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Photograph: (THESOOTR)
जबलपुर के जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. संजय मिश्रा के खिलाफ लगे आरोपों को उनके जवाब ने खुद ही सही साबित कर दिया है। द सूत्र को मिली इस जांच रिपोर्ट के जरिए हम आपको बताएंगे कि उनके ऊपर क्या आरोप लगे थे और वह किस तरह से सही साबित हो रहे हैं।
जबलपुर के जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. संजय मिश्रा पर मप्र शासन की ओर से अनुशासनात्मक कार्यवाही की तलवार लटक रही है। संभागायुक्त जबलपुर द्वारा उन्हें मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम 1966 के नियम 14(3) के अंतर्गत आरोप-पत्र जारी किया गया है।
डॉ. मिश्रा पर कुल चार प्रमुख आरोप लगाए गए हैं...
- निजी पैथोलॉजी लैब में हिस्सेदारी
- दो विवाह करना
- सेवा पुस्तिका में फर्जी पन्ने
- बिना अनुमति अचल संपत्ति खरीदना।
हालांकि, डॉ. मिश्रा ने इन आरोपों के जवाब में कई तथ्यों और दस्तावेजों का हवाला देते हुए अपना पक्ष रखा है, लेकिन विभागीय जांच में उनके उत्तरों को हर मामले में अस्पष्ट, अपूर्ण या स्व-विरोधाभासी माना गया है। जिससे यह साबित हो गया है कि डॉ. मिश्रा के जांच कमेटी को दिए गए जवाब में वह खुद उलझ गए हैं।
जबलपुर के सीएमएचओ डॉक्टर संजय मिश्रा को भेजे गए आरोप पत्र के बाद उन्होंने जो जवाब दिए और उसके बाद जांच रिपोर्ट ने जो निष्कर्ष निकाला है, उसकी पूरी जानकारी हम आपको एक-एक आरोप के आधार पर दे रहे हैं।
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आरोप 1: निजी लैबों में भागीदारी- डॉ. मिश्रा ने खुद मानी हिस्सेदारी
जांच में पाया गया कि डॉ. मिश्रा जबलपुर की Apple Pathology Lab, Faith Pathology, Perfect Indocare Lab और Divyata Institute of Medical Sciences (DIMS) जैसे निजी केंद्रों से जुड़े हुए थे।
डॉ. मिश्रा ने जवाब देते हुए स्वीकार किया कि एप्पल और फेथ पैथोलॉजी में उनका नाम पहले पंजीकृत था, लेकिन बाद में उन्होंने नाम हटवाने के लिए आवेदन किए- एप्पल लैब से 02.04.2024 और फेथ लैब से 03.05.2021 को। उन्होंने दावा किया कि DIMS लैब से भी उनका नाम पहले ही हटा लिया गया है।
विभागीय जांच का निष्कर्ष यह निकला कि डॉ. मिश्रा द्वारा कोई स्पष्ट दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया, जिससे यह प्रमाणित हो सके कि उनके नाम को वास्तव में लैब पंजीयन से हटा दिया गया। इसके अतिरिक्त, परफेक्ट इंडोकेयर लैब के रजिस्ट्रेशन में आज भी उनका नाम दर्ज पाया गया। इससे यह आरोप प्रमाणित माना गया।
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आरोप 2: दो विवाह और संपत्ति खरीदने में अनियमितता
डॉ. संजय मिश्रा पर यह आरोप है कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी महिला इशिप्ता सिंह मिश्रा से विवाह किया और उनके साथ मिलकर ओजस इम्पीरिया नामक हाउसिंग प्रोजेक्ट में 50 लाख रुपए का फ्लैट खरीदा।
डॉ. मिश्रा ने अपने जवाब में कहा कि इशिप्ता सिंह से उनका विवाह वर्ष 2017 में हुआ था और फ्लैट की रजिस्ट्री के पूर्व उन्होंने 4.12.2020 और 5.5.2021 को स्वास्थ्य विभाग भोपाल को अनुमति हेतु पत्र लिखे थे।
जांच रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि डॉ. मिश्रा द्वारा शासन की स्वीकृति की कोई प्रति या अभिस्वीकृति प्रस्तुत नहीं की गई। दूसरी ओर, महिला तृप्ति मिश्रा, जिन्हें डॉ. मिश्रा ने अपनी पहली पत्नी बताया, ने विवाह से इनकार किया है। फ्लैट की रजिस्ट्री में डॉ. मिश्रा और इशिप्ता सिंह का संयुक्त नाम दर्ज पाया गया, जो बिना अनुमति नियम 19(2) का स्पष्ट उल्लंघन है। यह आरोप भी सही साबित हुआ है।
आरोप 3: सेवा पुस्तिका में जोड़ दिए गए फर्जी पेज
डॉ. मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने अपने सेवा अभिलेख (Service Book) में कूटरचित तरीके से आठ अलग पृष्ठ जोड़ दिए, जिसमें दूसरी पत्नी के रूप में तृप्ति मिश्रा का नाम दर्ज था।
CMHO संजय मिश्रा ने इसका जवाब देते हुए माना कि उन्होंने पेंशन फॉर्म में तृप्ति मिश्रा को पत्नी के रूप में दर्ज कराया, क्योंकि वह उनकी मां की सेवा करती थीं और घर में रहती थीं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि IFMIS सॉफ्टवेयर में परिवार विवरण में 2017 के बाद परिवर्तन किया गया।
