MP, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बढ़ती मेडिकल छात्रों की सुसाइड की घटनाएं, हाईकोर्ट में लगाई याचिका

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में बढ़ती आत्महत्याओं को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्या के मामलों को दबाया जा रहा है।

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Neel Tiwari
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Medical Student Suicides in MP

Photograph: (THESOOTR)

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मध्य प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में बढ़ती आत्महत्याओं को लेकर एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई है। कोर्ट ने इस याचिका को अगले हफ्ते सुनवाई के लिए लिस्ट किया है। याचिका में निजी मेडिकल कॉलेजों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इसमें छात्रों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए गए हैं।

इस जनहित याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच में हुई। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सांघी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए से उपस्थित हुए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए अगली सुनवाई सोमवार 28 जुलाई के लिए तय की है।

आत्महत्याएं बन गई हैं महामारी

यह याचिका कृष्ण कुमार भार्गव ने दायर की है जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। याचिका में कहा गया है कि देश के तीन राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु को मिलकर भारत में होने वाली कुल छात्र आत्महत्याओं का लगभग एक-तिहाई हिस्सा हैं। इसमें विशेष रूप से आईसी3 नाम की संस्था की रिपोर्ट ‘छात्र आत्महत्या: भारत में फैल रही महामारी’ के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है कि बीते दस सालों में पुरुष छात्रों की आत्महत्या दर 50% और महिला छात्रों की दर 61% तक बढ़ गई है।

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15 से 24 साल के युवाओं में मेंटल हेल्थ समस्याएं 

यूनिसेफ की रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन' का भी याचिका में हवाला दिया गया है, जिसमें यह खुलासा हुआ है कि 15 से 24 साल की उम्र के हर सात में से एक युवा मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहा है। लेकिन दुख की बात  यह है कि केवल 41% ही ऐसे हैं जो मदद लेने के लिए आगे आते हैं। जिसका कारण है मानसिक स्वास्थ्य के प्रति समाज में मौजूद भ्रांतियों और जागरूकता की भारी कमी।

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निजी मेडिकल कॉलेजों पर गंभीर आरोप

याचिका में विशेष रूप से मध्य प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि वहां छात्रों की आत्महत्याओं को ‘नेचुरल डेथ’ करार देकर मामले को दबा दिया जाता है। आरोप है कि कॉलेज प्रशासन न सिर्फ मृतकों के परिवार को चुप रहने के लिए मजबूत करता है बल्कि मामले को मीडिया या पुलिस तक पहुंचने से पहले ही दबा दिया जाता है।

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माता-पिता को डराया-धमकाया जाता है

याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया है कि अधिकतर मामलों में पीड़ित छात्रों के माता-पिता आगे नहीं आ पाते क्योंकि या तो उन्हें डराया-धमकाया जाता है या फिर सामाजिक दबाव और संस्थानों के प्रभाव के कारण वे आवाज उठाने से हिचकते हैं। इस 'चुप्पी की संस्कृति' ने न केवल न्याय को बाधित किया है, बल्कि कॉलेजों में भय और उपेक्षा का माहौल भी बना दिया है।

संसद में भी उठा था मामला

याचिका में बताया गया है कि 2024 की संसदीय चर्चाओं में भी मेडिकल कॉलेजों में आत्महत्या की घटनाएं गंभीर चिंता का विषय बनी थीं। साथ ही, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा गठित टास्क फोर्स की रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि आत्महत्या दर के मामले में मध्य प्रदेश देश का तीसरा सबसे प्रभावित राज्य है।

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याचिका में उच्च स्तरीय जांच की मांग 

याचिका में कोर्ट से यह अनुरोध किया गया है कि वह राज्य सरकार को निर्देश दे कि वह मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई के माहौल और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं में सुधार करे। साथ ही, बीते 10 वर्षों में मेडिकल कॉलेजों में हुई आत्महत्याओं की उच्च स्तरीय और स्वतंत्र जांच कराई जाए ताकि सच्चाई सामने आ सके और आने वाले समय में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

अब जब यह मामला हाईकोर्ट के सामने है, तो उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार और मेडिकल शिक्षा से जुड़ी संस्थाएं कोर्ट के नोटिस के बाद जवाब देंगी और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य व सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। इस मामले की 28 जुलाई को अगली सुनवाई तय की गई है।

मेडिकल छात्र | जबलपुर

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