केंद्र के लिए आसान नहीं संतोष वर्मा की बर्खास्तगी का फैसला लेना, हैं कई कानूनी पेंच

मध्य प्रदेश सरकार ने आईएएस संतोष वर्मा की बर्खास्तगी की सिफारिश की है। लेकिन यह राह आसान नहीं है, क्योंकि मामला कोर्ट में है। फर्जी न्यायिक आदेश के इस्तेमाल का आरोप है। संतोष वर्मा बर्खास्तगी से जुड़े कई कानूनी पहलू उलझन पैदा कर सकते हैं।

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Ravi Awasthi
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IAS santosh varma and state govrnment

Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. राज्य सरकार ने आईएएस संतोष वर्मा की बर्खास्तगी को लेकर सिफारिशी पत्र केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय को भेजा है। लेकिन इस पत्र पर कार्रवाई इतनी आसान नहीं है। दरअसल,राज्य सरकार ने न्यायालय के जिस मामले काे अपनी सिफारिश का आधार बनाया,वह अभी जांच के दायरे में है।

सूत्रों के मुताबिक,सरकार के पत्र में ज्यादा जोर वर्मा के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले व इससे जुड़े न्यायालयीन आदेश पर है। इसमें लिखा गया​ कि संतोष वर्मा के पदोन्नति प्रकरण में जिस न्यायालयीन आदेश के आधार पर एनओसी दी गई। वह आदेश बाद में संदिग्ध और फर्जी पाया गया। 

संबंधित आपराधिक प्रकरण (851/2016) में 6 अक्टूबर 2020 को कथित दोषमुक्ति आदेश का हवाला दिया गया था। पुलिस विवेचना में यह सामने आया कि ऐसा कोई अंतिम आदेश उस तारीख को पारित ही नहीं हुआ था। 

पुलिस से हरी झंडी मिलने पर ही दी थी एनओसी

सरकारी पत्र में कहा गया कि न्यायालय के फर्जी आदेश के इस्तेमाल को लेकर अलग से आपराधिक प्रकरण भी दर्ज हुआ। इसकी पुलिस विवेचना जारी है। सूत्रों का दावा है कि वर्मा को प्रमोशन के लिए राज्य सरकार की एनओसी,इंदौर पुलिस से हरी झंडी मिलने पर ही दी गई। न्यायालयीन आदेश भी पुलिस के जरिए ही जीएडी तक पहुंचा। 

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अवॉर्ड होने के बाद हुई पुलिस को​ शिकायत

इंदौर जिला न्यायालय के संज्ञान में प्रकरण में फर्जी फैसले की बात वर्मा को आईएएस अवॉर्ड होने के बाद आई। इसकी शिकायत इंदौर पुलिस को की गई। इस आधार पर एमजी थाना पुलिस ने वर्मा व अन्य के खिलाफ धारा 120-बी,420,467,468 और 471 के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया।

प्रकरण में उनकी गिरफ्तारी भी हुई। वर्मा दो दिन से अधिक समय तक जेल में भी रहे। बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। इसी आधार पर उन्हें तब निलंबित और बाद में बहाल भी किया गया।

विवादित बयान के बाद जांच में आई तेजी

बीते माह संतोष वर्मा का विवादित बयान सामने आने के बाद इस मामले की जांच में तेजी आई। तब प्रकरण में फैसला सुनाने व बाद में इसे निरस्त करने वाले न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत व एक अन्य अमन भूरिया की संलिप्तता सामने आने पर इन्हें निलंबित किया गया।

​इंदौर जिला कोर्ट ने दो दिन पहले ही रावत को जमानत दी। इसके बाद वह प्रकरण की विवेचना कर रहे इंदौर के एसीपी विनोद दीक्षित के समक्ष अपना पक्ष रखने पहुंचे। एसीपी दीक्षित ने कहा कि प्रकरण जिला न्यायालय से मिली शिकायत पर दर्ज किया गया था। इसकी जांच प्रगति पर है। 

फर्जी जजमेंट केस में चालान पेश नहीं

पुलिस ने फर्जी न्यायालयीन आदेश के खिलाफ कई तकनीकी साक्ष्य जुटाए हैं। इनमें न्यायालय के कर्मचारियों के बयान, वर्मा और न्यायाधीशों के बीच टेलिफोनिक बातचीत के रिकॉर्ड, और आरोपियों की मोबाइल लोकेशंस शामिल हैं। हालांकि,अभी तक पुलिस ने इस मामले में चालान पेश नहीं किया है। सुनवाई और फैसले में समय लग सकता है।

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सिर्फ बयान के आधार पर नहीं हो सकती बर्खास्तगी

मध्यप्रदेश सरकार ने अपने आदेश में संतोष वर्मा के गत 23 नवंबर को दिए गए विवादित बयान व इससे समाज में तनाव पैदा होने का हवाला भी दिया है। साथ ही इस मामले में विभिन्न संगठनों की ओर से वर्मा की बर्खास्तगी वाली मांगों का भी जिक्र किया गया। सूत्रों का दावा है कि सिर्फ बयान बर्खास्तगी की वजह नहीं बन सकते। यही वजह है कि ​सरकार ने न्यायालयीन मामलों का भी हवाला दिया।

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