जांच में यह सामने आया कि डॉ. संजय मिश्रा का यह बयान उनके पहले के बयानों से मेल नहीं खाता। सेवापुस्तिका में आठ पृष्ठों को अलग से जोड़ा जाना एक गंभीर प्रशासनिक कदाचार और फॉरजरी माना गया है।
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आरोप 4: IFMIS सॉफ्टवेयर में नामांकन परिवर्तन
डॉ. मिश्रा पर आरोप है कि उन्होंने बिना सक्षम अधिकारी की अनुमति के सरकारी कोषालय सॉफ्टवेयर (IFMIS) में परिवार विवरण में खुद से परिवर्तन किया।
डॉ. मिश्रा ने इस आरोप का जवाब देते हुए स्वीकार किया कि IFMIS में बदलाव उन्होंने 2017 के बाद किया, और यह भी कहा कि उन्होंने इसके लिए अनुमति लेने का प्रयास किया था।
विभागीय जांच में यह सामने आया कि डॉ. मिश्रा ने कोई भी अनुमोदन या स्वीकृति पत्र प्रस्तुत नहीं किया। ऐसे में यह कृत्य मप्र सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के विरुद्ध पाया गया और इसे भी घोर अनुशासनहीनता की श्रेणी में माना गया।
नियुक्ति को लेकर भी सवाल, 7 साल बाद जॉइनिंग
शिकायत में यह भी कहा गया कि डॉ. मिश्रा का चयन MPPSC के माध्यम से 1990 में हुआ, लेकिन उन्होंने 7 वर्षों के बाद 1997 में ज्वाइन किया। वे इस अवधि में MD कर रहे थे, लेकिन इस अवकाश की कोई वैध अनुमति या पत्र वे प्रस्तुत नहीं कर सके।
डॉ. मिश्रा ने इस आरोप पर पक्ष देते हुए बताया कि उस समय मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, मंडला ने उन्हें उच्च शिक्षा हेतु अनुमति दी थी, लेकिन वे इसका कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए।
इस आरोप की जांच में यह निष्कर्ष निकला कि यह विषय शासन स्तर से संबंधित होने के कारण इसे चिकित्सा शिक्षा एवं लोक स्वास्थ्य विभाग, भोपाल को भेजा गया है।
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डॉ. मिश्रा के जवाबों ने उन्हें साबित कर दिया दोषी
प्रशासनिक स्तर पर जारी जांच रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि डॉ. मिश्रा के उत्तर हर मामलों में विरोधाभासी और दस्तावेजहीन पाए गए हैं। विभाग ने साफ कर दिया है कि अब डॉक्टर संजय मिश्रा पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
खुद की भागीदारी वाले अस्पतालों को पहुंचे बचाने
सीएमएचओ संजय मिश्रा के द्वारा दिए गए जवाब में यह साफ हो चुका है कि एप्पल पैथोलॉजी लैब उनकी ही है। वह बीते दिनों जबलपुर SP ऑफिस पहुंचे थे और कुछ निजी अस्पतालों के साथ उन्होंने कथित फर्जी पत्रकारों पर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगाए थे। इस दौरान एप्पल अस्पताल का संचालक अमित खरे भी उनके साथ था। अब सामने आई जानकारी से यह साफ हो रहा है कि वह अपने ही बिजनेस पार्टनर को बचाने की कोशिश में लगे हुए थे।
उपमहाधिवक्ता ने भी की थी बचाव की कोशिश
डॉ. संजय मिश्रा के खिलाफ हाईकोर्ट में चल रही एक याचिका की सुनवाई के अलावा जब एक अन्य समाज सेवी कार्यकर्ता उनके खिलाफ शिकायत करते हुए याचिका दायर करने पहुंचा था, तो उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली, जिन्हें सिर्फ सरकारी पक्ष के बचाव के लिए नियुक्त किया गया था, ने आरोपी CMHO के पक्ष में बचाव करते हुए कोर्ट के सामने तथ्य दिए थे।
इस मामले में अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने स्वप्निल गांगुली के खिलाफ महाधिवक्ता को भी शिकायत की थी और नियमों के विरुद्ध सरकार के खिलाफ खड़े होने के आरोप लगाए थे। लेकिन आखिरकार सारे संपर्कों और पहुंच के बाद भी अब सीएमएचओ संजय मिश्रा बचते हुए नजर नहीं आ रहे हैं।
आखिर इतने दिनों तक कैसे बचते रहे संजय मिश्रा?
यह मामला जबलपुर में स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली पर भी कई सवाल खड़े कर रहा है कि इतने समय तक वरिष्ठ अधिकारी स्तर पर नियमों की अनदेखी कैसे होती रही। अब सबकी निगाहें शासन की अंतिम कार्रवाई और डॉक्टर संजय मिश्रा की अगली चाल पर टिकी हैं। हालांकि, जांच में यह बात तो सामने आ गई है कि संजय मिश्रा पर लगे हुए सारे आरोप सही हैं क्योंकि वह अपने ही दिए हुए जवाबों में उलझ चुके हैं।
अब देखना होगा कि हाईकोर्ट के लोकायुक्त को जांच करने के दिए गए आदेश पर इन जवाबों से क्या मदद मिलती है और आने वाले दिनों में संजय मिश्रा के ऊपर कैसी कार्रवाई की जाती है।
फर्जी दस्तावेज | जबलपुर स्वास्थ्य विभाग
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