग लगाना जरूरी है और फिर दो साल इसका किसी कारण से बंद होना जरूरी है, यानी नीलामी में खरीदी के सात साल तक वह यहां प्लाट काटकर बिक्री नहीं कर सकता है।

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