भारतीय न्याय प्रणाली में चेक बाउंस और संपत्ति रजिस्ट्री से जुड़े मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में मध्यप्रदेश की एक अदालत ने एक ऐसे मामले में सजा सुनाई, जिसमें आरोपी ने चेक बाउंस कराने के साथ-साथ धोखे से रजिस्ट्री अपने नाम करवाई। यह मामला न सिर्फ कानूनी बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी गंभीर है।
खाते में जानबूझकर नहीं डाला पैसा
परिवादी जफर मोहम्मद खान ने अपना फ्लैट आरोपी शैलेश चौधरी को विक्रय किया था। भुगतान के लिए शैलेश ने एक चेक दिया, जिसकी तारीख रजिस्ट्री के बाद की थी। रजिस्ट्री पूरी होने के बाद आरोपी ने अपने खाते में जानबूझकर पैसा नहीं डाला, जिससे चेक बाउंस हो गया। साथ ही, उसने रजिस्ट्री को बैंक में भी जमा नहीं किया, जिससे भुगतान की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई।
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धोखाधड़ी की मंशा स्पष्ट
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि आरोपी की मंशा शुरू से ही धोखाधड़ी करने की थी। आरोपी शैलेष चौधरी ने एक ओर रजिस्ट्री करवाई, दूसरी ओर भुगतान टालता रहा।
रजिस्ट्री निरस्त करने लगाया केस...
- पीड़ित जफर मोहम्मद ने सबसे पहले चेक बाउंस का मामला दर्ज कराया।
- इसके बाद रजिस्ट्री निरस्त करवाने के लिए सिविल दावा लगाया गया।
- आरोपी ने कोर्ट में रजिस्ट्री निरस्त करने पर सहमति दे दी।
- बाद में इसी सहमति का आधार बनाकर आरोपी ने चेक केस को निरस्त कराने का प्रयास किया।
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आरोपी को दोषी मानते हुए सुनाई सजा
परिवादी के वकील अधिवक्ता प्रशांत स्थापक ने तर्क दिया कि चेक बाउंस के अपराध की पूर्ति नोटिस मिलने के बाद भी भुगतान न करने पर होती है। अदालत ने इसे मानते हुए आरोपी को दोषी माना और 15 दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई। साथ ही 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया।
कानूनी प्रावधान
भारतीय दंड संहिता और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध है। इसमें दो वर्ष तक की सजा या आर्थिक दंड या दोनों का प्रावधान है।
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